विश्व स्तर पर प्रतिवर्ष लगभग तीन गुण वृद्धि के कारण ऊर्जा संकट आज के युग की वास्तविकता बन चुका है। विश्व में चार करोड़ 36 लाख 65 हजार टन कोयला भंडार है। गैस भंडार तो केवल 41 हजार मेगा टन है। वहीं पेट्रोल उत्पादों के बढ़ते दामों से सरकार ने गैर-परंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों पर जोर देना शुरू कर दिया है। यही कारण हैं कि सरकार ने सौर और पवन ऊर्जा पर 30 हजार करोड़ रुपए खर्च करने की मंजूरी दी है। दरअसल सरकार गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों को बढ़ावा दे रही है। आने वाले 10-12 वर्षों में इस क्षेत्र में अच्छी सफलता मिलने की उम्मीद है। अगले तीन वर्ष में ही सौर ऊर्जा उत्पादन जोकि इस समय नाममात्र का ही है, बढ़कर 1300 मेगावाट तक पहुंच जाएगा।
केंद्र सरकार सौर ऊर्जा मिशन को 2020 तक भारत में 20,000 मेगावाट उत्पादन की क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। इसको लेकर पिछले वर्ष 90,000 करोड़ रुपए की लागत वाले राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन के मसौदा दस्तावेज को सैद्धांतिक रूप से मंजूरी भी दी है। सौर ऊर्जा के बेहतर भविष्य को देखते हुए हाल ही में बिजली उत्पादन करने वाली सरकारी कंपनी एटीपीसी ने भी गैर परंपरागत ऊर्जा के उत्पादन पर 81 अरब रुपए के निवेश की घोषणा की है। सरकार पवन ऊर्जा के विकास पर भी जोर दे रही है।
अक्षय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार, पवन ऊर्जा का उत्पादन 2022 तक तीन गुना बढ़कर 33 हजार मेगावाट तक पहुंच जाएगा। इसमें सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में भागीदारी होगी। मंत्रालय के पास निजी क्षेत्र के अनेक प्रस्ताव आए हैं। दरअसल बिजली पैदा करने तथा पानी उठाने का सबसे सस्ता उपाय है हवा। जापान में भूंकप तथा सूनामी के बाद परमाणु बिजली घरों के सुरक्षित होने के बारे में उत्पन्न संदेह ने ऊर्जा संकट को और बढ़ा दिया है।
गुजरात में लाम्बा नामक स्थान पर एशिया का सबसे बड़ा पॉवर प्रोजेक्ट चालू किया गया है, जिसमें हवा की 50 टरवाइनें 200 किलोवाट बिजली उत्पन्न करते हैं। इनमें से किसी भी काम से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। देश में इस समय 5 पवन फार्म हैं, जिनकी क्षमता 3.63 मेगावाट है और जो 45 लाख ऊर्जा इकाइयां तैयार करती है। नब्बे के दशक में तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश, मध्यप्रदेश, केरल, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों को पवन ऊर्जा के संभावनाशील क्षेत्रों के रूप में चिह्नित किया गया। वहीं कई निजी क्षेत्र की कंपनियों ने पवन ऊर्जा पर निवेश किया है। भारत के भूमध्य रेखा पर स्थित होने के कारण सौर ऊर्जा का असीम भंडार हमारे ऊपर बरस रहा है। भारत ने सूर्य से 200 मेगावाट प्रति वर्ग किलोमीटर ऊर्जा प्राप्त होती है। इसकी भौगोलिक क्षेत्र 3.28 मिलियन वर्ग किलोमीटर है।
इसके अनुसार यहां 657.4 मिलियन मेगावाट ऊर्जा उपलब्ध है। पर इस क्षेत्र का सिर्फ 12.5 फीसदी अर्थात् 0.413 मिलियन वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ही सौर ऊर्जा विकास के लिए उपयोग किया जा सकता है। इसके लिए यदि 10 फीसदी भूमि भी उपलब्ध हो जाए, तो 8 मिलियन मेगावाट बिजली मिल सकती है। यह उपलब्ध ऊर्जा वर्तमान खपत की 26 गुना है।
इसी तरह से भारत नें पवन ऊर्जा से 45000 मेगावाट बिजली की क्षमता आंकी गई है। लेकिन अभी तक 5340 मेगावाट क्षमता का ही उपयोग हम कर सके हैं। देश में बायोमास के विद्युत उत्पादन की अनुमानित क्षमता लगभग 19,500 मेगावाट है, पर अभी तक 912 मेगावाट की बायोमास परियोजनाओं का ही पूरा किया जा सका है। इसके अलावा 1180 मेगावाट क्षमता की परियोजना पर काम हो रहा है। कुल मिलाकर ऊर्जा स्त्रोतों से अब तक कुल 8,095 मेगावाट बिजली ही ग्रिड को उपलब्ध कराई जा रही है। इसमें छोटी पनबिजली परियोजनाओं का उत्पादन भी शामिल है। जबकि भारत में गर्मियों में प्रचंड सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा उपलब्ध है। इसका उपयोग करके हम अनेक जिलों के तमाम कस्बों और गांवों की बिजली की समस्या हल कर सकते हैं।
–लेखक मानवेन्द्र कुमार