अमेरिकी चुनाव में भारत एक कारक

India is a factor in US elections
संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनावों पर संपूर्ण विश्व की नजरें लगी रहती हैं। नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति के चुनाव की ओर लोगों का ध्यान ज्यादा जा रहा है क्योंकि वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस चुनाव में फिर से मैदान में उतरेंगे।
भारत में ट्रंप प्रधानमंत्री मोदी के साथ अपने व्यक्तिगत समीकरणें के कारण मीडिया में सुर्खियों में रहे हैं। किंतु डेमोक्रेट द्वारा उपराष्ट्रपति पद के लिए कमला हैरिस को खडा करने से यहां भारत में उनके भारतीय मूल का खूब प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।कमला हेरिस की मां भारतीय मूल की हैं। भारतीय पयर्ववक्षकों ने कमला हैरिस की संभावित जीत पर काफी कुछ लिखा है और कहा है कि उनके जीतने से भारतीय समुदाय और भारत के प्रति अमेरिकी नीति और अमेरिका की राजनीति पर प्रभाव पडेगा। दूसरी ओर यदि ट्रंप जो अभी रायशुमारी में अपने प्रतिद्वंदी जो बिडेन से पीछे चल रहे हैं, यदि वे चुनाव जीतते हैं तो भारतीय मूल के अमेरिकी और भारत के लिए इसका क्या तात्पर्य होगा।
इस बारे में भी बहुत कुछ लिखा जा चुका है। मैं अंतर्राष्ट्रीय संबधों और कूटनीति के संदर्भ में इस बारे में प्रकाश डालूंगा। अमेरिका में भारतीय मूल के लोग लगभग 40 लाख हैं और कुल अमेरिकी जनसंख्या में उनकी संख्या 1.3 प्रतिशत है। किंतु कुछ राज्यों में उनकी संख्या परिणामों को प्रभावित कर सकती है। अमेरिका के 50 राज्यों में से 16 राज्यों में भारतीय मूल के अमरीकियों की संख्या 1 प्रतिशत से अधिक है। न्यू जर्सी में 4.1 प्रतिशत, रोड आईसलैंड में 3.36 प्रतिशत, न्यूयार्क में 1.88 प्रतिशत, इलिनियोस में 1.81 प्रतिशत, कैलिफोर्निया में 1.8 प्रतिशत, डेलावेयर में 1.68 प्रतिशत भारतीय मूल के लोग रहते हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है जिसमें राज्य शामिल होते हैं। इसलिए इस बात की पूरी संभावनाएं हैं कि जिन राज्यों में भारतीय मूल के अमेरिकी अधिक हैं वहां पर वे परिणाम प्रभावित कर सकते हैं। ट्रंप तथा बिडेन और हैरिस भारतीय मूल के अमेरिकी मतदाताओं को लुभा रहे हैं। ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ अपनी एक तस्वीर जारी की जिसमें वे बोस्टन और अहमदाबाद में संयुक्त रूप से रैलियों को संबोधित कर रहे हैं। उनका दावा है कि वे कमला हैरिस से अधिक भारतीय हैं।
अपने नीतिगत बयानों में वे अक्सर भारत की आलोचना करती रही हैं किंतु चुनावों में वे अपने को अपनी मां के कुटुंब और भारतीय समुदाय से जोड़ रही हैं। उनकी मौसी उनकी नामांकन रैली में शामिल थी। भारतीय अमेरिकी भेड़चाल वाली जनसंख्या नहीं है। उनकी राजनीतिक पसंद अलग-अलग है। वे उन नीतियों के बारे में चिंतित हैं जो उन्हें प्रभावित करेंगी। जैसे एच1बी वीजा, कर नीतियां, जातीय सौहार्द आदि। ट्रंप को एक श्वेत सर्वोच्चतावादी माना जाता है किंतु भारतीय अमरीकियों को चिंता करने की बात नहीं है क्योंकि जातीय तनावों से एशियन अमेरिकी के बजाय अश्वेत अधिक प्रभावित हुए हैं। भारतीय अमेरिकी पेशेवर तथा समृद्ध हैं। इसलिए वे नस्लभेदी हमलों से बचते रहे हैं।
भारतीय अमेरिकी उस पार्टी को वोट देंगे जो भारत का समर्थन करेगी न कि उसकी घरेलू नीतियों के आधार पर। भारतीय मूल के लोग स्वयं को भारत से जोड़ते हैं इसलिए वे अपनी संस्कृति को छोडना नहीं चाहते हैं और मेजबान देश की संस्कृति को अपनाना नहीं चाहते। अमेरिका प्रवासियों का देश है वहां पर कोई भी निश्चित संस्कृति नहीं है जिसे भारतीय अपनाए। इसलिए उम्मीदवारों की भारत नीति भारतीय अमेरिकी मतदातदाओं को प्रभावित करेगी और इसी के आधार पर वे दोनों पार्टियों में से किसी को मतदान करेंगे।
किसी भी देश के मूल निवासी उसकी विदेश नीति को प्रभावित कर सकते हैं। अमेरिका में अत्यधिक समृद्ध यहूदी लोगों ने अमेरिकी नीति को इजराइल के पक्ष में झुकाया। जर्मनी में तुर्क लोगों ने जर्मन की नीति को तुर्की के पक्ष में किया इसलिए भारतीय अमेरिकी तथा उनके पेशेवर प्रभाव के कारण वे अमेरिका की नीतियों को भारत के पक्ष में कर सकते हैं। कुछ भारतीय अमेरिकी वहां की शासन प्रणाली में महत्वपूर्ण पदों पर हैं। कुल मिलाकर भारतीय अमरीकियों के मतदान का निर्णय दोनों पार्टियों के नेतृत्व द्वारा भारत के प्रति नीतियों के आधार पर निर्देशित होगा। अपने इस स्तंभ में डोनाल्ड ट्रंप भारत के सर्वोत्तम मित्र नामक लेख लिखा है। कुछ पर्यवेक्षक ट्रंप के अनिश्चित बयानों से सहज नहीं दिखते हैं। अमेरिका में एक ट्रंप के प्रशंसक ने मुझे चुप करवा दिया था। उसने कहा कि ट्रंप का आकलन इस बात से कीजिए कि वे क्या करते हैं न कि इस बात से कि वे क्या कहते हैं। उनमें एक ऐसी विशिष्ट शैली है कि वे अपने विरोधियों को अपने शब्दों से उदासीन बना देते हैं।
कुल मिलाकर डेमोक्रेट पार्टी की तुलना में रिपब्लिकन पार्टी अधिक भारत समर्थक है। अमेरिका के साथ असैनिक परमाणु समझौता जार्ज बुश जूनियर के कार्यकाल मे किया गया था और पाकिस्तान को अलग-थलग करने का कार्य ट्रंप द्वारा किया गया। बिल क्लिंटन और ओबामा दोनों ने ही पाकिस्तान और चीन को नाराज नहीं किया। वर्तमान में डेमोके्रटिक पार्टी के नेता बिडेन और हैरिस जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 और तथाकथित मानव अधिकारों के मुद्दे पर भारत की आलोचना करते रहे हैं।
डेमोक्रेटिक नेताओं द्वारा भारतीय सरकार के साथ संपर्क साधने का प्रयास नहीं किया गया। ट्रंप ने दूसरी ओर सार्वजनिक रूप से मोदी का पूर्ण समर्थन किया। इसी तरह ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरून मार्च 2019 में वेंबले में मोदी के साथ मंच पर गए और उन्होंने 15 लाख भारतीय मूल के ब्रिटेनवासियों को अपनी पार्टी के पक्ष में किया। ट्रंप ने भी मोदी के साथ दो बार मंच साझा कर यही किया है। डेमोक्रेटिक पार्टी ने अपनी भारत नीति में सुधार किया है और उन्होंने कहा है कि वे भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने का प्रयास करेंगे किंतु इसमें काफी विलंब हो गया है क्योंकि ट्रंप प्रशासन भारत का समर्थक रहा है और चीन के साथ सीमा पर गतिरोध के मामले में उसने भारत का पूर्ण समर्थन किया है।
दूसरी ओर लगता है डेमोक्रेटिक पार्टी ने कमला हैरिस के उपराष्ट्रपति पद पर चुनाव होने के बावजूद उन्हें भारत से समस्या बढ़ी है। अमेरिका ने अश्वेत ओबामा को दो बार राष्ट्रपति चुना। उनकी माता श्वेत अमेरिकी थी। यदि वे कमला हैरिस को चुनते हैं तो वे अप्रवासी मूल की पहली उपराष्ट्रपति होंगी। इससे अश्वेत अमेरिकी की नाराजगी दूर होगी जो नस्लीय घृणा और हिंसा के शिकार रहे हैं। ब्लैक लाइफ्स मैटर आंदोलन मतदाताओं को डेमोक्रेटिक पार्टी के पक्ष में करेगा किंतु इससे श्वेत मतदाता ट्रंप के पक्ष में एकजुट हो सकता है।
कुल मिलाकर अमेरिकी राजनीति में द्विपक्षीय राजनीतिक टक्कर में पहली बार शायद भारत और भारतीय अमेरिकी महत्वपूर्ण कारक बने हैं। कुछ राज्यों में भारतीय मूल के अमरीकियों की संख्या चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकती है। इसके साथ ही अमेरिका के भू-राजनीतिक आकलन में भारत का दर्जा बढा है क्योंकि उसने चीन के साथ टकराव मोल लिया है और अमेरिका भी विश्व मे सर्वोच्च महाशक्ति बनने के लिए चीन के साथ संघर्षरत है। अब देखना यह है कि विश्व के सबसे शक्तिशाली देश में चुनाव परिणाम क्या रहते हैं।

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