बौद्धिक संपदा और एकाधिकार की लड़ाई के बीच भारत

India between the battle of intellectual property and monopoly

मनुष्य अपनी बुद्धि से नई-नई खोजें और नई-नई रचना रचनाओं को जन्म देता है और उन विशेष खोजों पर उसका पूरा हक भी है, लेकिन उसके अधिकार का संरक्षण हमेशा से चिंता का विषय रहा है। यहीं से बौद्धिक संपदा और बौद्धिक संपदा अधिकार की बहस शुरू होती है। हम जो भी अपने दिमाग से किसी रचनात्मकता का विकास करते हैं। उसे कोई अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करें तो यह हमारे अधिकारों का हनन है। जब दुनिया में बौद्धिक अधिकारों की बहस तेज हुई तो संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी वीपो का गठन हुआ। आज के दौर में बौद्धिक संपदा का महत्व बहुत बढ़ गया है।

यह ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था का आधार है। बौद्धिक संपदा अधिकार से कॉपीराइट, रचनात्मक कार्यों जैसे पुस्तकें, संगीत, फिल्में, छायाचित्र और सॉफ्टवेयर को संरक्षण मिलता है। औद्योगिक डिजाइन अधिकार, औद्योगिक वस्तु, शैली, डिजाइन के रूप को अतिक्रमण से बचाता है। बौद्धिक संपदा आविष्कार के रचनाकारों का बचाव करती है। बौद्धिक संपदा आर्थिक रूप से मूल्यवान सूचना है। बौद्धिक संपदा अधिकार अन्य व्यक्तियों को सृजित सूचना का प्रयोग करने से रोकने का अधिकार है। आज भी इनसे जुड़े अनेक कानूनी पहलू राष्ट्रीय स्तर पर ही हैं और राज्यों को यह अधिकार है कि वह जिस तरह चाहें, इन कानूनों में बदलाव कर सकते हैं। लेकिन ट्रिप्स समझौते के बाद, विश्व बौद्धिक संपदा संगठन के गठन होने से राज्यों की यह क्षमता काफी सीमित हो गई है।

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन वीपो पूरी दुनिया में बौद्धिक संपदा अधिकारों का संरक्षण करने वाली एजेंसी है। वीपो बौद्धिक संपदा के संबंध में संबंधित देशों के साथ होने वाली संधियों को प्रोत्साहन देने के साथ ही, राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली विधि निर्माण को सुनिश्चित करता है। नए-नए आविष्कार और नए-नए ज्ञान के चलते भारत सदियों से पूरी दुनिया में जाना जाता रहा है।

भारत ने भी अपनी एक बौद्धिक अधिकार प्रणाली स्थापित की है जो विश्व व्यापार संगठन के नियमों के तहत है। भारत द्वारा अपनी बौद्धिक संपदा को संरक्षण देने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के बौद्धिक संपदा माहौल में काफी बदलाव आया है। यूएस चेंबर आॅफ कॉमर्स की ग्लोबल इनोवेशन पॉलिसी सेंटर यानी जीआईपीसी द्वारा वर्ष 2019 में जारी अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक सूचकांक में भारत ने 8 वें पायदान की छलांग के साथ 36 वां स्थान हासिल किया है। जीआईपीसी ने यह सूचकांक दुनिया की 50 अर्थव्यवस्थाओं के विश्लेषण के बाद जारी किया है।

इससे पहले वर्ष 2018 की सूची में भारत को 44 वां स्थान प्राप्त हुआ था। 2019 में जारी हुई सूची में शीर्ष 5 देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और स्वीडन शामिल हैं। इस सूची में पाकिस्तान 47 में नंबर पर और वेनेजुएला आखिरी नंबर पर है। जीआईपीसी द्वारा जारी रैंकिंग 45 मानकों पर निर्धारित की जाती है। इनमें पेटेंट, कॉपीराइट और व्यापार गोपनीयता का संरक्षण शामिल होता है। जीआईपीसी ने अपनी रिपोर्ट में भारत की तारीफ करते हुए कहा कि भारत की स्थिति में सुधार, भारतीय नीति निमार्ताओं के जरिए घरेलू और विदेशी निवेशकों के लिए समान रूप से नवोन्वेशी पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने के प्रयास को दशार्ता है। 2019 में जारी सर्वेक्षण में भारत को 3604 फीसदी अंक मिले, जबकि 2018 में ये 3007 फीसदी ही था। रिपोर्ट के मुताबिक सूची में शामिल 50 देशों में भारत की स्थिति में सबसे ज्यादा सुधार हुआ है। वर्ष 2015 में भारत में कुल 6022 पेटेंट प्रदान किए गए। 2016 में 8248 और 2017 में 12287 पेटेंट प्रदान किए गए। वर्ष 2017 में से दिए गए कुल पेटेंट में से 1712 भारतीय संस्थाओं और लोगों को प्रदान किए गए। जबकि 10675 पेटेंट विदेशी संस्थाओं और लोगों को दिए गए।

आज अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वार में एक बड़ा मसला बौद्धिक संपदा को लेकर भी है। दिलचस्प है कि विश्व बौद्धिक संपदा दिवस के दिन ही अमेरिका ने चीन समेत 11 देशों को बौद्धिक संपदा की चोरी और पेटेंट कानून की अवहेलना के आरोप में काली सूची में डाल दिया है। यूएस ने बौद्धिक संपदा चोरी और पेटेंट का पालन न करने के मामले में भारत और चीन, अल्जीरिया, अर्जेंटीना समेत 11 देशों को काली सूची में डाल दिया है। यूएस ने अपनी सालाना रिपोर्ट स्पेशल 301 में कहा है कि यह देश व्यापार कानून में बौद्धिक संपदा और पेटेंट से जुड़े नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं।

अमेरिका समेत विकसित देशों का विकासशील देशों के प्रति यह रवैया इनकी एकाधिकार नीति को दशार्ता है। अमेरिका द्वारा भारत का काली सूची में डाला जाना द्विपक्षीय व्यापार पर एकाधिकार जमाने का छलावा प्रतीत होता है। बौद्धिक संपदा से जुड़े नियमों और कानूनों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और अधिक स्पष्ट और कड़ाई से लागू करने की दिशा में काम करने की बजाए अमेरिका जैसे विकसित देश नियमों की आड़ में भारत जैसे विकासशील देशों की व्यापारिक और आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।

अब समय आ गया है कि विश्व बौद्धिक संपदा संगठन के सामने भारत अपनी मांगों को रखकर अमेरिका की एकाधिकार वाली पक्षपातपूर्ण नीति का विरोध करे। अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वार की बात करें तो चीन तकनीक के क्षेत्र में अमेरिका को कड़ी टक्कर दे रहा है। रोबोटिक्स के मामले में विश्व बाजार में चीन ने अपनी धाक जमा ली है। यही वजह है कि बाजार की प्रतिस्पर्धा को लेकर अमेरिका- चीन आपस में बौद्धिक संपदा चुराने और कानूनों की अनदेखी करने का आरोप लगाते हैं। वहीं, अमेरिका बौद्धिक संपदा और पेटेंट के क्षेत्र में अपना एकाधिकार बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ रहा है।

अमेरिका के खिलाफ भारत भी बौद्धिक संपदा और पेटेंट को लेकर बड़ी लड़ाई लड़ चुका है। 1997 में यूएस पेटेंट आफिस को हल्दी पर दिया अपना पेटेंट रद्द करना पड़ा। भारत ने दावा किया था की हल्दी एक भारतीय देसी पौधा है। वहीं, 2001 में भी भारत ने अमेरिका के खिलाफ एक निर्णायक लड़ाई लड़ी थी। जब अमेरिका की एक कंपनी ने बासमती चावल पर पेटेंट हासिल कर लिया था। भारत ने अमेरिका पर देसी उपज की चोरी करने का आरोप लगाया। जिसे अमेरिकी कोर्ट ने जायज ठहराया था। बौद्धिक संपदा और पेटेंट में असली प्रतिस्पर्धा यूएस और चीन के बीच जारी है। लेकिन अमेरिका दुनिया में अन्य देशों पर भी अपना वर्चस्व जताता है। जाहिर है कि अमेरिका द्वारा बौद्धिक संपदा चोरी और पेटेंट का पालन न करने के मामले में भारत की काली सूची में जाना चिंता का विषय है।

-अश्वनी शर्मा

 

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