पुलवामा हमले के दोषियों को सजा दिलाने की भारत की मुहिम को दुनिया भर में मिल रहे समर्थन के बीच भारत यात्रा पर आए सऊदी अरब के युवराज का आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत के साथ कंधा जोड़ने का वादा भारत-सऊदी अरब के प्रगाढ़ होते रिश्ते को ही अभिव्यक्त करता है। यह तथ्य है कि सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच गहरी निकटता है और वैश्विक मसलों पर दोनों का सुर एक जैसा रहता है। बावजूद इसके सऊदी अरब का आतंकवाद के मोर्चे पर भारत का समर्थन बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत की बढ़ती महत्ता और सकारात्मक कुटनीतिक विजय को ही निरुपित करता है। अच्छी बात है कि दोनों देशों ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में प्रतिबद्धता के साथ-साथ विकास को नया आयाम देने के लिए पांच अहम समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इनमें नेशनल इन्वेस्टमेंट एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड में निवेश के लिए दोनों देशों द्वारा सहमति जतायी गयी है वहीं पर्यटन के क्षेत्र में सहयोग पर भी एमओयू हुआ है। इसके अलावा दोनों देशों ने आवास के क्षेत्र में सहयोग, प्रसार भारती एवं सऊदी ब्रॉडकास्ट कोआॅपरेशन के बीच सहमति और भारत के इन्वेस्ट इंडिया एवं सऊदी अरब के जनरल इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी के बीच भी निवेश की गति तेज करने पर मुहर लगायी है।
गौर करें तो प्रारंभ में दोनों देशों के बीच आपस में कुछ गलत धारणाएं स्थापित थी जिसका मुख्य कारण संबंधों का सीमित होना था। भारत में सऊदी अरब को पाकिस्तान के साथ जोड़कर देखा जाता था और भारत के विरुद्ध पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को धन मुहैया कराने वाले देश के रुप में समझा जाता था। उधर, सऊदी अरब में भारत को मुस्लिमों पर अत्याचार करने वाले देश के रुप में माना जाता था, विशेषकर कश्मीर में। सऊदी अरब में भारतीय समुदाय के साथ भेदभाव का मसला भी दोनों देशों के बीच तनाव का विषय रहा। चूंकि पूर्व में सऊदी अरब की नीति भी पाकिस्तान केंद्रित रही इससे भी भारत और सऊदी अरब के बीच बेहतर रिश्ते स्थापित नहीं हो सके। लेकिन विगत वर्षों में भारत और सऊदी अरब के बीच निकटता और प्रगाढ़ता बढ़ी है और साथ ही व्यापार और निवेश की गति ने एकदूसरे का भरोसा जीतने का काम किया है।
हालांकि यह सच्चाई है कि सऊदी अरब द्वारा पाकिस्तान को दिए जाने वाले अनुदान एवं वित्तीय सहायता का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान द्वारा भारत विरोधी आतंकी गतिविधियों पर खर्च किया जाता रहा है जिससे भारत को दुश्वारियों का सामना करना पड़ा। लेकिन अच्छी बात है कि भारत यात्रा पर आए सऊदी अरब के युवराज ने आतंकवाद को साझा चुनौती के रुप में स्वीकार किया है, ऐसे में उम्मीद किया जाना चाहिए कि उनके द्वारा पाकिस्तान को दिए जाने वाले अनुदान पर मॉनिटरिंग की जाएगी ताकि पाकिस्तान उस अनुदान का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों पर खर्च न कर सके। भारत ने अपनी इस चिंता को सऊदी अरब से कई बार साझा किया है।
उसी का नतीजा है कि आज दोनों देश पुरानी धारणाओं के खोल से बाहर निकल संबंधों का एक नया आयाम देने में जुटे हैं। संबंधों में बेहतरी के लिए ही फरवरी, 2014 में सऊदी अरब किंगडम में उप प्रधानमंत्री एवं रक्षा मंत्री क्राउन प्रिंस सलमान बिन अब्दुल्लाजिज अल-सौद जो कि वर्तमान समय में वहां के सम्राट भी हैं, ने भारत यात्रा के दौरान संयुक्त वक्तव्य जारी कर भारत से निकटता प्रदर्शित की और कई अहम समझौते पर हस्ताक्षर किए। नवंबर, 2015 में तुर्की के अटाल्या में संपन्न जी-20 शिखर बैठक के दौरान अतिरिक्त समय में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो पवित्र मस्जिदों के संरक्षक शाह सलमान बिन से मुलाकात की और द्विपक्षीय हितों पर चर्चा की। अतीत में जाएं तो 1947 में राजनयिक संबंधों की स्थापना के बाद दोनों देशों की ओर से उच्च स्तरीय यात्राएं प्रारंभ हुई। शाह सौद ने 1955 में भारत की यात्रा की तथा प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने 1956 में सऊदी किंगडम का दौरा किया। दोनों देशों के बीच वर्ष 1981 में आर्थिक, व्यापारिक, वैज्ञानिक, प्रौद्योगिकीय, तथा सांस्कृतिक सहयोग के लिए एक संयुक्त आयोग स्थापित किया गया जो बेहतर ढंग से दोनों देशों के बीच रिश्तों को नया आयाम दे रहा है।
1982 में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी सऊदी किंगडम की यात्रा कर दोनों देशों के संबंधों में मिठास घोलने का प्रयास किया। 2006 में शाह अब्दुला के भारत की ऐतिहासिक यात्रा के दौरान ‘दिल्ली घोषणा’ पर हस्ताक्षर किया गया। सच कहें तो इस यात्रा ने भारत-सऊदी द्विपक्षीय संबंधों का एक नया अध्याय खोल दिया। वर्ष, 2010 में प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह द्वारा सऊदी किंगडम की यात्रा से द्विपक्षीय भागीदारी का स्तर ऊंचा हुआ और सामरिक भागीदारी को एक नया आयाम मिला। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच रियाद घोषणा में राजनीतिक, आर्थिक, सुरक्षा और रक्षा के क्षेत्रो में सहयोग बढ़ाने पर सहमति बनी।दोनों देशों के बीच आर्थिक और वाणिज्यिक संबंधों पर दृष्टिपात करें तो वर्ष 2000 के मध्य से द्विपक्षीय निवेश में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। अनेक भारतीय कंपनियों ने सऊदी अरब मेंसंयुक्त अथवा पूर्ण स्वामित्व की परियोजनाएं स्थापित की हैं। गौर करें तो आज की तारीख में सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापार साझेदार देश है।
उर्जा के एक बड़े स्रोत के रुप में भी सऊदी अरब भारत के लिए मुफीद है। ध्यान देना होगा कि उर्जा क्षेत्र में सहयोग द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों का एक महत्वपूर्ण आयाम हैै और दोनों पक्ष युक्तिसंगत उर्जा भागीदारी की दिशा में कार्यरत हैं। इसमें सऊदी अरब द्वारा भारत को निरंतर कच्चे तेल की दीर्घकालीन आपूर्ति उसके उर्जा की बढ़ती आवश्यकताओं की आपूर्ति सम्मिलित है। भारत और सऊदी अरब के उपरी धारा और निचली धारा के तेल और गैस क्षेत्रों में सहयोग और संयुक्त उद्यम एवं गैस आधारित उर्वरक संयंत्र के भारत और सऊदी के बीच संयुक्त उद्यम को स्थापना इत्यादि सम्मिलित है। इसके अलावा तथ्य यह भी है कि हम कच्चे तेल की अपनी आवश्यकता का लगभग 19 प्रतिशत सऊदी अरब से आयात करते हैं और इस निर्भरता को बनाए रखने के लिए दोनों देशों के बीच रिश्तों में मजबूती आवश्यक है। दोनों देशों के बीच रिश्तों में मिठास के कारण व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा मिला है। आंकड़ों पर गौर करें तो 2014-15 में हमारा द्विपक्षीय व्यापार 39.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर था जो आज की तारीख में 28 अरब डॉलर है। उम्मीद है कि दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार अगले पांच साल में 50 अरब डॉलर पर पहुंच जाएगा।
उचित होगा कि दोनों देश निवेश को बढ़ाने के लिए नए उत्पादों, कारोबारों एवं क्षेत्रों में नए अवसरों की तलाश करें ताकि दोनों देशों के बीच व्यापार एवं निवेश को प्रोत्साहन मिल सके। व्यापार एवं कारोबार के अलावा कूटनीतिक दृष्टि से भी सऊदी अरब से रिश्ते मजबूत किया जाना आवश्यक है। ऐसा इसलिए कि ऐतिहासिक, राजनीतिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक व आर्थिक कारणों से मध्य पूर्व सदैव ही भारत की विदेश नीति में विशिष्ट महत्व का विषय व केंद्र बिंदू रहा है। चूंकि भौगोलिक निकटता की वजह से यह क्षेत्र भारत के विदेश नीति के रक्षा संबंधित पहलूओं को प्रभावित करता है, के अलावा मौजूदा समय में यह क्षेत्र इस्लामिक जिहादियों से आतंकित भी है। सो इस क्षेत्र में होने वाली घटनाओं से भारत अपनी आंख बंद किए नहीं रह सकता। यह समय की मांग है कि भारत इस क्षेत्र में अपनी नयी भूमिका की तलाश करे। गौर करना होगा कि इस क्षेत्र में नए क्षेत्रीय कूटनीतिक-आर्थिक संबंध तेजी से बन-बिगड़ रहे हैं, ऐसे में भारत के लिए आवश्यक है कि वह इस क्षेत्र में दोस्ती के दायरे का विस्तार करे।
यहां समझना आवश्यक है कि इस क्षेत्र में भारतीयों के अलावा पाकिस्तानियों की भी भारी तादाद है। यह भी किसी से छिपा नहीं है कि पाकिस्तान का इन देशों से अच्छा संबंध है। अकसर देखा जाता है कि पाकिस्तान की शह पर इस्लामिक देशों के संगठन जम्मू-कश्मीर के मसले पर उसके साथ खड़े होते हैं। अगर भारत कूटनीतिक पहल के जरिए इस्लामिक देशों को पाकिस्तान से जुड़े विवादों पर तटस्थता की स्थिति में ला देता है तो भारत के लिए बड़ी उपलब्धि होगी। भारत की सऊदी अरब से प्रगाढ़ता इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है और इसके कूटनीतिक-रणनीतिक नतीजे दिखने लगे हैं।
अरविंद जयतिलक
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