
अनु सैनी। India Pakistan Indus Water Treaty: भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चले आ रहे जल विवाद ने एक बार फिर गंभीर मोड़ ले लिया है। भारत द्वारा सिंधु, झेलम और चेनाब जैसी महत्वपूर्ण पश्चिमी नदियों के प्रवाह को नियंत्रित करने की रणनीति अब पाकिस्तान के लिए नए संकट की वजह बन रही है। हालिया घटनाओं में भारत द्वारा सिंधु नदी पर मौजूद चार बांधों के स्लुइस गेट बंद किए गए हैं, जिससे पाकिस्तान के लिए पानी की उपलब्धता प्रभावित हो रही है।
कौन-कौन से शहरों से गुजरती हैं ये नदियां?
सिंधु नदी:
गिलगित, अटोक, पेशावर, रावलपिंडी, कोट मिथन, जमशोरो, थट्टा और अंततः कराची तक पहुंचती है।
झेलम नदी:
यह मुजफ्फराबाद, न्यू मीरपुर और झांग जैसे क्षेत्रों को जीवन देती है।
चेनाब नदी:
सियालकोट से शुरू होकर यह कोट मिथन तक बहती है, जहां यह सिंधु से मिलती है।
इन नदियों का अधिकांश जल स्रोत भारत के कब्जे वाले क्षेत्रों, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर से आता है, जिससे भारत को इस पानी पर स्वाभाविक नियंत्रण प्राप्त है।
पाकिस्तान की जल-निर्भरता और कृषि संकट
पाकिस्तान की कुल GDP में कृषि क्षेत्र का योगदान 21% है और करीब 45% कार्यबल इसी क्षेत्र पर निर्भर है। पाकिस्तानी पंजाब, जो देश का अन्नदाता कहलाता है, विशेष रूप से झेलम और चेनाब नदियों पर निर्भर है। यदि इन नदियों के जल प्रवाह को भारत रणनीतिक रूप से रोक देता है, तो यह इलाका खाद्य असुरक्षा और आर्थिक तंगी की चपेट में आ सकता है।
सिंधु जल संधि: एक ऐतिहासिक लेकिन तनावपूर्ण समझौता
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से सिंधु जल संधि हुई थी। इसमें भारत को पूर्वी नदियों (रावी, सतलज, ब्यास) का और पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चेनाब) का उपयोग करने का अधिकार दिया गया। लेकिन अब इस संधि के भविष्य पर सवाल उठ रहे हैं। भारत ने हाल के वर्षों में पश्चिमी नदियों पर अपने अधिकार के तहत जलविद्युत परियोजनाओं को तेज़ किया है।
जल संकट के संभावित दुष्परिणाम | India Pakistan Indus Water Treaty:
1. कृषि उत्पादकता में भारी गिरावट: गेहूं, चावल और गन्ना जैसी फसलों पर निर्भरता रखने वाला पाकिस्तानी पंजाब इस स्थिति से सबसे ज़्यादा प्रभावित होगा।
2. भूजल पर दबाव: सतही जल की उपलब्धता में कमी के कारण किसान अधिक मात्रा में ट्यूबवेल से पानी निकालेंगे, जिससे भूजल स्तर में गिरावट आएगी।
3. बिजली संकट: जलविद्युत उत्पादन घटने से बिजली की आपूर्ति प्रभावित होगी, जिससे औद्योगिक और घरेलू जीवन दोनों बाधित हो सकते हैं।
4. सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता: कृषि संकट के चलते बेरोजगारी, पलायन और सामाजिक असंतोष जैसी समस्याएं खड़ी हो सकती हैं।
भारत की रणनीतिक बढ़त
भारत पहले से ही पूर्वी नदियों का 95% जल उपयोग कर रहा है और पश्चिमी नदियों पर भी अपनी भंडारण क्षमता (लगभग 3.6 MAF) के जरिए दबाव बना सकता है। ये स्थिति उसे पाकिस्तान पर कूटनीतिक और रणनीतिक लाभ प्रदान करती है। अगर भारत सिंधु जल संधि से पीछे हटता है या उसके नियमों को सख्ती से लागू करता है, तो पाकिस्तान को भारी जल संकट का सामना करना पड़ सकता है।
क्या है आगे का रास्ता?
भारत की ओर से यदि पश्चिमी नदियों के प्रवाह को धीरे-धीरे नियंत्रित किया जाता है, तो पाकिस्तान को इसकी भरपाई करने में वर्षों लग सकते हैं। नए बांधों और जल-संरचनाओं के निर्माण के बिना पाकिस्तान के पास विकल्प सीमित हैं। भारत को भी वैश्विक स्तर पर इस कदम के संभावित कूटनीतिक परिणामों को ध्यान में रखना होगा।
निष्कर्ष: पानी अब सिर्फ संसाधन नहीं, रणनीति बन चुका है
भारत और पाकिस्तान के बीच का यह जल विवाद सिर्फ दो देशों का मामला नहीं है, यह दक्षिण एशिया की स्थिरता और सुरक्षा के लिए भी एक बड़ा सवाल बन चुका है। आने वाले समय में पानी वह तत्व हो सकता है, जो कूटनीति और टकराव दोनों की दिशा तय करेगा। India Pakistan Indus Water Treaty: