बंगाल इस समय राजनीतिक दुशमनी पालने वाला दूसरा राज्य बन गया है। इससे पहले केरल भी ऐसी ही मिसाल था। बंगाल की ममता सरकार व भारतीय जनता पार्टी दरमियान चल रहा तकरार देश के लिए खतरनाक है। जिस तरह खरबुजे को देख कर खरबुजा रंग पकड़ता है यदि यह रूझान जारी रहा तो अन्य राज्यों में भी खास कर क्षेत्रीय पार्टियों का रवैया खतरनाक हो सकता है। बंगाल में भाजपा व तृणमूल कांग्रेस आर -पार की लड़ाई लड़ रहे हैं। इस बात का अंदाजा पहले था कि दोनों पार्टियां इस बार किसी भी हद तक जा सकती हैं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अपने तीखे तेवर के लिए जाने जाते हैं। ऊपर से यूपी के मुख्य मंत्री आदित्यानाथ योगी के बयान भी माहौल गरमा रहे हैं
। उधर ममता बैनर्जी भी सख़्त रवैये वाली नेता मानी जाती हैं ममता ने अमित शाह, आदित्यानाथ योगी व स्मृति ईरानी को रैली करने की स्वीकृति नहीं दी। अमित शाह की ओर से ममता सरकार को ललकारा गया तो दोनों पक्ष एक किस्म की जंग के लिए तैयार हो गए। संविधान में दी गई आजादी मुताबिक भाजपा नेताओं को बंगाल में रैलियां करने का अधिकार है और ममता का कानून के नाम पर रूकावट पैदा करना तानाशाह रवैया है परंतु इस मामले में भाजपा नेताओं पर भी सवाल उठ रहे हैं। दरअसल भाजपा की ओर से भी जानबूझ कर इस मामले को गर्माया गया।
अदालत द्वारा मामले का कोई हल निकालने की बजाय भाजपा नेताओं ने तीखे शब्दों से लबरेज चेतावनी ही दी। दरअसल भाजपा नेताओं का उद्देश्य बंगाल के नाम पर अन्य राज्यों में अपना प्रभाव बढ़ाना था परंतु टकराव किसी भी मसले का हल नहीं। संविधान में विश्वास रखने वाले लोगों को संविधान के तौर-तरीकों के साथ ही काम करना चाहिए। वैसे भी बंगाल किसी अन्य देश का हिस्सा नहीं जहां सुप्रीम कोर्ट की पहुंच न हो। इस मामले में ममता बैनर्जी भी राज्य की जनता की क्षेत्रीय भावनाओं को भुनाने में कामयाब रही है। राजनैतिक टकराव के छिपे हुए अर्थ बहुत बड़े होते हैं और पार्टियां अपने-अपने उद्ेदश्यों का हल करती हैं परंतु ऐसा रूझान इतनी अधिक नफतर पैदा कर देता है, जैसे लोग दो अलग-अलग देशों के ििनवासी हों। देश की एकता व अखंडता के संदेश देने वाले नेता लोगों को राजनीतिक तौर पर न बांटे। राजनीतिक पार्टियों को कुर्सी खातिर लोगों को राजनीतिक दुशमनी की आग में झोंकने से परहेज करना चाहिए।
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