दिल्ली के एक मदरसा में स्कूली बच्चों दरमयान हुई हाथापाई में आठ वर्षीय बच्चे की मौत हो गई। यह मामला जितना खतरनाक है उतना ही हैरानीजनक है कॉलेजों, विश्वविद्यालयों में विद्यार्थी गुटों के दरमयान झड़पें तो अक्सर होती आईं हैं परंतु स्कूल में 8-10 साल के बच्चों में हिंसक प्रवृत्ति उभरना बहुत खतरनाक है। दरअसल समाज शास्त्रियों व बुद्धिजीवियों ने दो-तीन दशक पहले ही सरकार को इस बात से अवगत करवा दिया था कि देश में जिस तरह सामाजिक, आर्थिक व संस्कृंतिक मॉडल लाया जा रहा है, वह आने वाली पीढ़ियों को खतरनाक मोड़ पर ले जाएगा, फिल्मों में बढ़ रहे हिंसक दृश्य, हाथों में हथियार लेकर गोलियां चलाते हुए गायकों द्वारा गाए जा रहे गीत, कम्प्यूटर और मोबाईल फोनों पर आ रही बच्चों के लिए हिंसक गेम्स बच्चों को हिंसक, घृणा व बदलाखोर बना रही है। टी.वी. चैनलों पर चल रहे सीरियलों ने हिंसा के बीज बच्चों के दिमाग में बो दिए हैं। मोस्ट वांटेड, हिंसा वाले अन्य धारावाहिक सीरियलों में विषयवस्तु हिंसा आनी ही थी, आज पारिवारिक कहानियों को पेश करने वाले सीरियलों में साजिशें रचने, हत्या करने, धोखा देने जैसे अवगुणों को परिवारों की विशेषता बनाकर पेश किया जा रहा है। सास-बहु, ननद-भाभी, देवरानी -जेठानी, भाई-भाई एक दूसरे के खिलाफ साजिश रचते दिखाए जाते हैं। सीरियलों की विषय सामग्री ने जहां पारिवारिक रिश्तों को संदेहास्पद बना दिया है वहीं हिंसा को हर मसले के हल के तौर पर पेश किया जा रहा है। इस बुुरे मनोरंजन का प्रभाव ही है कि यमुनानगर में एक विद्यार्थी ने अपनी प्रिंसीपल को स्कूल में गोली मार दी। बताया जा रहा है कि उस विद्यार्थी की कुछ दिन पहले ही एक हिंसक गाना गाने की वीडियो भी सामने आई थी। बच्चों में बढ़ रही हिंसा की प्रवृत्ति को सरकार गंभीरता से नहीं ले रही। सरकार इसे लोगों का अपना मामला मान कर नजरअन्दाज कर रही है परंतु यह गलतियां सरकार की हैं, जिसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है। बच्चे बड़े होकर बदमाश न बनें, इसके लिए सरकार को नीतियों में सुधार लाने की जरूरत है। सरकार जब तक नहीं जगती, बच्चों के माता-पिता को भी चाहिए कि वह बच्चों को हिंसक प्रवृत्ति पैदा करने वाले मनोरंजन से दूर रखें। दया-नम्रता, माफी, प्यार, पशु -पक्षियों के साथ मोहब्बत जैसे संस्कार देने के साथ ही बच्चे फूलों का गुलदस्ता भी बन सकते हैं अन्यथा, जो अमेरिका में लंबे समय से हो रहा था वह हमारे देश में भी होना शुरू हो चुका है। देरी के साथ ही सही सचेत होना अब समय की भी मांग है।
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