विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भारत में कैंसर के बढ़ने संबंधी जो अनुमान पेश किए गए हैं वह बहुत ही भयानक हालातों की तरफ संकेत कर रहे हैं। संगठन की रिपोर्ट मुताबिक वर्ष 2018 में 11 लाख से अधिक कैंसर के नये मामले सामने आए हैं। इस अनुमान अनुसार हर दसवां भारतीय जिंदगी में कैंसर जैसी ला-ईलाज बीमारी के साथ जूझ रहा है और हर 15 में से एक व्यक्ति की कैंसर से मौत हो सकती है। जहां तक हमारे देश में कैंसर की रोकथाम संबंधी कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं वह कैंसर के बाद ईलाज तक ही सीमित हैं। बीमारी के शुरूआती दौर में पकड़े जाने के लिए प्रतिदिन प्रचार किया जा रहा है लेकिन यह केवल प्रचार तक ही सीमित नहीं है, इस संबंधी कोई इस तरह का ठोस हल नहीं कि इस बीमारी से पहले किसी की जांच की जाए। ईलाज के लिए अस्पताल खोले जा रहे हैं।
केन्द्र व राज्य सरकारों की ओर से ईलाज के लिए बीमा करवाया जा रहा है। कैंसर जैसी भयानक बीमारी होने पर कुछेक लोग ही ईलाज के दौरान बच पाते हैं। करोड़पति लोग भारतीय अस्पतालों पर निर्भर रहने की बजाय अमेरिका में ईलाज करवाकर बीमारी से पिंड छुड़वा लेते हैं, कई फि ल्मी सितारे, प्रसिद्ध खिलाड़ी व राजनेता अपनी वित्तीय क्षमता से विदेशों में ईलाज करवाने में कामयाब हुए हैं लेकिन गरीब वर्ग न तो सरकारी राशि ले पाता है और न ही वह बीमारी के टैस्ट करवा पाता है। बीमारी का पता उस समय चलता है जब तक रोग आखिरी स्टेज पर पहुंच चुका होता है। जब तक बीमारी की जांच को जरूरी नहीं बनाया जाता तब तक इसकी रोकथाम बहुत ही मुश्किल है। सरकारी संस्था ने पंजाब में बीमारी की जांच वाली बस गांव-गांव ले जाकर महिलाओं को कैंसर की जांच का संदेश दिया है। इसके सार्थक परिणाम भी सामने आए। हजारों महिलाओं, जिन्होंने कभी भी अपनी जांच संबंधी सोचा तक नहीं था, वह भी जांच करवाकर इस रोग का शुरू में ही ईलाज करवाकर इस बीमारी की भयानकता से बच गई हैं। लेकिन गैर सरकारी प्रयास होने के कारण पूरी आबादी की तुलना में यह सुविधा बहुत ही कम लोगों तक पहुंची है।
अगर जांच सस्ती व गांव-गांव में मुहैया होगी तो कैंसर की रोकथाम आसान हो सकती है। वैसे यह पहलू भी चिंताजनक है कि रोग के कारणों को ढूंढ़ने व खत्म करने के लिए कोई बड़ा कार्यक्रम तैयार नहीं किया गया। कैंसर खाद्य पदार्थों में कीटनाशक व अन्य किन कारणों से हो रहा है इस संबंधी अभी तक कोई वैज्ञानिक एकमत नहीं है, वहीं दूसरी तरफ खाद्यान्नों में कीटनाशकों का उपयोग लगातार बढ़ रहा है। अगर खाद्यान्न के कीटनाशक ही कैंसर की मुख्य वजह हैं तो इनका उपयोग बंद करने या घटाने संबंधी कोई अभियान नहीं चलाया जा रहा है। कैंसर से बचने के लिए जीवनशैली में बदलाव संबंधी लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता है। सरकारों को जैविक कृषि व जीवन शैली संबंधी कोई ठोस कदम उठाने चाहिएं, ताकि लोग कैंसर जैसे भयानक रोगों से बच सकें।
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