श्री करतारपुर साहिब के लिए पाक में (कॉरिडोर) के निर्माण का नींव पत्थर रखकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने दरिया दिली दिखाई है। इस दौरान आयोजित समारोह में इमरान खान ने जिस प्रकार दोनों देशों की दोस्ती, अमन व कश्मीर की बात की है उससे स्पष्ट है कि इमरान पूरी तैयारी के साथ आए थे। उन्होंने मित्रता को हिंद-पाक के लिए लाजिमी करार देकर कश्मीर के मुद्दे को नहीं छोड़ा। यह चीज पाकिस्तानी शासकों के लिए काबलियत की निशानी मानी जाती है। सत्ता पर काबिज प्रत्येक शासक कश्मीर मुद्दे को जोर-शोर से उठाता है। इमरान भी पारंपरिक शासकों की तरह कश्मीर की दोहाई दे गए। बस अंतर यह था कि कश्मीर की बात करने के बावजूद उन्होंने मित्रता व अमन के लिए ज्यादा शब्द इस्तेमाल किए। कश्मीर व अमन की बात बराबर तो पहले ही होती आई है लेकिन तब लहजा धमकी भरा रहा है। इमरान के लहजे में विनम्रता ज्यादा थी। एक नई बात यह है कि इमरान ने पहली बार सेना का जिक्र किया कि पाक की सेना भी हिंद के साथ बातचीत चाहती है लेकिन कश्मीर के मुद्दे के बिना तो कुछ भी संभव नहीं। अमन व दोस्ती से ही समस्या का हल होगा या नहीं इस संबंध में कोई ठोस बात कहनी मुश्किल है। दरअसल इमरान कश्मीर मामले में कोई बहादुरी भरा निर्णय लेने की हिम्मत नहीं रखते। पहले इमरान ने कहा था कि पाकिस्तान किसी अन्य देश का युद्ध नहीं लड़ सकता। उनका इशारा कश्मीर की तरफ था। अब उन्होंने करतारपुर में चाहे प्यार भरे शब्दों व अपनेपन के माहौल में मित्रता की बात की है लेकिन कश्मीर की शर्त तो रख ही दी है। दरअसल यह समारोह दो देशों के बीच कोई नया इतिहास बनने की बजाय एक धार्मिक मुद्दे तक ही सीमित रहा। भारत सरकार द्वारा भेजे गई मंत्रियों के चयन से भी यही लगता है कि सरकार करतारपुर साहिब रास्ते को डिपलोमैट की अपेक्षा अधिक धार्मिक संबंधों तक ही सीमित रखना चाहती है। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह ने आतंकवादी हमलों का तर्क देकर समारोह में शामिल न होकर इस मामले के अंतरराष्ट्रीय महत्व को कमजोर कर दिया है। फिर भी यह कहने में कोई दो राय नहीं कि श्री करतारपुर साहिब के लिए रास्ता खोलने के लिए उठाए जा रहे कदम अविश्वास व कड़वाहट भरे माहौल में एक तसल्ली भरी शुरूआत अवश्य साबित होगी। इस रास्ते को खोलने के लिए जहां तक श्रेय लेने की बात है पाकिस्तान इसका श्रेय इमरान खान को दे रहा है लेकिन हमारे देश में कांग्रेस व अकाली दल ने इस धार्मिक मुद्दे पर राजनीतिक हितों को ही आगे रखा। दोनों पार्टियां रास्ते को अपनी-अपनी प्राप्ति बता रही हैं। हिंद और पाक एक हों या न हों, लेकिन हमारे राजनीतिक नेता सांझेदारी के कार्यों में भी बंटे हुए हैं। वास्तव में रास्ते का खुलने के पीछे श्री गुरु नानक देव जी की विचारधारा व कल्याणकारी काम हैं जो सदियों बाद भी इंसान में मरी हुई इंसानियत को फिर जिंदा कर सकते हैं।
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