भारत को ट्रम्प की मंशा समझने की जरूरत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अमेरिका में हाउडी मोदी कार्यक्रम तो आपको याद ही होगा। तब दुनिया ने पहली बार देखा था कि विश्व के दो सबसे बड़े और पुराने लोकतंत्र के नेता एक साथ एक मंच से रैली करने के लिए उपस्थित हुये थे कुछ वही नजारा एक बार फिर दिखने जा रहा है। गुजरात में दुनिया के सबसे बड़े स्टेडियम में एक बड़ी रैली होने जा रही है, जिस पर पूरी दुनिया की निगाहें होगी।
इस कार्यक्रम को लेकर दोनों देश बहुत उत्साहित है, वही एक बात यह समझनी होगी की ट्रम्प के इस दौरे से भारत को क्या मिलने जा रहा है? क्योंकि भारत और अमेरिका के रिश्ते खट्टे-मीठे रहे है। आपको याद होगा ह्यूस्टन में जहां लगभग 50 हजार भारतीय-अमरीकियों की भीड़ में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चिर परिचित अंदाज में नारा बुलंद करते हुए कहा था, ‘अबकी बार ट्रंप सरकार।’
अमेरिका भारत को अपना दोस्त तो मानता है मगर कई बार वह कुछ ऐसा कर देता है कि उसकी मंशा पर शक होता है इसलिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अभी भारत में कदम भी नहीं रखा। लेकिन उनके बयानों ने विदेश कूटनीति पर सवाल खड़े कर दिए । हम सभी जानते है कि डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति से पहले एक बिजनेस मैन है इसलिए ट्रम्प प्रत्येक नीति को व्यापारिक नजरिये से देखते है। अमेरिका में छह महीने बाद राष्ट्रपति चुनाव है, जो डोनाल्ड ट्रम्प के लिए बहुत महत्वपूर्ण है इसलिए ट्रम्प ने बीते कुछ महीनों से ऐसे फैसले लिए है, जिससे विपक्ष ने कुछ सवाल खड़े कर दिए।
डोनाल्ड ट्रम्प 24- 25 फरवरी को भारत दौरे पर आ रहे है। इस दौरे को लेकर भारत और अमेरिका दोनों के अपने अपने मुद्द्दे है। यहाँ समझने वाली बात यह है कि जब किसी देश का प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति दौरा करता है एक-दूसरे देश के प्रति तो उनके मुद्द्दे एक होते है कि वह किसलिए उस देश की यात्रा पर है। मगर डोनाल्ड ट्रम्प ने कल यह कहकर भारत के विदेश मामलों के जानकारों को व्यस्त कर दिया की मैं नरेंद्र मोदी को पसन्द करता हूं मगर इस यात्रा के दौरान व्यापार करार की उम्मीदे कम है। भारत ने हमारे साथ अच्छा सलूक नहीं किया। ट्रम्प जानते है कि अमेरिका में सिर्फ भारतीय मूल के लोग नहीं है, वहाँ पाकिस्तान , तुर्की, चीन, मलेशिया के लोग भी रहते है और इन देशों के भारत से रिश्ते अच्छे नहीं है।
चुनाव में वोट के लिए ट्रम्प को सभी अप्रवासी लोगों के वोट चाहिए। ट्रंप के लिए भारतीय मूल के वो 40 लाख अमरीकी अहम हैं। जो अमेरिका में मताधिकार का प्रयोग करते है। ट्रंप की तमाम उम्मीदों और कई विश्लेषकों के दावों के बावजूद भारतीय मूल के अमरीकियों का कितना वोट डोनाल्ड ट्रंप के पक्ष में जाएगा। एशियन अमरीकन लीगल डिफेंस और एजुकेशन फंड नाम की संस्था के मुताबिक अधिकांश भारतीय डेमोक्रेट्स के वोटर के तौर पर रजिस्टर्ड हैं और साल 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में जानी मानी पत्रिका इकॉनामिक एंड पॉलिटिकल वीकली के मुताबिक 77 फीसदी ने हिलेरी क्लिंटन को वोट दिया था। यही सोच के साथ ट्रम्प ने चुनाव से पहले भारत का दौरा करने की सोची है।
पिछले साल जब सितम्बर में नरेंद्र मोदी अमेरिकी दौरे पर गये थे तो ह्यूस्टन में हाउडी मोदी कार्यक्रम हुआ था जिसमे 50 हजार लोग आये थे और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ मंच साझा किया था। तब नरेंद्र मोदी ने वो सभी मुद्द्दे उठाये थे, जो वह भारत से लेकर गए थे और ट्रम्प ने मोदी के साथ हाथ मिलाकर गले लगाकर दुनिया को यह सन्देश दिया था कि हम भारत के साथ है भारत का इशारा पाकिस्तान था आतंकवाद और कश्मीर मुद्दे पर, मगर एक बात सभी जानते है कि अमेरिका, पाकिस्तान को फटकार जरूर लगाता है मगर आतंक बनाने का काम अमेरिका ने ही किया था। भारत को संतुष्ट करने के लिए पाकिस्तान को चेतावनी देता रहा है कि पाकिस्तान आतंकवाद रोके। मगर ये बात किसी से छिपी भी नहीं है कि अमेरिका जब पाकिस्तान से आतंक पर लगाम लगाने की बात करता है तो पाकिस्तान को हथियार क्यों देता है अमेरिका।
इमरान खान ने तो साफ-साफ कहा था कि 1989 में अलकायदा को सहयोग अमेरिका ने ही किया था ट्रेनिंग से लेकर पैसे तक। तो हम कैसे मान लें की अमेरिका का ये दोहरा रवैया नहीं है, इमरान खान के साथ जब डोनाल्ड ट्रम्प पत्रकारों से बात कर रहे थे तो अमेरिका ने ईरान को आतंकवाद कहा था और जब मोदी के साथ ह्यूस्टन में सम्बोधन कर रहे थे तो मोदी ने पाकिस्तान को आतंकवाद कहा था दोनों के आतंकवाद देश अलग-अलग कैसे हो सकते है, कहीं अमेरिका अपना उल्लू सीधा तो नहीं कर रहा। अमेरिका, पाकिस्तान को हथियार देना बंद कर दे तो कुछ लगाम आतंक पर लगेगी। ये बात भारत को समझ क्यों नहीं आती।ट्रम्प चुनाव से पहले भारत के साथ ऐसा कोई समझौता नहीं करना चाहते, जो आगे उसके लिए ठीक न हो ।
यहाँ ट्रम्प की मंशा को समझने की जरूरत है ट्रम्प अगर चुनाव जीतते है, तभी वो भारत के साथ एक बड़ा समझौता करेंगे। अमरीका भारत का सबसे बड़ा व्यापार सहयोगी देश है। साल 2019 की पहली तिमाही में अमरीका ने भारत को 45.3 अरब डॉलर का निर्यात किया था। वहीं इस दौरान अमरीका ने भारत से 65.6 अरब डॉलर के उत्पाद एवं सेवाएं आयात की थीं। दोनों देशों के बीच इस दौरान कुल 110.9 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था। मैं समझता हूँ की भारत को अमेरिका पर आँख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए। अमेरिकी कूटनीति का आकलन हमें गम्भीरता से करना चाहिए। सामरिक साझेदार होने के बाद भी हमें अमेरिका से उतना फायदा नहीं मिल रहा है जैसे मिलना चाहिए।
हमने उससे बड़ी मात्रा में हथियार खरीदे, अपना बाजार सौपन दिया और अपनी कम्पनियों के साथ साझेदारी भी कर ली। लेकिन अभी भी हमारे हाथ खाली है, हमने रूस से जो 400 मिसाइल की खरीद की है, उसमें अमेरिका रोड़ा बना हुआ है, वो चाहता है कि भारत तेल, हथियार और अन्य साजो सामान के लिए सिर्फ हम पर निर्भर रहे अमेरिका को पता है कि रूस और भारत के रिश्ते कितने अच्छे है इसलिए हमें आगे अमेरिका के साथ बहुत समझदारी से कदम बढ़ाने होंगे।
दरअसल अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क है और सबसे बड़ी अर्थव्यस्था भी है इसलिए अमेरिका का कोई भी राष्ट्रपति हो वह दुनिया को सिर्फ इस्तेमाल करता है और खुद मसीहा बनने की कोशिश करता है। भारत दौरे के चंद दिनों पहले ही चार सांसदों ने विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो को खत लिखकर ‘किसी भी प्रजातंत्र में जारी इतने लंबे इंटरनेट बैन’ और जनप्रतिनिधियों की लम्बी हिरासत को लेकर चिंता जताई थी। खत लिखने वाले सांसदों में से दो राष्ट्रपति ट्रंप के राजनीतिक दल रिपब्लिकन पार्टी और दो विपक्षी डेमोक्रेट पार्टी के हैं ।
ब्रजेश सैनी

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