कृषि बिलों पर सड़क से लेकर संसद तक हंगामे के बीच नरेंद्र मोदी सरकार ने गेहूं सहित रबी सीजन की 6 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की घोषणा की है। खरीद वर्ष 2021-22 में अब गेहूं का रेट 50 रुपये बढ़ाकर 1975 रुपए क्विंटल होगा, यह बढ़ौतरी नगण्य है। हालांकि पिछले साल के मुकाबले ये बढ़ोतरी महज 2.6 फीसदी है। नई दरों के मुताबिक सबसे ज्यादा 300 रुपए प्रति क्विंटल मसूर और सरसों में 225 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई है। कुसम 112 रुपए क्विंटल, जौ में 75 रुपए क्विंटल की बढ़ोतरी हुई है। भले ही सरकार ने चने के भाव में 225 रुपए और सरसों के भाव में 300 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ोतरी की है, लेकिन पिछले वर्षों में इसकी खरीद तय रेट पर नहीं हो सकी।
सरकारी खरीद देरी से होने के कारण इस वर्ष राजस्थान में चने की खरीद 4000 रुपए को पार नहीं कर सकी। इसी तरह सरसों भी तय रेट से कम रेट पर ही बिकती रही है। इस निर्णय से पहले ही नए कृषि बिलों से भयभीत किसान की शंकाएं बढ़ गई हैं जहां तक मूल्य सूचकांक का संबंध है किसानों को वाजिब भाव नहीं मिल रहा है। इस बार कपास का भी बेमौसमी बारिश से भारी नुक्सान हुआ है। पंजाब के कई जिलों में 50 प्रतिशत से अधिक फसल प्रभावित होने की रिपोर्टें हैं। यह भी कितनी बड़ी खामी है कि प्राकृतिक आपदा के कारण हुए नुकसान को फसलों के भाव तय करने के वक्त विचारा ही नहीं जाता। कपास उत्पादक किसान अपनी जेब से ही अतिरिक्त खर्च कर रहा है। इस बार गेहूँ के भाव में 100 रुपए से ज्यादा की बढ़ोतरी होने की उम्मीद जताई जा रही थी। दरअसल कृषि लागत खर्चों में इतना ज्यादा इजाफा हुआ है कि किसान कृषि को मजबूरी का धंधा समझ रहे हैं। डीजल का रेट पेट्रोल के लगभग बराबर पहुंच गया है। कृषि यंत्र महंगे हो रहे हैं।
लॉकडाउन के कारण प्रवासी मजदूरों की आमद रुक गई है और लेबर खर्च बढ़ रहा है। यह भी आवश्यक है कि सरकार उन फसलों के भाव के अनुसार खरीद यकीनी बनाए जो घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम बिक रही है। विशेष रूप से मक्का की फसल की काश्त करने वाले किसानों को परेशानियों से जूझना पड़ रहा है। मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1850 रुपए है जो 1000 से भी कम भाव पर खरीदी जा रही है। न्यूनतम समर्थन मूल्य केवल घोषणा तक सीमित नहीं होना चाहिए बल्कि कम रेट पर बिकने पर सरकार खुद इसकी खरीद करे। किसानों को यदि कृषि से जोड़कर रखना है तो उन्हें वाजिब दाम देना आवश्यक बनाना होगा। किसान को उसकी मेहनत का पैसा अवश्य मिलना चाहिए। कृषि प्रधान देश में कृषि नीतियों को और मजबूत किया जाना चाहिए।
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