भारत-रूस 21वीं सालाना शिखर बैठक के लिए राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का दिल्ली आना स्पष्ट करता है कि मास्को की निगाह में भारत की क्या अहमियत है। रूसी राष्ट्रपति ने भारत को यूं ही एक परखा हुआ मित्र नहीं कहा है, इस मित्रता ने पांच दशकों का अडिग सफर तय किया है। 9 अगस्त, 1971 को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व सोवियत नेता लियोनिड ब्रेझनेव ने इसकी नींव रखी थी और यह साल-दर-साल पुख्ता होती गई। यहां तक कि सोवियत संघ के विघटन के बाद भी जब दुनिया एकध्रुवीय हुई, उस दौर में भी नई दिल्ली और मास्को ने आपसी रिश्तों की चमक फीकी नहीं पड़ने दी और दोनों देशों की उत्तरोतर सरकारों ने अपने तमाम व्यावहारिक तकाजों को पूरा करते हुए और देशहित में नए रिश्तों को बुनते हुए एक-दूसरे की भावनाओं का हमेशा ख्याल रखा।
रक्षा से संबंधित परंपरागत सहयोग का उल्लेख इस बार भी हुआ और इसका विस्तार भी हुआ है, लेकिन उभरते हुए नये क्षेत्रों में सहकार बढ़ाने पर भी इस बार जोर दिया गया है। इसमें ऊर्जा, आर्थिक व्यापार, विज्ञान एवं तकनीक संपर्क बढ़ाने और शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक सहयोग की संभावनाओं को साकार करने पर उल्लेखनीय ध्यान दिया गया है। दोनों देश रणनीतिक और कूटनीतिक सहकार को प्रगाढ़ करने की आवश्यकता को कितना महत्व देते हैं, यह इस तथ्य से रेखांकित होता है कि भारत और रूस के बीच पहली बार रक्षा व विदेश मंत्रियों की साझा मुलाकात (2+2) की व्यवस्था बनायी गयी है। खासकर रक्षा क्षेत्र में दोनों देशों के रिश्ते की मजबूती का अंदाजा इस बात से चल जाता हैै कि एस-400 मिसाइल प्रणाली के सौदे को लेकर अमेरिका, चीन, तुर्की सहित कई देशों की नाखुशी को दोनों देशों ने महत्व नहीं दिया।
हालांकि, तालिबान के मामले में रूस शुरूआत में भ्रम का शिकार रहा और ऐसा लगा कि वह तालिबान सरकार को मान्यता देने को तैयार बैठा है, लेकिन जब भारत ने अपनी चिंताएं उसके सामने रखीं, तो मास्को ने अपनी अफगान नीति पर गौर किया। दोनों नेताओं तथा मंत्रियों की बैठकों से तय हुए समझौतों में कुछ अन्य अहम बिंदु भी हैं। ऊर्जा के क्षेत्र में दोनों देशों का सहयोग तो 2007-08 से चल रहा है, लेकिन उसे विस्तृत करने के बारे में इस बार ठोस निर्णय लिये गये हैं। रूस के आर्कटिक क्षेत्र से तेल एवं प्राकृतिक गैस निकालने में भारत के सहयोग पर रूस को अपेक्षा है। इस मामले में 15 अरब डॉलर का निवेश अब तक हो चुका है।
यह सहकार हमारे आर्थिक संबंधों का महत्वपूर्ण आधार हो सकता है। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि 2025 तक द्विपक्षीय व्यापार कम-से-कम 30 अरब डॉलर हो सकता है। इसके अलावा, हमारे देश के पूर्वी समुद्री बंदरगाहों को रूस के सुदूर पूर्व में स्थित व्लादिवोस्तक से जोड़ने का कार्यक्रम निर्धारित हुआ है। इस प्रस्तावित सामुद्रिक गलियारे पर राष्ट्रपति पुतिन और प्रधानमंत्री मोदी की पिछली शिखर बैठक में चर्चा हुई थी और इस बार कुछ प्रगति हुई है। कुल मिलाकर, कहा जा सकता है कि इस दौरे ने भविष्य के लिए ठोस आधार दिया है।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter, Instagram, LinkedIn , YouTube पर फॉलो करें।