भारत और यूरोपीय संघ में बढ़ती साझीदारी

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6 अक्तूबर को नई दिल्ली में आयोजित भारत-यूरोपीय संघ की 14वीं शिखर बैठक में दोनों पक्षों के बीच आतंकवाद रोधी कार्यवाही के क्षेत्र में घनिष्ठ सहयोग पर बल दिया गया। संयुक्त वक्तव्य में हाफिज सईद, दाउद इब्राहीम, जाकिर-उर-रहमान, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को आतंकवाद का स्रोत माना गया। वस्तुत: आतंकवाद पर अब सब देशों का ध्यान जा रहा है और यूरोप में बार बार आतंकवादी हमले होते जा रहे हैं। भारत पहले ही सीमा पार प्रायोजित आतंकवाद का शिकार रहा है। इस शिखर बैठक में व्यापार पर भी ध्यान दिया गया।

भारत और यूरोपीय संघ की विदेशी संबंधों में तालमेल नहीं है। यूरोपीय संघ वास्तव में आंतरिक दृष्टि से कार्य कर रहा है और विदेशी संबंधों के मामले में वह एक व्यापारिक समूह के रूप में कार्य करता है। भारत के विदेशी संबंध राजनीति और सुरक्षा तथा इसके आर्थिक हितों पर आधारित है। जबकि यूरोपीय संघ व्यापार और अर्थव्यवस्था पर अधिक ध्यान देता है और वह अपने लोकतंत्र को बढ़ावा देने, मानव अधिकारों की रक्षा, कानून का शासन, आदि राजनीतिक उद्देश्यों को नजरंदाज कर रहा है। चीन के साथ यूरोपीय संघ के घनष्ठि व्यापारिक संबंध वह अपने राजनीतिक उददेश्यों की कीमत पर निभा रहा है। इस बैठक तथा अन्य द्विपक्षीय बैठकों में यह असंतुलन दूर नहीं किया जा सका। भारत उन दस देशों में से है, जिसके यूरोपीय संघ से सामरिक संबंध हैं।

दोनों के बीच संबंधों की शुरूआत 1962 में हुई, जब भारत ने यूरोपीय संघ से कूटनयिक संबंध स्थापित किए। उस समय इसे यूरोपीय आर्थिक समुदाय के रूप मे जाना जाता था और अब दोनों पक्षों के बीच 55 वर्षों से कूटनयिक संबंध आगे बढ़ रहे हैं। वस्तुत: भारत में यूरापीय संघ की भूमिका और कार्यों के बारे में जागरूकता नहीं है।

अधिकतर शिखर बैठकों और द्विपक्षीय बैठकों में अक्सर लोकतंत्र, बहुलवाद और मानव अधिकार जैसे साझा मुद्दों पर ध्यान दिया जाता है। यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष जीन क्लाउड जंकनेर ने इंडिया प्रेस में लिखा ‘‘भारत और यूरोपीय संघ स्वाभाविक साझीदार हैं। दोनों के संबंध साझा मुद्दों पर आधारित हैं और ये संबंध कानून की शक्ति पर आधारित है, न कि शक्तिशाली पक्ष होने के आधार पर।’’ यह परोक्ष रूप से चीन पर टिप्पणी थी, जो दक्षिण चीन सागर में प्रादेशिक विस्तार कर रहा है।

यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क के अनुसार यूरोपीय संघ भारत के साथ स्वतंत्रता, लोकतंत्र और नियम आधारित वैश्विक व्यवस्था के सामान्य मूल्यों के आधार पर रणनीतिक भागीदारी बनाना चाहता है। प्रधानमंत्री मोदी भी दोनों देशों के बीच संबंधों के बारे में उत्साहित हैं। शिखर बैठक में उन्होंने कहा कि भारत यूरोपीय संघ के साथ अपनी बहुपक्षीय साझीदारी को महत्व देता है। विश्व के सबसे बडे लोकतंत्रों के रूप में हम अपनी रणनीतिक साझीदारी को अत्यधिक महत्व देते हैं और हमारे घनिष्ठ संबंध साझा मूल्यों पर आधारित है।’’

वस्तुत: ये बयान राजनीतिक सुखाभास और कूटनयिक शिष्टता को दर्शाते हैं और वास्तव में इन दोनों पक्षों के बीच रणनीतिक साझीदारी अधिक सफल नहीं है। उदाहरण के लिए मुक्त व्यापार समझौता जिससे भरत के आर्थिक विकास में मदद मिलती और जिसके लिए 2007 से बातचीत चल रही है, वह अभी भी अधर में लटका हुआ है।

भारत के वार्ताकारों का मानना है कि यूरोपीय कम लचीले और संरक्षणवादी हैं। जबकि यूरोपीय प्रतिनिधियों का मानना है कि भारत व्यापार बाधाओं को दूर नहीं कर रहा है, बाजार पहुंच नहीं दे रहा है, भौगोलिक संकेतकों का निर्माण नहीं कर रहा है और लोक खरीद को कठोर बना रहा है। इसके अलावा बौद्धिक संपदा अधिकारों को लेकर भी दोनों पक्षों में मतभेद है, जिसके चलते रणनीतिक साझीदारी में बाधा पड रही है।

भारत और यूरोपीय संघ के बीच सुदृढ़ साझीदारी की विपुल संभावनाएं हैं। यूरोपीय संघ भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है। भारत का 13.7 प्रतिशत व्यापार यूरोपीय संघ से होता है। जबकि चीन के साथ 11 प्रतिशत और अमरीका के साथ 9 प्रतिशत है। यूरोपीय संघ भारत में नौवां सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है।

2016 में भारत ने यूरोपीय संघ को 37.8 बिलियन यूरो का निर्यात किया जबकि दोनों पक्षों के बीच 70 बिलियन यूरो का व्यापार हुआ। भारत में लगभग 34 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यूरोपीय संघ से हुआ और भारत में छह हजार यूरोपीय कंपनियां कार्य कर रही हैं और पिछले एक दशक में दोनों देशों के बीच व्यावसायिक सेवाओं में व्यापार 10.5 बिलियन यूरो से बढकर 28.4 बिलियन यूरो तक पहुंचा। यूरोपीय संघ ने नई दिल्ली में यूरोपीय निवेश बैंक की स्थापना की और इस वर्ष के लिए 1.5 बिलियन यूरो का आवंटन किया। इस बैंक द्वारा लखनऊ और बंगलुरू मेट्रो परियोजनाओं तथा अनेक सौर ऊर्जा परियोजनाओं को वित्तीय सहायता दी जा रही है। यह सच है कि निवेश आ रहा है किंतु क्या भारतीय बाजार ऐसे निवेश को खपाने के लिए तैयार हैं। अल्का टेल के अध्यक्ष के अनुसार भारत के लोग बहुत अच्छे हैं किंतु भारत का बाजार बहुत खराब है। उसमें कितना बदलाव आया है?

राजनीतिक मोर्चे पर यूरोपीय संघ ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भारत की क्षेत्रीय भूमिका को स्वीकार किया है। वह एक क्षेत्रीय के रूप में सार्क की भूमिका को महत्वपूर्ण मानता है और अफ्रीका में भारत की भूमिका और हितों का भी ध्यान रखता है। इसीलिए यूरोपीय संघ ने अगले यूरोपीय संघ-अफ्रीकी संघ शिखर सम्मेलन में भारत को एक पर्यवेक्षक के रूप में आमंत्रित किया है। दोनों पक्षों ने मुस्लिम रोहिंग्या संकट में बढती कट्टरवादिता, ईरान के परमाणु कार्यक्रम, नार्थ कोरिया का मिसाइल दु:स्साहस, सीरिया में गृह युद्ध और अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण सहित अनेक क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर भी चर्चा की तथा दोनों पक्षों ने अफगानिस्तान के सतत लोकतांत्रिक, समृद्ध और शांतिपूर्ण विकास के लिए प्रतिबद्धता दर्शाई।

शिखर सम्मेलन में इस बात पर भी सहमति बनी कि उत्तरी कोरिया के परमाणवीयकरण के लिए जिम्मेदारी तय की जाए। यह चीन की ओर संकेत था और भारत तथा यूरोपीय संघ स्पष्ट रूप से चीन को संदेश देना चाहते थे कि उसे सामद्रिक विवादों के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के सामुद्रिक कानूनों का पालन करना चाहिए। इस आशंका के बारे में यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने के कारण भारत यूरोपीय संघ में रूचि कम लेगा। इस पर यूरोपीय आयोग के उपायध्यक्ष फेडेरिका लोगेरिनी ने कहा कि यह आशंका निराधार है।

उन्होंने कहा कि भारत के जर्मनी और फ्रांस जैसे प्रमुख यूरोपीय देशों के साथ संबंध सुदृढ हो रहे हैं। 1994 के सहयोग और विकास समझौते के बाद दोनों पक्षों की जनता के बीच संबंधों में प्रगाढता और सहयोग बढने की अपेक्षा की गयी। उसके बाद 2004 में भारत-यूरोपीय संघ साझीदारी बनायी गयी और 2005 में संयुक्त कार्य योजना बनायी गयी। जिसका 2008 में नवीनीकरण किया गया। सामरिक साझीदारी संधि में भारत को एक क्षेत्रीय और विश्व नेता के रूप में मान्यता दी गयी। इस संस्थागत विकास के बावजूद भारत और यूरोपीय संघ के बीच संंबध अपेक्षाओं पर खरे नहंी उतरे। भारत में जर्मनी के राजदूत मार्टिन नेह ने मुक्त व्यापार समझौते और निवेश के बारे में वार्ता फिर से शुरू करने पर बल दिया।

नि:संदेह भारत और यूरोपीय संघ के संबंधों में प्रगाढ़ता आ रही है। एक साझा व्यापार से लेकर अब यूरोपीय संघ में एक साझी मुद्रा है और यह एक समुदाय के रूप में उभर गया है। भारत ने भी आर्थिक रूप से प्रगति की है। अर्पै्रल 2014 में भारत में और नवंबर 2014 में यूरोपीय संघ में नेतृत्व परिवर्तन हुआ। किंतु दोनों के संबंधों में तेजी से प्रगति नहंी हुई।वस्तुत: भारत और यूरोपीय संघ को अपने संबंधों के बारे में गंभीरता से पुनर्विचार करना चाहिए। उन्हें अपने नौकरशाहों को दूरदृष्टि और सामंजस्यपूर्ण नीति अपनाने के लिए कहना चाहिए और यही भारत और यूरोपीय संघ के संबंधों के भविष्य को निर्धारित करेगा।

-डॉ. डीके गिरी