भारत सरकार ने भूटान, मालदीव, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, सेशेल्स में कोरोना वैक्सीन भेजी है। अफगानिस्तान, श्रीलंका और मारिशस को भी भारत की कोरोना वैक्सीन जल्द भेजी जानी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे वैक्सीन मैत्री का नाम दिया है, कूटनीतिक भाषा में इसे वैक्सीन डिप्लोमैसी कहते हैं। यद्यपि भारत ने वैक्सीन की मदद मानवता के आधार पर की है लेकिन कूटनीतिक क्षेत्रों में इसे दक्षिण एशिया में चीन के दबदबे को भारत द्वारा कम करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
यदि भारत और पड़ोसी देश मतभेद भुलाकर साथ आ जाएं तो चीन जैसे धूर्त देश का वर्चस्व भंग हो जाएगा। वैक्सीन से पड़ोसी देशों की मदद को एक सकारात्मक पहल के तौर पर ही देखा जाना चाहिए। भारत ने हमेशा ही पड़ोसी देशों की मदद की है चाहे वह नेपाल, बंगलादेश हो या श्रीलंका। पाकिस्तान भी भले ही खुलकर नहीं बोले लेकिन दबी जुबान में तो उसने भी भारत में बनी वैक्सीन को इस्तेमाल की अनुमति दे दी है। चीन ने तो वैक्सीन आने से पहले ही दुनिया भर में मार्केटिंग शुरू कर दी थी लेकिन भारत ने कभी किसी देश को वैक्सीन खरीदने को नहीं कहा था।
कोरोना महामारी के दौरान यह पहली बार नहीं है जब भारत ने अपने पड़ोसी या किसी देश की मदद की है। इससे पहले भी भारत ने अनुदान के तौर पर और निर्यात के तौर पर पड़ोसी व अन्य देशों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, रेमडेसिविर और पेरासिटामोल गोलियों के साथ-साथ डायग्नोस्टिक किट, वेंटिलेटर, मास्क, दस्तानों की बड़ी संख्या में आपूर्ति की थी।
इस समय और भी कई देशों ने सीरम से कोविशील्ड और भारत बायोटेक की वैक्सीन को खरीदने की भी इच्छा जताई है। इस वर्ष मार्च से भारत हर महीने दस करोड़ डोज तैयार करने लगेगा और वैक्सीन निर्यात तेज हो जाएगा। चीन की गोद में बैठकर नेपाल ने भले ही भारत विरोधी रुख अपनाया हो, भले ही के.पी. शर्मा ओली ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए भारत विरोध को पैनी धार दी हो लेकिन भारत ने मानव धर्म अपनाते हुए उसे वैक्सीन दी।
ब्राजील ने अपने लोगों की जिन्दगी बचाने के लिए चीन के साथ वैक्सीन को लेकर करार किया था। चीन ने ब्राजील को झूठा आंकड़ा देकर कहा कि चीनी वैक्सीन 95 फीसदी कारगर है। ब्राजील ने चीन से वैक्सीन मंगा ली लेकिन जब वैक्सीन की टैस्टिंग की गई तो वो 50 फीसदी भी कारगर नहीं पाई गई। चीन से मिले इस धोखे के बाद ब्राजील के वैज्ञानिकों और ब्राजील के राष्ट्रपति ने कड़ा ऐतराज जताया और चीन की कड़ी आलोचना की। इससे पहले राष्ट्रपति बोल्सोनारो ने पिछले वर्ष हनुमान जयंती पर कोरोना महामारी के लिए गेमचेंजर बताई जा रही हाड्रोक्सीकलोरो क्वीन को संजीवनी बूटी करार दिया था। अमेरिका जैसी वैश्विक शक्ति भी भारत को संकटमोचक बता रही है।
हमें तो आज अपने वैज्ञानिकों पर गर्व करना चाहिए जिन्होंने इतने कम समय में कोरोना की कारगर वैक्सीन ढूंढ निकाली। वैक्सीन उत्पादन में भारत पहले ही हब बन चुका है। भारत ने चीन को पछाड़ते हुए पड़ोसियों तक वैक्सीन पहुंचाई है। पड़ोसी देशों को भी इस बात का अहसास हो चुका होगा कि संकट की घड़ी में दोस्त कौन है, दुश्मन कौन है। जो लोग भारत में वैक्सीन को लेकर भ्रम फैला रहे हैं उन्हें तो भारतीय वैज्ञानिकों की उपलब्धियों पर गर्व करना चाहिए। भारत ने तो पड़ोसियों को वैक्सीन की पहली खेप मुफ्त में दी है जबकि चीन ने अपने दोस्त पाकिस्तान को भी यह कहकर अपमानित किया और कहा कि अपना विमान लाओ और बीजिंग से वैक्सीन ले जाओ।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।