हाल ही में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भारत की जीडीपी में 10 फीसदी से अधिक की गिरावट का अनुमान लगाया, जबकि कुछ माह पूर्व आईएमएफ ने 4.5 फीसदी गिरावट का अनुमान लगाया था। जिस बात ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है, वह है बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति जीडीपी का आंकड़ा। आईएमएफ के अनुमान के मुताबिक 2020 में एक औसत बांग्लादेशी नागरिक की प्रति व्यक्ति आय एक औसत भारतीय की आय से अधिक होगी। आईएमएफ के अनुमान के मुताबिक बांग्लादेश का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद का आंकड़ा 4 फीसदी से बढ़कर 1888 डॉलर हो जाएगा, जबकि भारत का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 10.5 फीसदी बढ़कर 1877 डॉलर रह जाएगा।
सवाल उठता है कि यह कैसे संभव है? आमतौर पर, देशों की तुलना जीडीपी के आधार पर की जाती है। आजादी के बाद अधिकांश बार इन गणनाओं के आधार पर अर्थव्यवस्था बांग्लादेश से बेहतर रही है। भारत की अर्थव्यवस्था बांग्लादेश से 10 गुना बड़ी है और हर साल तेजी से बढ़ी है। हालांकि प्रति व्यक्ति आय में एक और कारक शामिल है, कुल जनसंख्या। कुल जनसंख्या से कुल जीडीपी को विभाजित करके प्रति व्यक्ति जीडीपी निकाली जाती है। ऐसे में ज्यादा जनसंख्या प्रति व्यक्ति जीडीपी के आँकड़े को कम कर देता है और भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा जनसंख्या वाला देश है। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में 2004 के बाद से तेजी से जीडीपी वृद्धि दर देखी जा रही है।
बांग्लादेश ने कैसे किया कमाल?
बांग्लादेश ने न केवल विनिर्माण और निर्यात आधारित उत्पादन और रोजगार में वृद्धि के साथ संरचनात्मक बदलाव किए हैं। बल्कि उसने सामाजिक संकेतकों, आय स्तर और ग्रामीण इलाकों में उद्यमिता के स्तर में भी उल्लेखनीय वृद्धि की है। इसमें लघु वित्त संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। विश्व बैंक के 2014 के एक अध्ययन में, बांग्लादेश को माइक्रो क्रेडिट कार्यक्रमों के दीर्घावधि लाभों को देखा जा सकता है। इससे ज्ञात होता है कि माइक्रो क्रेडिट कार्यक्रमों से ग्रामीण परिवारों की आय में वृद्धि हुई। फलत: वर्ष 2000 से 2010 के दशक में कुल गरीबी 10 फीसदी से ज्यादा कम हो गई। लघु कर्ज कार्यक्रमों के द्वारा निचले स्तर के लोगों के आर्थिक और सामाजिक विकास की दिशा में प्रयास के लिए 2006 में ग्रामीण बैंक और उसके संस्थापक मोहम्मद युनूस को नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया था। बांग्लादेश के माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं के काम में महिलाएं केन्द्र में रहीं।
विश्व बैंक के 2019 की एक रिपोर्ट में कहा गया कि बांग्लादेश ने लैंगिक समानता के कई पहलुओं में सफलता हासिल की है, जिसमें महिलाओं और लड़कियों के लिए जीवन के हर क्षेत्र में अवसर तैयार हुए हैं। इससे प्रजनन दर में कमी आई है, वहीं स्कूलों में लैंगिक समानता में वृद्धि हुई है। बांग्लादेश ने कपड़ा उद्योग में भी आपदा को अवसर में बदला। बांग्लादेश के कपड़ा उद्योग के लिए वर्ष 2013 में राना प्लाजा किसी बड़े झटके से कम नहीं थी। कपड़ा फैक्ट्री वाली यह बहुमंजिला इमारत गिर गई और 1100 से ज्यादा लोग मारे गए। इसके बाद वहाँ की सरकार ने नियम कानूनों में कई तरह के बदलाव किए, फैक्ट्रियों को अपग्रेड किया गया। 2013 के बाद से वहाँ ऑटोमेटिक मशीनों का व्यापक रूप से प्रयोग हो रहा है। सरकार ने छोटे-छोटे इकाइयों का समूहीकरण कर उन्हें बड़ी इकाइयों में बदला। इस क्षेत्र में महिलाओं की भी मजबूत उपस्थिति हैं। कपड़ा उद्योग से बांग्लादेश में 40.5 लाख लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिला हुआ है। बांग्लादेश के कुल निर्यात में रेडीमेड कपड़ों का योगदान 80 फीसदी है।
भारत में भी कृषि के बाद कपड़ा उद्योग रोजगार देने वाला दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है। भारतीय कपड़ा उद्योग को प्रथमत: 2016 की नोटबंदी से झटका लगा। हालांकि इससे यह क्षेत्र जल्द ही उबर ही रहा था, तभी 2017 में इसे जीएसटी से दोबारा झटका लग गया। इसके साथ ही आधुनिकीकरण के अभाव के कारण भारतीय कपड़े वैश्विक बाजार में महंगे हो जा रहे हैंं, जबकि ऑटोमेटिक मशीनों के कारण बांग्लादेश के कपड़े वैश्विक बाजार में मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। गुजरात में सूती वस्त्र की 118 मिलें थी, जिसमें अकेले अहमदाबाद में 67 मिलें सूती वस्त्र उत्पादन करती थी। परन्तु अब उनमें से कई फैक्टरियाँँ बंद होकर मॉल में बदल गई हैं।
बांग्लादेश ने कपड़ों के निर्यात में वृद्धि के लिए इसमें ‘ग्लोबल वेल्यू चेन'(जीवीसी) एकीकरण पर बल दिया। इससे उसके कपड़ों की जमकर ग्लोबल ब्रांडिंग भी हुई। भारत के शीर्ष निर्यात क्षेत्रों में शामिल मोटर वाहन, कपड़ा तथा आभूषण का जीवीसी एकीकरण उच्चतम स्तर पर था, लेकिन पिछले 4 वर्षों से इन तीनों क्षेत्रों में भारत का जीवीसी एकीकरण गिरा है। बांग्लादेश ने चीन-अमेरिका ट्रेड वार का प्रयोग भी अवसर के रूप में किया। 2018 से प्रारम्भ हुए इस तनाव के बीच चीन ने कपड़ा उद्योग के स्थान पर भारी भरकम उद्योगों पर ध्यान केन्द्रित किया।
ऐसे में चीन से कपड़ा क्षेत्र में जो स्थान रिक्त हुए, उसे बांग्लादेश ने अविलंब पूर्ण कर दिया। कोरोना के कारण चीन से जब कंपनियां बाहर जाने का प्लान बना रही थी, तब भी बांग्लादेश ने उन्हें आकर्षित करने का प्रयास किया तथा लगभग दो दर्जन कंपनियों ने चीन से बांग्लादेश का रूख किया। इसमें से 18 कंपनियाँ तो जापान की ही हैं। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में विदेशों में काम करने वाले 25 लाख बांग्लादेशियों की भूमिका भी बड़ी है। उसमें सालाना 18 फीसदी की वृद्धि भी हो रही है। विदेश से आने वाली रकम जीडीपी का 6 फीसदी है।
निष्कर्ष: भारत की अर्थव्यवस्था एवं व्यापार सम्मिश्रण बांग्लादेश से काफी अधिक विविध है। विदेश से प्रेषित धन, पोर्टफोलियो पूँजी एवं प्रत्यक्ष विदेशी पूँजी निवेश के बीच बेहतर संतुलन भी भारतीय अर्थव्यवस्था में देखी जा सकती है। ‘ईज ऑफ़ डूइंग बिजनस’ में भी बांग्लादेश काफी पीछे है। परियोजनाओं के लिए वहाँ फास्ट ट्रेक क्लियरेंस की सुविधा नहीं है। भारतीय अर्थव्यवस्था गंभीर चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ती रही है। बांग्लादेश के विकास में भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। बांगलादेश के साथ मुक्त व्यापार समझौता कर भारत ने उसे अपने बाजार में अत्यंत सुलभ पहुँच भी उपलब्ध कराई है।
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