अमेरिका व ईरान में तनातनी भारत के लिए सिरदर्द बन सकती है। दोनों देशों में तनाव बढ़ रहा है। जहां अमेरिका ईरान के खिलाफ प्रतिबंध लगाने पर अड़िग है, वहीं ईरान संसद ने अमेरिका की सेना को आतंकवादी घोषित कर दिया। दोनों देशों में बढ़ रहा तनाव का खमियाजा भारत-चीन सहित आठ देशों को भुगतना पड़ेगा जो ईरान से तेल आयात कर रहे हैं। अमेरिका ने ईरान से तेल आयात करने पर भारत सहित आठ देशों को 6 माह की छूट दी थी। अब अमेरिका ने छूट की समय सीमा को बढ़ाने से इंकार कर दिया है। भारत इस वक्त बड़ी मात्रा में ईरान से तेल आयात कर रहा है। यदि अमेरिका अपनी जिद्द पर अड़ा रहता है तब भारत में तेल की कीमतें बढ़नी तय हैं।
भारत और ईरान के बीच मौजूदा दोतरफा व्यापार करीब 14 बिलियन डॉलर (8.90 खरब रुपए से ज्यादा) है। व्यापार संतुलन ईरान के पक्ष में बहुत ज्यादा है। पिछले साल ईरान को भारतीय निर्यात करीब 4.2 बिलियन डॉलर (26.65 अरब रुपए से ज्यादा) था। ईरान के संकट का प्रभाव है कि डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है। इन हालातों से निपटने के लिए भारत सरकार को ठोस नीति तैयार करनी चाहिए। पहले ही कई राज्यों ने मुश्किल से 5 रूपए वैट घटाकर तेल के दाम घटाए थे। यदि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो भारत में हाहाकार मच जाएगी।
दरअसल अमेरिका की जिद्द की सबसे ज्यादा मार चीन व भारत को झेलनी पड़ेगी। यह दोनों देश लगभग सामान मात्रा में ही ईरान से तेल खरीदते हैं। यूं भी अमेरिका अपने अंतरराष्ट्रीय प्रभाव को बढ़ाने के लिए किसी न किसी बहाने भारत व चीन के खिलाफ सख्त निर्णय ले रहा है। भारत की ईरान के साथ नजदीकी भी अमेरिका को रास नहीं आ रही। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प परमाणु कार्यक्रम मामले में राष्ट्रपति बराक ओबामा के मुकाबले ज्यादा तल्ख तेवर दिखा रहे हैं।
ओबामा प्रशासन ने ईरान के साथ किए समझौते को ट्रंप प्रशासन ने खारिज कर दिया है। यह तनाव इसीलिए बेहद खतरनाक है क्योंकि विश्व में इस्लाम व ईसाई लोगों को एक दूसरे के कट्टर विरोधी के तौर पर देखा जा रहा है। भारत-चीन सहित विश्व के अन्य देशों को अमन शांति, व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने के लिए ठोस कूटनीति अपनाने की आवश्यकता है ताकि आर्थिक प्रतिबंधों के नाम पर महंगाई व एक दूसरे के प्रति विरोध को रोका जा सके।
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