मुकाम तलाशते रिश्ते

India and Bangladesh

जून 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बांग्लादेश यात्रा के बाद भारत और बांग्लादेश के बीच आपसी विश्वास और सद्भाव का जो माहौल बना, अब प्रधानमंत्री शेख हसीना की भारत यात्रा के बाद वह और अधिक पुखता हुआ है। शेख हसीना इससे पहले अप्रेल 2017 में भारत आई थीं। इस दौरान दोनों देशों के बीच आर्थिक मुद्दों सहित विभिन्न क्षेत्रों में 22 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए थे। इस बार सात समझौते हुए तथा बांग्लादेश से एलपीजी इंपोर्ट समेत तीन परियोजनाओं को आंरभ किया गया। तीनों ही परियोजनाओं की लॉन्चिंग विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए की गई।

बांग्लादेश और भारत में संसदीय चुनाव होने के बाद हसीना की यह पहली भारत यात्रा है। इस बार वे विश्व आर्थिक मंच (डब्लयूइएफ) द्वारा आयोजित भारत आर्थिक शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए बतौर मुख्य अतिथि की हैसियत से भारत आयी थीं। हसीना की भारत यात्रा के दौरान इस बात की भी उम्मीद जा रही थी कि दोनों देश रोहिंग्या और तीस्ता नदी जल बंटवारे के मुद्दों पर भी चर्चा कर सकते हैं। लेकिन दोनों ही मुददों को भविष्य की वार्ताओं के लिए टाल दिया गया। इससे पहले मोदी और हसीना न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 73 वें सत्र के मौके पर मिले थे, जहां दोनों नेताओं ने आतंकवाद के खिलाफ अपने जीरो टोलेरेंस के दृष्टिकोण को तो दोहराया ही, साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने शेख हसीना को विश्वास दिलाया कि रोहिंग्या के मुद्दे पर उन्हें चिंतित होने की जरूरत नहीं है।

छुट-पुट सीमा विवाद को छोड दें तो भारत और बांग्लादेश के बीच संबंध हमेशा से ही मैत्रीपूर्ण रहे हैं। भारत के सभी पड़ोसी देशों में बांग्लादेश ही ऐसा इकलौता पड़ोसी है, जिसके जन्म के समय से ही भारत के साथ अच्छे रिश्ते रहे हैं। शेख हसीना का भी भारत का साथ गहरा जुड़ाव रहा है। 15 अगस्त 1975 को जब बांग्लादेश में सेना के गुट ने शेख मुजीबुर रहमान के घर पर हमला किया तो शेख हसीना के परिवार के अधिकांश सदस्य मौत के घाट उतार दिए गए थे। उस कठिन वक्त में हसीना और उनके पति डॉक्टर वाजेद को भारत ने शरण दी थी। इतने गहरे और आत्मिक संबंधों के बावजूद आज तक भारत और बांग्लादेश के संबंध किसी निश्चित मुकाम को तलाशते दिखाई दे रहे हैं।

प्रश्न यह पैदा होता है कि बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में महत्ती भूमिका निभाने वाले भारत के प्रति बांग्लादेश के मन में कृतज्ञता के भाव क्यों नहीं जाग रहे हैं। दोनों देशों के बीच शिक्षा, सुरक्षा, व्यापार, विज्ञान और तकनीक सहित विभिन्न क्षेत्रों में एक सौ से अधिक समझौते हो चुकने के बावजूद आपसी विश्वास की वह तस्वीर क्यों नहीं उभर सकी है, जो उभरनी चाहिए थी। क्या इसे बांग्लादेश की अति उत्साही प्रधानमंत्री की भारत से लगातार अपेक्षाओं की पूर्ति की उम्मीद कहा जाए या भारत की वह स्वयं निर्मित धारणा जिसमें भारत ने यह माना ही लिया है कि बांग्लादेश पर किए गए अहसानों के चलते वह भारत से कभी बाहर जा ही नहीं सकता है।

सच तो यह है कि भारत अपनी इसी धारणा के कारण बांग्लादेश में मिलने वाले अवसरों को हाथ से जाने देता रहा हैं। रोहिंग्या शरणार्थियों के मामले में भी भारत का रवैया लगभग उदासीन ही रहा है। भारत चाहता तो बांग्लादेश और म्यांमार को समझौते के लिए राजी कर सकता था। शेख हसीना और आंग सान सू ची दोनों भारत समर्थक और भारत के प्रति गहरा लगाव रखने वाली नेता है। चीन ने आगे बढकर इस अवसर को लपक लिया। न्यूयॉर्क में बांग्लादेश और म्यांमार के बीच चीन की मध्यस्थता में हुई बातचीत के बाद रोहिंग्या शरणार्थियों की वतन वापिसी का रास्ता खुल सका।

यह ठीक है कि बांग्लादेश ने पिछले एक-डेढ दशक में अभूतपूर्व तरीके से उन्नति की है। आज उसे दक्षिण एशिया का नया टाइगर कहा जाने लगा है। उसकी विकास दर आठ फीसदी है जबकि भारत की अर्थव्यवस्था की विकास दर घटकर पांच फीसदी के आस-पास पहुंच गई है। लेकिन इसके बावजूद भारत ने बांग्लादेश के साथ रिश्तों में हमेशा तरजीह दी है। मई 2016 में भारत और बांग्लादेश बीच हुए परमाणु समझौते को दक्षिण एशिया की राजनीति में बडे बदलाव के तौर पर देखा गया था।

खासकर ऊर्जा के क्षेत्र में इस समझौते को बेहद कारगर समझा गया । वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद ‘नेबर फर्स्ट’ की जो नीति अपनाई वो बांग्लादेश में ही सबसे ज्यादा प्रभावी साबित हुई है। भारत जानता है कि बांग्लादेश को विकास हेतु ऊर्जा की महत्ती आवश्यकता है इस लिए भारत बांग्लादेश को खुलना और त्रिपुरा के जरिये बिजली की आपूर्ति के लिए सहमत हुआ है। इसके अलावा भारत, बांग्लादेश और भूटान एक जल विधुत परियोजना पर काम करने को राजी हुए हंै जिसके जरिये पैदा होने वाली बिजली की आपूर्ति भारत के मार्फत बांग्लादेश को की जाएगी।

जनवरी 2009 में शेख हसीना के दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद से भारत और बांग्लादेश ने लंबे समय से चले आ रहे आपसी विवादों को हल करने की दिशा में कदम उठाए हैं। वह पिछली बार करीब सात साल पहले भारत आई थी। उनके पिछले दौरे में दोनों देश के बीच कई ऐतिहासिक समझौते हुए थे जिनमें पहली बार नदी बेसिन प्रबंधन पर बनी सहमति भी शामिल है। दोनों देशों के रिश्तों में नदियों के पानी के बंटवारे का प्रश्न हमेशा से ही विवाद का कारण रहा है।

हालांकिसाल 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह नदी जल बंटवारे को लेकर तीस्ता समझौता करना चाहते थे लेकिन ममता बनर्जी के विरोध के चलते यह समझौता नहीं हो पाया था। इससे बांग्लादेश में आज भी नाराजगी के भाव बने हुए है। शेख हसीना ने अपने इसे दौरे में भी प्याज को लेकर मोदी सरकार से अपनी नाराजगी जाहिर की। हालांकि विदेश मंत्रालय ने आश्वस्त किया है कि प्याज पर बांग्लादेश की प्रधानमंत्री ने जो चिंता जाहिर की है उसका समाधान किया जाएगा।

शेख हसीना की आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति भी भारत के लिए महत्त्वपूर्ण है। भारत ने पूर्व में खालिदा जिया सरकार से कई बार उल्फा की गतिविधियों के बारे में शिकायत की थी लेकिन खालिदा सरकार ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की। इसके विपरित शेख हसीना ने हमेशा से इस बात को दौहराया है कि वह अपने यहां भारत विरोधी गतिविधि की अनुमति नहीं देगी। उन्होंने आतंकवाद को खत्म करने में मजबूत इच्छाशक्ति दिखाई है। उम्मीद इस बात की भी की जा रही थी कि हसीना इस यात्रा के दौरान बांग्लादेश में डीजल सप्लाई के लिए पाईपलाईन बिछाने और भारत से बांग्लादेश को बिजली की सप्लाई करने के मुद्दे पर भी चर्चा हो सकती है।

हालांकि हसीना का भारत दौरा ऐसे समय मे हुआ है जबकि एक ओर चीन पूरे मनोयोेग से भारत की घेराबंदी में जूटा हुआ वहीं दूसरी ओर भारत में नेशनल रजिस्टर आॅफ सिटिजन (एनआरसी) का मुद्दा छाया हुआ है, हालांकि एनआरसी पर विदेश मंत्रालय ने यह कहकर स्थिति साफ कर दी है कि पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में हो रहा हैं। फिर भी दोनों देशों के प्रधानमंत्रीयों के नियमित दौरों के चलते दोनों देश अपने संबंधों को नये स्तर पर ले जाने के लिए सहमत हुए हैं। छूट-पूट विवादों को छेड़ दें तो दोनों देशों के बीच विश्वास व भरोसे के संबंध मजबूत हुए है।

मोदी और हसीना दोनों ही अपने- अपने देश को आर्थिक प्रगति की दिशा में ले जाने के लिए प्रयासरत है। ऐसे में कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में दोनों देशों के संबंध व्यापार और वाणिज्य के दायरे से निकल कर कई अन्य मुकाम तय करते हुए दिखेगें। कुलमिलाकर शेख हसीना की भारत यात्रा महत्वपूर्ण ही कही जानी चाहिए। महत्व के कौन-कौन से कारकों को मोदी और हसीना छू पाते हंै यह आने वाले दिनों में स्पष्ट हो सकेगा।
एन.के.सोमानी

 

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