मानसिक रोगियों की बढ़ती संख्या: अवसाद में देश

Increasing number of mental patients

देश में लोग मानसिक बीमारियों के बारे में ज्यादा बात नहीं करते हैं। एक आम धारणा ये है कि अगर किसी को कोई मानसिक बीमारी है तो ऐसा जरूर उसकी गलतियों की वजह से हुआ होगा। देश में मानसिक रोगियों का इलाज कराने की जगह लोग उन्हें ताने मारते हैं और उनका मजाक उड़ाते हैं। हालत ये है कि मानसिक रोगियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। किसी के भी घर में ऐसा सदस्य हो सकता है जो तनाव के दौर से गुजर रहा हो, क्योंकि तनाव एक ऐसी बीमारी होती है जिसके बारे में शुरूआती कुछ वर्षों में पता ही नहीं चलता। हम कई बार यह सोचते रहते हैं कि अमुक व्यक्ति इतना गुस्से में क्यों रहता है या अकेला क्यों रहता है? लेकिन हम यह नहीं सोचते कि वह व्यक्ति तनाव का शिकार हो सकता है। डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2015 में भारत में पांच करोड लोग तनाव के मरीज थे। यह वो लोग हैं जो तनाव की वजह से अपना सामान्य जीवन भी नहीं जी पा रहे हैं। दक्षिण एशियाई देशों में सबसे ज्यादा तनाव के मरीज भारत में ही रहते हैं। इनमें से ज्यादातर घबराहट के शिकार हैं। चिंता से जुड़ी घबराहट कई बार इतनी बढ़ जाती है कि व्यक्ति आत्महत्या तक कर लेता है।

यानी देश में नौ करोड लोग ऐसे हैं जो किसी न किसी तरह की मानसिक परेशानी का सामना कर रहे हैं और अपना सामान्य जीवन नहीं जी पा रहे हैं। ऐसे लोगों से परिवार और दफ्तर के लोग भी परेशान रहते हैं। पूरी दुनिया में बत्तीस करोड लोग तनाव के शिकार हैं, इसमें से पचास फीसद केवल भारत और चीन में रहते हैं। डब्ल्यूएचओ के अनुसार 2005 से 2015 तक पूरी दुनिया में तनाव के मरीजों की संख्या उन्नीस फीसद तक बढ़ गई है। इन आंकड़ों के अनुसार अठत्तर फीसद आत्महत्या कम और मध्यम आय वाले देशों में होती है। भारत भी एक निम्न मध्यम आय वाला देश है।

वहीं, एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक 2015 के मुकाबले भारतीयों ने 2016 में अधिक तनाव की दवाई खाईं हैं। नेशनल इंस्टिट्यूट आॅफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस के मुताबिक भारत में हर बीस में से एक व्यक्ति तनाव का शिकार है। पूरी दुनियां में तनाव के मरीजों की संख्या इतनी तेजी से बढ़ रही है कि इस बार के विश्व स्वास्थ्य दिवस की थीम भी यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज: एवरीवन, एवरीवेयर थी। भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर ज्यादा बात नहीं होती और सरकारें भी इस तरफ कोई विशेष ध्यान नहीं देती हैं। भारतीय परिवारों में लोग अक्सर अपनी मानसिक परेशानियों को एक – दूसरे के साथ साझा नहीं करते हैं। छोटी-छोटी बातों पर तनाव में चले जाना हमारा स्वभाव बनता जा रहा है। छोटी उम्र से ही तनाव हम पर हावी होने लगा है और उम्र बढ़ने के साथ-साथ मानसिक तनाव कई दूसरी बीमारियों की वजह बन जाता है।

आंकड़ों के मुताबिक बेशक भारत में तनाव के पांच करोड़ मरीज हों लेकिन, ये आंकड़ा और भी बड़ा हो सकता है, क्योंकि देश में मानसिक परेशानियों के ज्यादातर मामले डाक्टरों तक कभी पहुंचते ही नहीं हैं। बहुत सारे मामलों में यह पता ही नहीं चलता कि व्यक्ति तनाव का शिकार है और उसे इलाज की जरूरत है। भारत एक युवा देश है और अगर हमारे युवा डिप्रेशन के शिकार हो जाएंगे तो भारत महाशक्ति कभी नहीं बन पाएगा। हमारा सोशल नेटवर्क तो हर दिन बड़ा हो रहा है लेकिन, किसी से मिलकर अपने दिल की बात कहने वाला नेटवर्क दिन व दिन छोटा होता जा रहा है।

वैसे अब आत्महत्या जैसे कदम उठाने वाले लोगों की पहचान करने के लिए सॉफ्टवेयर की मदद भी ली जा रही है। फेसबुक समेत कई सोशल नेटवर्किंग साइट्स अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से ऐसे सॉफ्टवेयर तैयार कर रही है, जो पहले से ही यह चेतावनी दे देंगे कि फलां यूजर आत्महत्या कर सकता है। फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकतार्ओं ने बीस लाख ऐसे मरीजों का डेटा इकट्ठा किया, जो मानसिक रुप से परेशान थे और फिर सॉफ्टवेयर की मदद से यह जानने की कोशिश की गई कि उनमें से कितने मरीज आत्महत्या कर सकते हैं। सॉफ्टवेयर विश्लेषण से जो नतीजे सामने आए। वह अस्सी से नब्बे फीसद तक सही थे। लेकिन डिप्रेशन को रोकने के लिए कंप्यूटर की मदद लेने की बजाय हमें अपने आसपास के लोगों की मदद लेनी चाहिए।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और आर्टिफिशल भावनाओं की जगह असली भावनाओं का मोल पहचानना चाहिए।वहीं, अब तंत्र को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को लोक स्वास्थ्य सेवाएं बनाने पर भी ध्यान देना चाहिए। देश में केवल गंभीर मानसिक बीमारी की स्थिति में ही मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हैं। वहीं, मानसिक स्वास्थ्य नीति में भी गंभीर मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को ही प्राथमिकता दी जाती है। समाज भी मानसिक रोगियों के बारे में मान्यता बना लेता है कि ये बोझ हैं। जबकि मानसिक रोग भी अन्य बीमारियों की तरह सामान्य है।

यह समस्या समाज और तंत्र के लिए चर्चा का विषय ना होने से संकट और गहराता जा रहा है। तनाव लाइलाज बीमारी नहीं है। इसे काउंसलिंग और कुछ दवाओं के माध्यम से ठीक किया जा सकता है। इसके इलाज में आपस में की गई बातचीत सबसे ज्यादा मदद कर सकती है। आज बेरोजगारी, नशे, इच्छाओं का मक्कड़जाल स्वार्थ की भावना के कारण तनाव बढ़ रहा है। जब यह तनाव जिंदगी पर भारी पड़ने लगे तो इसे छोड़ने में ही फायदा है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक तनाव एक ऐसी बीमारी है। जिसमें लगातार उदासी बनी रहती है। सामान्य गतिविधियों में दिलचस्पी कम हो जाती है और रोजमर्रा के काम करने का भी मन नहीं करता है। तनाव एक ऐसी मानसिक परेशानी है जो किसी को भी अपना मानसिक शिकार बना सकती है। इसे बातचीत अलग-अलग तरह की थेरेपी और दवाइयों की मदद दूर किया जा सकता है।

Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।