क्या महिलाएं उन्हें मिले कानून के सरंक्षण या विशेषाधिकारों का दुरुपयोग करने लगी हैं? इस पर शायद बहस या विचार का वक्त करीब आ रहा है। एक दौर था जब महिलाओं को समाज में कई सौ सालों तक दबाया गया, प्रताड़ित किया गया और उन्हें शिकायत या प्रताड़ना के विरुद्ध न्याय देना तो दूर की बात, सुना जाना भी वक्त बबार्दी जैसी मानसिकता हो गया था। लेकिन अब भारत महिला-पुरुषों में समानता की दिशा में बहुत आगे बढ़ चुका है। भारत के शहरी इलाकों की छोड़िए ग्रामीण व पिछड़े हुए इलाकों में भी महिलाएं जान चुकी हैं कि उन्हें कानूनी तौर पर कितने विशेष अधिकार हासिल हैं। अब आए दिन महिलाएं दुष्कर्म के झूठे मुकदमों में पुरुषों को फंसाने की धमकियां देने, ब्लैकमेल करने, दहेज के झूठे मुकदमे करने, घरेलू हिंसा के झूठे मुकदमें करने के चलते खबरों में आने लगी हैं।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों तक को दुष्कर्म के केस में लपेटा जाने लगा है। हाल ही में उत्तर प्रदेश में 43 वर्षीय विष्णु तिवारी दुष्कर्म की झूठी शिकायत के चलते 20 वर्ष की सजा काट कर आए हैं, इतना ही नहीं हाल ही में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री को राष्ट्रीय महिला आयोग महज इसीलिए तलब कर रहा है कि उन्होंने एक महिला से ट्रैक्टर खिंचवाया जबकि महिला विधायक शकुंतला खटक स्वयं स्पष्ट कर चुकी हैं कि वह अपनी मर्जी से ट्रैक्टर खींच रही थी, महिला आयोग की तत्परता व महिला संरक्षण की पैरवी का किस तरह दुरुपयोग हो रहा है यह भूपेंद्र सिंह हुड्डा को भेजे नोटिस से समझा जा सकता है। ताजा मामला कर्नाटक में एक महिला द्वारा जोमैटो से खाना मंगवाने, खाना लेट होने पर मना करने व डिलीवरी मैन द्वारा महिला पर हमला कर उसे घायल करने से संबंधित है, जिसमें जब डिलीवरी मैन कामराज का पक्ष जाना गया तब उसने बताया कि महिला झूठ बोल रही है। जबकि मामला खाना लेट होने व आर्डर कैंसिल होने पर डिलीवरीमैन कामराज के खाना वापस ले जाने की मांग पर महिला द्वारा डिलीवरी मैन पर ही गुस्से होने एवं हमला करने का है, जिस कारण महिला खुद ही चोटिल हो गई जिसका अस्पताल बिल भी जोमैटो ने अदा करने की बात कही है।
अब पूरे मामले में सोशल मीडिया पर लोग इसे पुरुषों का महिलाओं द्वारा शोषण करने का बुरा उदाहरण बताकर बहस कर रहे हैं। इस बात में कोई दो राय नहीं कि महिलाओं को उनकी सामाजिक स्थिति के कारण आज भी सुरक्षा की जरूरत है, लेकिन महिलाओं की सुरक्षा पुरुषों की प्रताड़ना कर नहीं अजमाई जाए। यहां एक और पहलू भी महत्वपूर्ण है वह यह कि जब किसी निर्दोष पुरुष को महिला विरोधी मुकदमों का सामना करना पड़ता है तब इस पुरूष की इज्जत भी तार-तार होती है। पुरुष को महिला के विरुद्ध मामलों में इंसाफ पाने में भी बेहद पेचिदगियों का सामना करना पड़ता है। खासकर तब जब सच्चाई जान लेने पर जांच अधिकारी भी हाथ खड़े कर जाते हैं कि वह कुछ नहीं कर सकते, चूंकि कानून तकनीकी तौर पर महिलाओं की बात कर रहा होता है।
कई बार जांच अधिकारी पुरुषों से गुजारिश भी करते हैं कि हो सके तो पांव पकड़कर पंचायती तौर पर या थाने कचहरी के बाहर ही शिकायतकर्ता महिला से पुरूष अपनी जान छुड़ा ले। क्योंकि जांच अधिकारी को भी डर होता है कि कहीं महिला आंसू बहाते हुए उनकी झूठी शिकायत उच्चाधिकारी या न्यायलय को न कर दे कि अधिकारी जांच सही नहीं कर रहा और महिला को जान-बूझकर दबाया जा रहा है। अत: आज जब महिला हर क्षेत्र में पुरुषों से कंधा से कंधा जोड़कर प्रतिस्पर्धा में हैं तब महिलाओं को मिले विशेषाधिकारों पर भी पुनर्विचार करते रहना होगा, पूर्ण विचार में चाहे तों महिलाएं भी अपने सुझाव बराबर रख या मनवा सकती हैं ताकि भविष्य के लिए महिलाओं की सुरक्षा के लिए और बेहतर काम हो सके।, और पुरुषों को भी झूठे मुकदमों का सामना नहीं करना पड़े।
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