देशों के बीच बढ़ता बाड़ाबंदी का चलन

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संचार क्रान्ति और सहज आवागमन के चलते ज्यों-ज्यों दुनिया के देश एक-दूसरे के नजदीक आने लगे हैं, त्यों-त्यों दुनिया के देशों के बीच नफरत की दीवारें भी अधिक खड़ी होने लगी है। 1989 में बर्लिन की दीवार टूटने को सारी दुनिया के देशों ने शुभ संकेत के रुप में देखा और यह आशा बंधने लगी कि कोरिया आदि देश भी देर-सवेर एक हो जाएंगे। सपना तो आज भी भारत-पाक के एक होने के देखते रहे हैं, पर दुनिया के देशों के बीच मतभेद दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। आशा यह थी कि भूमण्डलीकरण, उदारीकरण, निजीकरण और सूचना क्रान्ति एक-दूसरे को जोड़ने और अधिक नजदीक लाने में सहायक होंगे, परस्पर मतभेद कम होंगे, पर ठीक विपरीत आज आतंकवाद, अलगाववाद, सीमा विवाद, सत्ता संघर्ष कम होने के स्थान पर अधिक बढ़ा हैं।

जहां एक क्लिक पर दुनिया के किसी भी देश के बारे में ताजा तरीन जानकारी मिल सकती है, त्वरित जानकारी से सुख-दु:ख में भागीदार बन सकते हैं, वहीं तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी हो गया है कि आज दुनिया के देशों के बीच 60 दीवारें खड़ी हो गई है। अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के मेक्सिको सीमा पर दीवार बनाने के आदेश और यूरोपीय देशों के बीच दीवारों की तैयारियां सोचने को मजबूर कर देती है। अतिआधुनिक, प्रगतिशील होने, शिक्षा के अत्यधिक विस्तार और मानवतावादी होने का बाना पहनने के बावजूद आतंकवाद, पलायन और सीमा संघर्षों के चलते देशोें की सीमाओं पर बाड़ाबंदी चल पड़ी है। देशों में आतंकवादी गतिविधियां तेज हुई है।

1989 में बर्लिन की दीवार टूटने के बाद दुनिया के देशों के बीच 10 दीवारें रह गई थी, पर पिछले दिनों ही क्यूबेक यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट में बताया गया है कि आज दुनिया के देशों के बीच दीवारों या बाड़ाबंदी की संख्या बढ़कर 60 हो गई है। जहां देशों के बीच नफरत और अलगाव की दीवारें कम होनी चाहिए थी, वहीं देशों के सीमाओं पर खिंचती दीवारें कुछ और ही कह रही है। हालांकि इसका सबसे दुर्भाग्यजनक और निराशाजनक पहलू शरणार्थी समस्या और शरणार्थियों द्वारा शरण देने वाले देश में असामाजिक गतिविधियों में लिप्त होने से देखा जा रहा है। इसके अलावा क्षणिक लाभ के लिए पाकिस्तान सहित कई देश अलगाववादियों के शिविर चलाकर प्रशिक्षित करने और दूसरे देश में अलगाववादी गतिविधियों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से प्रायोजित कर अशांति का माहौल बनाया जा रहा है। आईएस व अन्य अतिवादियों के कारण भी स्थितियां खराब हुई है।

फ्रांस में शरणार्थियों के कारण आंतरिक आतंकवादी गतिविधियों के चलते दीवार बनाने का निर्णय करना पड़ा, फ्रांस द्वारा दीवार का निर्माण, हंगरी द्वारा सर्बिया क्रोएशिया सीमा पर दीवार, बुल्गारिया द्वारा तुर्की सीमा पर शरणार्थियों को रोकने के लिए दीवार, युनान द्वारा तुर्की सीमा पर शरणार्थियों के प्रवेश को रोकने के लिए दीवार बनाने का निर्णय लिया गया। इसी तरह से घुसपैट के चलते भारत पाक सीमा पर दीवार व बाड़, इजराइल फलस्तीन सीमा पर दीवार, सउदी अरब और इराक के बीच दीवार बाड़ बनाकर आईएस गतिविधियों को रोकना, उत्तर दक्षिण कोरिया के बीच दीवार जग जाहिर है। भारत बांग्लादेश सीमा पर बाड़ आदि सहित दुनिया के देशों द्वारा दीवार या बाड़बंदी को विकल्प के रुप में लिया जा रहा है। हांलाकि अमेरिका -मैक्सिको के बीच बन रही 3200 किमी दीवार को दुनिया की सबसे बड़ी दीवार माना जा रहा है। भारत द्वारा भी बांग्लादेश सीमा पर 2700 किमी बाड़ घुसपैठ को रोकने की बनाई गई है वहीं भारत पाक सीमा पर 750 किमी लंबी बाड़ है।

एक-दूसरे के पडोसी देश होने के नाते विवादों का आपसी समझ से हल खोजने की जगह कंकरीट की दीवारों या लोहे की बाड़ से रोकने का तरीका किसी भी प्रकार से उचित नहीं हो सकता। पर ज्यों ज्यों हथियारों का व्यापार बढ़ता जाएगा, हथियार उत्पादक देश आपसी मतभेदों को बढ़ावा देते हुए अपने कारोबारी हित साधते रहेंगे। दुनिया के देशों को नफरत की दीवार की जगह प्रेम का व्यवहार अपनाना होगा, तभी सही मायनें में दुनिया प्रगतिशील, मानवतावादी बन सकेगी।

-डॉ़ राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

 

 

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