स्वास्थ्य ढ़ांचे पर बढ़ रहा दबाव है डरावना

Increasing pressure on health infrastructure is scary

कोरोना संक्रमण में तेज उछाल आने के बाद अस्पतालों पर काफी दबाव बढ़ गया है। इसी बीच ऑक्सीजन, बेड की कमी के साथ-साथ जरूरी दवाओं के अभाव की खबरें सुर्खियां बनने लगी हैं। इस तरह की सूचनाएं समाधान तलाशने के बजाय हमें ज्यादा डरा रही हैं। अभी कोरोना जांच और इलाज में जो व्यावहारिक दिक्कतें हो रही हैं, उसकी कई वजहें हैं। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों की टीम ने प्रकाशित शोध की समीक्षा की है और कोरोना के हवाई मार्ग या हवाई संक्रमण की प्रबलता के समर्थन में साक्ष्यों की पहचान की है। यह संक्रमण मुख्य रूप से वायु के माध्यम से ही हो रहा है।

कुल मिलाकर, यह समझ लेना चाहिए कि हवा के जरिए होने वाले संक्रमण के सुबूत मजबूत हैं। अत: यह जरूरी है कि ऐसे संक्रमण को रोका जाए। खांसी, जुकाम व हल्का बुखार होने पर अब ढील नहीं बरती जानी चाहिए तुरंत डॉक्टर के पास जाकर उपचार करवाना ही उचित है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बहुत कम जांच हो रही है। छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में सैंपल को जांच के लिए काफी दूर भेजा जाता है। इसकी एकमात्र वजह यही है कि आरटी-पीसीआर लैब हर जगह मौजूद नहीं है।

नतीजतन, दूसरी लहर में जब संक्रमण विशेषकर नए इलाकों (ग्रामीण हिस्सों) में फैला, तब वहां के सैंपल अत्यधिक मात्रा में शहरी लैब में पहुंचने लगे। शहरों में संक्रमण पहले से था। फिर, हल्का सर्दी-जुकाम होने पर भी हम तुरंत आरटी-पीसीआर टेस्ट कराने को उत्सुक होने लगे। जिन्हें कोरोना का कोई लक्षण नहीं था, वे भी ट्रेसिंग के नाम पर टेस्ट कराने लगे। इन सब वजहों से जांच-घर पर काफी ज्यादा बोझ बढ़ गया, और जो आरटी-पीसीआर रिपोर्ट 24 घंटे के अंदर मिल जाती थी, अब 48 या 72 घंटों के बाद मिलने लगी है। अब लचीले फैसलों का समय बीत चुका है। यदि हम कड़ाई नहीं करेंगे, तो मुसीबतों से घिरते चले जाएंगे। कोरोना का नया हमला सबके सामने है।

जरूरत वास्तविक आंकड़ों या हकीकत से मुंह चुराकर लोगों का मनोबल बनाए रखने की नहीं है। लोगों को जिम्मेदारी लेने के लिए पाबंद करना होगा। नेतृत्व वर्ग को समाज के सामने आदर्श प्रस्तुत करना होगा। चेहरा दिखाने के बजाय काम दिखाने का वक्त है? काम न दिखा, तो जो घाव लोगों की देह और दिल पर लगेंगे, उनका इलाज आने वाले कुछ दशकों तक नहीं हो पाएगा। संक्रमण के बढ़ते मामलों पर पटना हाईकोर्ट ने चिंता जताते हुए स्वास्थ्य विभाग की जमकर खिंचाई की है, तो यह स्वाभाविक है। ऐसे समय में न केवल जांच रिपोर्ट जल्दी आनी चाहिए, सभी के इलाज का मुकम्मल इंतजाम भी होना चाहिए।

गंभीर मरीजों को ही अस्पतालों में दाखिला मिले, बाकी मरीजों के लिए डॉक्टरों के होम विजिट की सुविधा हो। एक नियंत्रण कक्ष भी बनाया जा सकता है, जिसमें पर्याप्त संख्या में विशेषज्ञ डॉक्टर मौजूद हों और वे फोन पर मरीजों को उचित सलाह दें। उनकी चिंताओं को सुनकर उन्हें मानसिक तौर पर मजबूत भी बनाएं। घर के माहौल में मरीज कहीं बेहतर तरीके से ठीक हो सकता है। साफ है कि चुनौती भले ही कठिन है, लेकिन जरूरत लॉकडाउन की तरफ बढ़ने की नहीं, टीकाकरण को जितना हो सके बढ़ाने और मास्क लोगों तक मुफ्त पहुंचाने जैसे कदम उठाने की है।

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