पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज खुद करन-करावनहार परम पिता परमात्मा स्वरूप धुरधाम से सृष्टि पर अवतरित हुए। आप जी के आदरणीय पिता जी का नाम सरदार वरियाम सिंह जी और पूजनीय माता जी का नाम माता आसकौर जी था। आप जी गांव श्री जलालआणा साहिब, तहसील डबवाली जिला सरसा (हरियाणा) के रहने वाले थे। आप जी के पूज्य पिता जी गांव के बहुत बड़े जमीन-जायदाद के मालिक और पूज्य दादा हीरा सिंह जी गांव के जैलदार साहिब थे। आप जी सिद्धू वंश से संबंध रखते थे। आप जी का पहला शुभ नाम सरदार हरबंस सिंह जी था। पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने अपने रहमो-करम से आप जी को ‘सतनाम’ बना दिया और आप जी का नाम सरदार सतनाम सिंह जी (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) रख दिया।
आप जी के पूजनीय माता-पिता जी साधु-फकीरों की अत्याधिक सेवा किया करते थे और मालिक की भक्ति में लीन रहते थे। पूजनीय पिता जी के यहां दुनियावी पदार्थों की कोई कमी नहीं थी लेकिन संतान प्राप्ति की कामना पूज्य माता-पिता को हर समय सताए रहती थी। गांव में एक मस्त रब्बी फकीर का आगमन हुआ। जितने दिन वह फकीर बाबा श्री जलालआणा साहिब में रहा, भोजन-पानी सरदार वरियाम सिंह जी के घर पर ही आकर किया करता था। एक दिन उस फकीर-बाबा ने खुश होकर कहा, ‘भाई भगतो! आप की सेवा से हम बहुत खुश हैं। आप की सेवा भगवान को मंजूर है। वो आपकी सच्ची मनो-कामना को अवश्य पूरी करेगा। आपके घर कोई महापुरुष जन्म लेगा।
’ इस प्रकार ईश्वर की कृपा और उस सच्चे सार्इं बाबा की सच्ची दुआ से मालिक स्वरूप पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने 25 जनवरी 1919 को अवतार धारण किया। पूज्य माता-पिता जी की खुशी का कोई पारावार न रहा जिनके यहां करीब 18 वर्ष के लम्बे इंतजार के बाद पुत्र रत्न के रूप में इतने बड़े खानदान के वारिस, संतान प्राप्ति की प्रबल इच्छा पूरी हुÞई। पूरे गांव में घर-घर में थाल भर भर कर समय के रीति-रिवाज के अनुसार गुड़, शक्कर, मिठाइयां बांटी गई और गरीब जरूरतमंद जो भी दरवाजे पर आया सब की झोलियां, अनाज, गुड़ आदि मिठाइयों से भर दी गई। सारी प्रकृति खुशी में झूम उठी।
सच्चे दातार के शुभ आगमन, अवतार धारण करने पर वह फकीर-बाबा भी लंबी यात्रा करके पूज्य माता-पिता जी को बधाई देने श्री जलालआणा साहिब में पहुंचा। उस बाबा ने पूज्य माता-पिता जी को ढेर सारी बधाई दी और यह भी कहा भाई भक्तो! आपके घर में खुद ‘रब्बी-जोत’ प्रकट हुई है, इन्हें पूर्ण स्नेह से रखना है। यह आपके यहां ज्यादा समय तक नहीं रहेंगे। यह 40 वर्ष के बाद उसी मालिक के पास अपने उद्देश्य, जीव-मानवता उद्धार के लिए चले जाएंगे जिसके लिए ये आए हैं।
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