संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी अबू धाबी में 1-2 मार्च को इस्लामिक देशों के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन ‘आॅर्गनाइजेशन आॅफ इस्लामिक को-आॅपरेशन (ओआईसी) को सम्बोधित करते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने आतंकवाद के मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाते हुए इस्लामिक देशों के इस बड़े मंच के जरिये भी पाकिस्तान का नाम लिए बगैर उसे खूब खरी-खोटी सुनाई, जिससे पाकिस्तान इस्लामिक देशों के संगठन में अलग-थलग पड़ रहा है। ओआईसी 57 देशों का प्रभावशाली समूह है, जो मुख्यत: इस्लाम को मानने वाले देशों को मिलाकर ही बना है और संगठन के 50 वर्षों के इतिहास में यह पहली बार हुआ, जिसके सम्मेलन में भारत पहली बार शामिल हुआ और गेस्ट आॅफ आॅनर के तौर पर सम्बोधित करने के लिए भारतीय विदेश मंत्री को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया। सम्मेलन के 50 वर्षों के इतिहास में यह भी पहली बार हुआ, जब भारत की मौजूदगी से बौखलाये पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने इसमें हिस्सा नहीं लिया। हालांकि ओआईसी आमतौर पर पाकिस्तान का समर्थन करता रहा है और कश्मीर पर प्राय: इस्लामाबाद का ही पक्ष लेता रहा है और
पाकिस्तान का दावा है कि सम्मेलन की समाप्ति के बाद पारित प्रस्ताव में कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन किया गया है। फिर भी ओआईसी सम्मेलन में भारत की सबसे बड़ी कूटनीतिक सफलता यह रही कि पुलवामा हमले के बाद विभिन्न वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने में सफल होने के बाद उसे उस ओआईसी के महत्वपूर्ण सम्मेलन से बाहर बैठने को विवश कर दिया गया, जिसका वह संस्थापक सदस्य है। दरअसल पाकिस्तान के लाख विरोध के बावजूद सम्मेलन में भारत को आमंत्रित करने के कारण बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइल झेलने, भारत के हाथों अपना एफ-16 विमान गंवाने और वैश्विक मंचों पर अलग-थलग पड़ने के चलते खीझे पाकिस्तान ने इस सम्मेलन का बहिष्कार कर दिया था। सुषमा स्वराज इस मंच का उपयोग करते हुए यह साबित करने में भी सफल रही कि भारत एक मॉडरेट इस्लाम को प्रतिबिंबित करता है तथा 20 करोड़ भारतीय मुसलमान जेहाद को पसंद नहीं करते बल्कि मेल-जोल, सहिष्णुता और बहु-संस्कृति में विश्वास रखते हैं।
पहले जान लेते हैं कि ओआईसी है क्या तथा यह कब और कैसे अस्तित्व में आया था? ओआईसी 57 इस्लामी देशों का मजबूत संगठन है, जिसका मुख्यालय सऊदी अरब के जेद्दा में स्थित है। ओआईसी अपने इस्लामी सदस्य देशों के बीच सभी विषयों में सहयोग को प्रोत्साहित करता है। इसके प्रमुख सदस्य देशों में यूएई, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, मिस्र, इंडोनेशिया, ईरान, इराक, जॉर्डन, मलेशिया, कुवैत, कजाकिस्तान, अल्बानिया, अल्जीरिया, अजरबैजान, बहरीन, बांग्लादेश, बेनिन, ब्रूनेई, कैमरून, बूरकिन फासो, कैमरून, चाड, कोमोरोस, आइवरी कोस्ट, जिबूती, गैबॉन, गाम्बिया, गिनी, गुयाना, लेबनान, लीबिया, मालदीव, माली, मोरक्को, मोजाम्बिक, नाइजीरिया, ओमान, फिलीस्तीन, कतर, सियरा लियोन, सोमालिया, सूडान, सीरिया, सूरीनाम, तजाकिस्तान, तुर्की, ट्यूनीशिया, युगांडा, उज्बेकिस्तान, यमन इत्यादि शामिल हैं। अगस्त 1969 में एक इजरायली व्यक्ति ने येरूशलम में अल-अक्सा मस्जिद पर हमला कर उसमें आग लगाने का प्रयास किया था, जिसके बाद मुस्लिम देशों में घबराहट फैली थी कि यह मस्जिद तोडऩे की एक साजिश है।
तब मुस्लिमों के पवित्र स्थलों को सुरक्षित बनाने, परस्पर सहयोग बढ़ाने, नस्लीय भेदभाव तथा उपनिवेशवाद का विरोध करते हुए ‘आॅर्गनाइजेशन आॅफ इस्लामिक को-आॅपरेशन (ओआईसी) की आधारशिला रखी गई थी। इसी पर चर्चा करने के लिए मोरक्को के रबात में 24 मुस्लिम देश एकत्रित हुए थे। मोरक्को के किंग हसन ने उस बैठक में कई देशों को बुलाया था, जिनमें भारत भी शामिल था क्योंकि भारत में भी कई करोड़ मुसलमान रहते हैं। तब पाकिस्तान के नेता याह्या खान ने दो टूक शब्दों में कहा था कि अगर सम्मेलन में भारत को बुलाया गया और वह भी इसका सदस्य बना तो पाकिस्तान अपना नाम वापस ले लेगा।
चूंकि आयोजन में सऊदी अरब की सबसे अहम भूमिका थी और उस समय पाकिस्तान के साथ उसके संबंध घनिष्ठ थे, इसलिए पाकिस्तान की जिद के चलते सऊदी अरब ने भारत के आमंत्रण को रद्द कर दिया था और भारतीय प्रतिनिधिमंडल को वहां से वापस लौटना पड़ा था। यह भारत के लिए बहुत बड़ा झटका था। उसके बाद से ही पाकिस्तान भारत के खिलाफ जहर उगलने के लिए ओआईसी के मंच का इस्तेमाल करता रहा है। ओआईसी पाकिस्तान के लिए एक ऐसा अंतर्राष्ट्रीय मंच रहा है, जहां उस पर कोई रोकटोक नहीं रही है और इसी का नतीजा रहा कि उसका जब मन किया, तब उसने भारत के खिलाफ विषवमन के लिए इसका जमकर दुरूपयोग किया। दरअसल ओआईसी में सदैव सऊदी अरब तथा पाकिस्तान का बोलबाला रहा है और यह पहला ऐसा अवसर है, जब खुद पाकिस्तान को ही इसी ओआईसी के मंच से करारा झटका लगा है।
पाकिस्तान के विदेश मंत्री महमूद कुरैशी ने कहा था कि अगर भारत को बुलाया गया तो वह सम्मेलन में शामिल नहीं होगा, साथ ही उन्होंने यह मांग भी की थी कि अबू-धाबी में आयोजित ओआईसी सम्मेलन को भारत-पाकिस्तान में तनाव को देखते हुए रोक देना चाहिए। किन्तु पाकिस्तान की आपत्ति के बावजूद न केवल सम्मेलन आयोजित हुआ बल्कि भारत को इस सम्मेलन में अतिथि के तौर पर भी बुलाया गया। कुरैशी का कहना था कि भारत ओआईसी का सदस्य नहीं है, फिर भी पाकिस्तान से सम्पर्क किए बिना ही भारत को आमंत्रण भेजा गया। पाकिस्तान की इससे बड़ी कूटनीतिक हार और क्या होगी कि जिस ओआईसी को वह अपना घर कहता रहा है, वहीं उसे कोई खास महत्व नहीं मिला। 1-2 माचे को हुए सम्मेलन से दो दिन पहले तक पाकिस्तान सऊदी प्रिंस से मिन्नतें करता रहा कि वो भारत को इसमें शरीक होने से रोके किन्तु उसकी एक न सुनी गई।
ओआईसी में भारत की मौजूदगी की महत्ता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान मुस्लिम देशों के इस जमावड़े में भी अलग-थलग पडऩे लगा है। ओआईसी के मंच पर सुषमा स्वराज का चरमपंथ पर मुखर होना और ओआईसी में भारत की मौजूदगी से खिसियाये पाकिस्तान का सम्मेलन में भाग न लेना भारत की विदेश नीति के लिहाज से बहुत बड़ी कूटनीतिक सफलता मानी जानी चाहिए। सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान का नाम लिए बिना इस मंच से आतंकवाद के पोषण के लिए उसे जमकर लताड़ लगाने में कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा कि आज पूरी दुनिया आतंकवाद की समस्या से त्रस्त है और भारत तो लंबे समय से स्पॉन्सर्ड टेरेरिज्म से जूझ रहा है। प्रायोजित आतंकवाद का उल्लेख कर आतंकवाद की जड़ों पर प्रहार करते हुए उन्होंने मंच के माध्यम से मांग की कि आतंकी संगठनों की टेरर फंडिंग पर रोक लगनी चाहिए।
चूंकि आईएसआईएस, जैश-ए-मोहम्मद, अल कायदा जैसे कुख्यात आतंकी संगठन भोले-भाले युवाओं को इस्लाम पर खतरे के बहाने उन्हें बरगलाकर आत्मघाती जत्थे तैयार करने में सफल हो रहे हैं, ऐसे में सुषमा ने 57 मुस्लिम देशों के संगठन के मंच से दुनिया को यह स्पष्ट संदेश भी दिया कि आतंकवाद के खिलाफ भारत किसी एक मजहब के खिलाफ नहीं है और इससे सिर्फ सैन्य और कूटनीतिक ताकत से नहीं बल्कि लोगों को धर्म का असली मर्म समझाकर ही लड़ा जा सकता है।
बहरहाल, यह कहने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि पुलवामा हमले के बाद भारत की सर्जिकल एयर स्ट्राइक की कार्रवाई को जिस प्रकार अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस इत्यादि कई देशों का समर्थन मिला है और आतंकी गतिविधियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को लताड़ा जा रहा है, ऐसे में इस्लामी देशों के समूह में भी उसे अलग-थलग करने में जो बड़ी कूटनीतिक सफलता मिल रही है, ऐसा इससे पहले कभी नहीं हुआ। निश्चित रूप से इसका श्रेय वर्तमान सरकार की मौजूदा विदेश नीति को ही जाता है। 1969 से ओआईसी ने भारत से एक दूरी बनाई हुई थी किन्तु पहली बार जिस प्रकार खुद ओआईसी ने भारत को आमंत्रित किया, उसका संकेत स्पष्ट है कि पाकिस्तान के प्रोपेगंडा के बावजूद इस्लामी देशों में भी किस प्रकार भारत की स्वीकार्यता और दबदबा निरंतर बढ़ रहा है।
Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।