जैसे-जैसे देश आधुनिकता की तरफ बढ़ता जा रहा है, (Rising Violence) नया भारत-सशक्त भारत-शिक्षित भारत बनाने की कवायद हो रही है, जीवन जीने के तरीको में खुलापन आ रहा है, वैसे-वैसे महिलाओं पर हिंसा के नये-नये तरीके और आंकड़े भी बढ़ते जा रहे हैं। पिछले दिनों दिल्ली के शाहबाद डेयरी क्षेत्र में एक किशोरी की क्रूरता से की गई हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया है। निस्संदेह, यह घटना स्तब्ध करने वाली है लेकिन इस वारदात का दूसरा दुखद पहलू घटना के वक्त पास से गुजरते लोगों का गैरजिम्मेदार व्यवहार है। समाज कितना संवेदनहीन हो चला है कि एक दरिंदा किशोरी पर सरेआम चाकू से वार करता रहा और गुजरते लोग मूकदर्शक बने रहे।
इससे पहले दिल्ली में फिर एक और श्रद्धा हत्याकांड जैसा त्रासद, (Rising Violence) अमानवीय एवं खौफनाक मामला सामने आया था। समाज को उसकी संवेदनशीलता का अहसास कैसे कराया जाए। समाज में उच्च मूल्य कैसे स्थापित किए जाएं, यह चिंता का विषय है। आखिर लोग क्यों नहीं सोचते कि हिंसा की यह आग एक दिन उनके अपनों को भी लील सकती है। अब इस मामले में पूरी तेजी के साथ न्याय सुनिश्चित किया जाना चाहिए। ऐसे मामलों में त्वरित सजा से ही समाज में सही संदेश दिया जा सकता है।
दरअसल, सोशल मीडिया पर जो अपसंस्कृति की बाढ़ आई है वह हमारे युवाओं को लील रही है। विडंबना यह है कि समाज का दायरा जैसे-जैसे उदार एवं आधुनिक होता जा रहा है, जड़ताओं को तोड़कर युवा वर्ग नई एवं स्वच्छन्द दुनिया में अलग-अलग तरीके से जी रहा है, संबंधों के नए आयाम खुल रहे हैं, उसी में कई बार कुछ युवक अपने लिए बेलगाम जीवन सुविधाओं को अपना हक समझ कर ऐसी हिंसक एवं अमानवीय घटनाओं को अंजाम दे रहे है।
निस्संदेह, आज के समाज में आते खुलेपन के चलते लड़कियां स्वतंत्र फैसले लेने लगी हैं। मगर उन्हें सामाजिक तौर पर भी मजबूत बनना होगा। देश के नीति-नियंताओं को सोचना होगा कि समाज की आपराधिक तटस्थता को दूर करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं। जाहिर है, समाज की विकृत सोच को बदलना ज्यादा जरूरी है। बालिकाओं के जीवन से खिलवाड़ करने, उन्हें बीमार मानसिकता के साथ लिव-इन रिलेशन में डालने, उनके साथ अपराध करने की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने और पुलिस व्यवस्था को और चाक-चौबंद करने की मांग के साथ समाज के मन-मिजाज को दुरुस्त करने का कठिन काम भी हाथ में लेना होगा। यह घटना शिक्षित समाज के लिए बदनुमा दाग है। अगर ऐसी घटनाएं होती रहीं तो फिर कानून का खौफ किसी को नहीं रहेगा और अराजकता की स्थिति पैदा हो जाएगी। ऐसी हिंसा के खिलाफ महिलाओं को स्वयं आवाज बुलंद करनी चाहिए।