सामान खरीदना अधिक पसंद करेंगे, जहां से उनको सर्वाधिक लाभ मिलें | online business
इंटरनेट की मजबूत होती पकड़ के साथ आॅनलाइन बिक्री का असर भी लोगों के बीच बढ़ता जा रहा हैं। अब (online business) लोग बाजार से सामान खरीदने के बजाय वस्तुओं को अपने स्मार्ट फोन व कंप्यूटर से सीधे ही आॅनलाइन बुक करवा रहे हैं। ना बाजार के धक्के खाने की जरूरत और ना ही अपनी पसंदीदा वस्तु के लिए दुकान दर दुकान भटकने की आवश्यकता। हर प्रकार की वस्तुओं से अटे पड़े इस आॅनलाइन बाजार ने जहां एक ओर लोगों को उनकी पंसदीदा व जरूरत की चीजों को एक ही क्लिक में उपलब्ध कराने का काम किया हैं, तो वहीं दूसरी ओर आॅनलाइन बाजार यानी ई-कॉमर्स कंपनियों ने खुदरा व्यापारियों के पेट पर लात भी मारी हैं। ई-कॉमर्स कंपनियों के बढ़ते प्रभाव से मार्केट में घटती बिक्री व कम होती ग्राहक संख्या के कारण फुटकर व्यापारियों का व्यापार के प्रति मोहभंग होता जा रहा हैं। खासकर कीमती व बड़ी वस्तुओं के व्यवसायों के लिए आॅनलाइन बाजार एक बड़ी समस्या बनकर उभर रहा हैं क्योंकि ज्यादातर ग्राहक कीमती व बड़ी वस्तुओं की बिक्री आॅनलाइन ही करना अधिक पसंद कर रहे हैं। इसके पीछे कारण यह है कि आॅनलाइन बाजार से बिक्री किया गया सामान उन्हें मार्केट से बिक्री गए सामान के मुकाबले काफी हद तक किफायती व सस्ता मिल रहा है। जाहिर है कि ऐसी स्थिति में ग्राहक तो वही से सामान खरीदना अधिक पसंद करेंगे, जहां से उनको सर्वाधिक लाभ मिलें।
लोगों के बीच ई-कॉमर्स और आॅनलाइन खरीदारी का शौक परवान चढ़ता जा रहा हैं | online business
इतना ही नहीं, आॅनलाइन बाजार को प्रोत्साहित करने वाली ई-कॉमर्स कंपनियां ग्राहकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए तरह-तरह के आकर्षक कैशबैक व डिस्काउंट आॅफर की पेशकश भी ग्राहकों के सामने कर रही हैं। यानी एक तो पहले से ही चीजें सस्ती दरों पर मिल रही हैं और ऊपर से कैशबैक व अच्छा खासा डिस्काउंट का आॅफर ओर देकर कंपनियां ग्राहकों को आॅनलाइन खरीदारी करने के लिए लालायित ही नहीें कर रही हैं बल्कि पूरी तरह से बाध्य भी कर रही है। मजे की बात तो यह है कि बहुत-सी ई-कॉमर्स कंपनियां अपनी वेबसाइट पर अकाउंट बनाने तक के लिए दो सौ रुपये की खरीदारी का शानदार आॅफर दी रही हैं। सवाल है कि आखिर ई-कॉमर्स कंपनियां क्यों अपना नुकसान कर ग्राहकों का फायदा करने के लिए इतनी आमादा हो रही हैं? दरअसल कोई भी कंपनी या व्यापारी अपना नुकसान कभी भी नहीं करता। लेकिन कोई भी दुकानदार अपनी दुकानदारी जमाने के लिए प्रारंभ में नरम रुख जरूर अपनाता है। यूं समझे कि यहीं नरम रुख आजकल ई-कॉमर्स कंपनियां भारतीयों को आकर्षित करने के लिए अपना रही हैं। परिणामस्वरूप लोगों के बीच ई-कॉमर्स और आॅनलाइन खरीदारी का शौक परवान चढ़ता जा रहा हैं।
नकली बैग मिलने जैसी कई शिकयतें सामने आ रही हैं | online business
इस बीच ध्यान देने वाली बात यह है कि आॅनलाइन बाजार में भारत की कितनी कंपनियां हैं। भारतीय आॅनलाइन बाजार में दिनोंदिन विदेशी वाणिज्य कंपनियों का बढ़ता हस्तक्षेप कई घरेलू बाजार को तहस-नहस करके स्थानीय व्यापारियों को बेरोजगार बनाने के साथ ही देश को पुन: गुलाम बनाने का विदेशी षड्यंत्र तो नहीं रच रहा है। इतिहास गवाह है कि ट्रेड के जरिए ही दुनियाभर के देश ब्रिटेन और यूरोप गुलाम बन गए थे। अत: ट्रेड बस ट्रेड नहीं है बल्कि हमारी संप्रभुता से भी जुड़ा है। इस बात की क्या गारंटी है कि आज सस्ती मिलने वाली आॅनलाइन चीजें भविष्य में भी इतनी ही सस्ती दरों पर ग्राहकों के लिए उपलब्ध रहेगी। ऐसी स्थिति भी आ सकता है कि जब आॅनलाइन बाजार के कारण भारतीय घरेलू बाजार पूरा ध्वस्त हो चुका हो और ग्राहकों को महंगी दरों पर आॅनलाइन बाजार से सामान खरीदने के अलावा कोई विकल्प ही न मिलें। ऐसी आशंका इसलिए उत्पन्न हो रही है कि आॅनलाइन बाजार अभी से ही अपने असली लक्षण नकली, खराब व पुराना सामान धड़ल्ले से ग्राहकों तक पहुंचाकर दिखाने लगा। आॅनलाइन से मंगवाये गए सामान के बदले नकली सामान मिलने को लेकर ग्राहकों की शिकायतों में वृद्धि हो रही हैं। मसलन ग्राहकों को मोबाइल के बदले साबुन के टुकड़े, कंपनी के जूतों के बदले नकली ब्रांड के जूते, लेटेस्ट म्यूजिक सिस्टम के बदले पुराना म्यूजिक सिस्टम व कंपनी के बैग के बदले नकली बैग मिलने जैसी कई शिकयतें सामने आ रही हैं।
ग्राहकों को खरीदे गए माल का पक्का बिल देने की परिपाटी अपनानी होगी | online business
इन्हीं शिकायतों को देखते हुए हाल ही में दिल्ली हाइकोर्ट ने विभिन्न आॅनलाइन विक्रेता कंपनियों को निर्देश दिया है कि वो सुनिश्चित करें जो सामान बेचा जा रहा है वो नकली न हो। वेलोसिटी एमआर द्वारा किए गए सर्वे के मुताबिक आॅनलाइन सामान मंगवाने वाले हर तीन ग्राहकों में से एक को पिछले छह माह में कोई ना कोई खराब सामान मिला है। इसी तरह लोकल सर्विस के सर्वे के अनुसार 38 प्रतिशत लोगों का कहना हैं कि उन्हें एक साल के अंदर ई-कॉमर्स साइट से कोई न कोई नकली खराब सामान मिला है। इस स्थिति में एक ऐसी गाइडलाइन घोषित की जानी चाहिए, जो आॅनलाइन विक्रेता कंपनियों के लिए नियमों का निर्धारण करने में सक्षम साबित हो, जिससे ग्राहक ठगी से बच सकें। ग्राहकों को भी चाहिए कि मंगवाये गए माल को लेकर किसी भी प्रकार की समस्या होने पर उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कराने की तत्परता दिखाएं। वहीं आॅनलाइन बाजार प्रणाली का विरोध करने वाले दुकानदारों को प्रतिस्पर्धा के इस युग में ‘बिका हुआ माल वापस नहीं लिया जाएगा’, ‘आज नकद कल उधार’ और ‘छुट्टे लाओ भाईसाहब’ जैसे तरीकों से बाज आकर ग्राहकों को बेहतर सेवा देकर अपनी विश्वसनीयता बरकरार रखनी होगी। दुकानदारों को अपनी दुकान पर कार्ड मशीन या आॅनलाइन ट्रांजेक्शन की सुविधा रखने के साथ ही ग्राहकों को खरीदे गए माल का पक्का बिल देने की परिपाटी अपनानी होगी। अगर नजदीक में ही बेहतर सेवाएं ग्राहकों को मिलने लगेगी तो कोई क्यों भला दूर से सामान मंगवाने का खतरा मौल लेगा।
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