भीषण आर्थिक संकट से गुजर रहे श्रीलंका में जब आपातकाल और सख्त कर्फ्यू की घोषणाओं का जनअसंतोष और सड़कों पर चल रहे प्रदर्शन पर खास असर होता नहीं दिखा तो पूरी कैबिनेट ने इस्तीफा दे दिया। इस्तीफों का मकसद बताया गया राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को संकट से उबरने के अपने प्रयासों को आगे बढ़ाने में मदद पहुंचाना। अगले दिन राष्ट्रपति की ओर से जिन चार प्रमुख मंत्रियों को संपूर्ण मंत्रिमंडल के गठन तक कामकाज संभालने की जिम्मेदारी सौंपी गई, उनमें रेखांकित किए जाने लायक बात यह रही कि वित्त मंत्री का पद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के भाई बासिल राजपक्षे से ले लिया गया। लेकिन जरूरी वस्तुओं की किल्लत से त्रस्त श्रीलंकाई नागरिकों का गुस्सा इस कवायद से ठंडा पड़ेगा ऐसा लगता नहीं है।
2019 में ही मजबूत नेतृत्व और निर्णायक कदमों के वादे पर जबर्दस्त जनसमर्थन से राष्ट्रपति पद पर पहुंचे गोटबाया राजपक्षे और उसके अगले साल वैसे ही बहुमत से सत्ता में आई उनकी पार्टी के प्रति असंतोष चरम पर पहुंचा दिख रहा है। हालांकि मौजूदा संकट के लिए पूरी तरह से वर्तमान सरकार को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इसकी जड़ सिविल वॉर के बाद अधिक से अधिक विदेशी पूंजी आमंत्रित करने वाली नीति में है। हालांकि शुरू में उससे प्रति व्यक्ति आमदनी बढ़ाने में कुछ मदद मिली, लेकिन दीर्घकालिक नजरिए से यह नीति घातक साबित हुई। दिक्कत यह है कि हजारों लोग प्रदर्शन के लिए जुट जा रहे हैं, एक साथ इतने लोगों पर कठोर कार्रवाई करना किसी सरकार या प्रशासन के लिए या श्रीलंका जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए बहुत मुश्किल काम है। लोगों ने ही राष्ट्रपति चुना है और अब ज्यादातर लोग राष्ट्रपति को हटाने के पक्ष में हैं।
लोग यह मानते हैं कि वर्तमान राष्ट्रपति ने देश की अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार दिया है, तो इसमें एक हद तक सच्चाई है। तेल या ईंधन की घटती आपूर्ति ने इस द्वीप देश को हिलाकर रख दिया है। प्रतिदिन 13 घंटे या उससे भी ज्यादा की बिजली कटौती का सामना करना पड़ रहा है। देश पर खूब ऋण है और विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो चुका है। भारत ने फरवरी और मार्च में श्रीलंका को 2.4 अरब डॉलर की वित्तीय सहायता दी है। श्रीलंका को और पैसा चाहिए, क्योंकि उसकी कमाई लगभग थम गई है। भारत विभिन्न परियोजनाओं के तहत आर्थिक सुधार के प्रयास में लगा है, लेकिन इसमें समय लगेगा। युद्ध और जरूरत से ज्यादा नीतिगत परिवर्तनों की वजह से श्रीलंका की अर्थव्यवस्था लगभग चौपट हो गई है। पहली जरूरत यह है कि श्रीलंकाई सरकार को लोगों का समर्थन हासिल हो और वह जनता को साथ लेकर मुश्किल स्थिति से बाहर निकलने के उपाय करे।
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