कर्मचारियों के बढ़े भत्ते, किसान-मजदूरों के लिए क्या?

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48 लाख केंद्रीय कर्मचारियों को भारत सरकार ने जुलाई महीने से तनख्वाह में महंगाई भत्ता, आवास भत्ता आदि बढ़ाकर, तनख्वाह देने का वित्त मंत्रालय को आदेश कर दिया है।

इस भत्ते पर खर्च के रूप में 30,748 करोड़ रूपये का अतिरिक्त बोझ सरकार पर पडेÞगा और सरकार इसे खुशी-खुशी वहन करने जा रही है। इसके विपरीत देश में कई राज्यों के किसान अपनी आमदनी में सुधार के लिए सरकार से अपनी फसल का लागत मूल्य ही मांग रहे हैं,

जिसपर कोई सुनवाई नहीं हो रही, उल्टे सरकार किसान आंदोलन को विपक्षी दलों का कारनामा बताने में जुटी हुई है। यहां तक कि मध्य प्रदेश में प्रशासन की ज्यादती से कई किसान गोली का शिकार हो अपने जीवन से हाथ धो बैठे हैं।

इतना ही नहीं, प्रतिदिन देशभर में दर्जनों किसान महंगाई व कर्ज से निजात पाने के लिए आत्महत्या कर रहे हैं। किसान संगठनों ने पिछले दो दशक के आंकड़े भी सरकार के सामने पेश कर दिये हैं कि किस तरह रासायनिक खादों, कीटनाशकों, बीजों, डीजल के दाम दोगुने-चौगुने हो चुके हैं, जबकि किसान की फसल के दाम अभी भी औने-पौने ही हैं।

यहां इस बात का विरोध नहीं है कि सरकार केंद्रीय कर्मचारियों को क्यों ज्यादा तनख्वाह या भत्ते दे रही है, बल्कि इस बात की अपील है कि देश में दिन-ब-दिन किसान व मजदूर की दुर्दशा का भी ध्यान किया जाए।

भाजपा ने चुनाव पूर्व अपने घोषणपत्र में भी किसानों की फसलों के लागत मूल्य व मुनाफा देने का वायदा किया है। अत: भाजपा को अपने वायदे को पूरा करने के प्रयास तेज करने चाहिएं।

भाजपा कई करोड़ लोगों का संगठन है जो शायद विश्व का सबसे बड़ा राजनीतिक संगठन बन चुका है। इस संगठन में भी करोड़ों किसान व मजदूर हैं, जिन्होंने अपनी सरकार बनाने के एवं अपना भविष्य संवारने के सपने देख रखे हैं।

अत: इन करोड़ों लोगों की बेबसी से पार्टी व सरकार को मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। पूरा देश इस बात से वाकिफ है कि भारतीय प्रशासन व्यवस्था, राजनीतिक व्यवस्था, न्यायिक व्यवस्था में घोर भ्रष्टाचार फैला हुआ है।

यहां लोगों के लिए तनख्वाहें एक तरह से बोनस की तरह हैं, जबकि देश के अधिकारी-कर्मचारी इससे कहीं ज्यादा पैसा तो लोगों को परेशान कर उनकी जेबों से निकाल रहे हैं, फिर भी इन्हें महंगाई भत्ते, आवास भत्ते एवं वेतन वृद्धियां चाहिए?

दूसरी ओर देश का गरीब भले वह किसी भी वर्ग किसान, व्यापारी, मजदूर क्यों नहीं हो, उस पर ही उत्पादन व करों का बोझ है, ये भारतीय लोकतंत्र की भयावह भूलें हैं जो अभी भी जारी हैं। देश की सरकार को व्यवस्थागत सुधारों में तेजी व समानता लानी होगी ताकि देश में कोई शोषक व शोषित न रहे।

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