पाक में सेना पर कई सवाल उठ रहे हैं।
पाकिस्तान में हुए आम चुनावों में पूर्व क्रिकेटर इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। देश में आया बड़ा राजनीतिक बदलाव लोक लहर नहीं बल्कि पाक में सेना पर कई सवाल उठ रहे हैं। चुनावों से पहले जिस तरह बड़ी घटनाएं घटित हुई इन घटनाओं का राजनीतिक बदलावों से सीधा संबंध है। पूर्व प्रधान मंत्री व मुस्लिम लीग (एन) के नेता नवाज शरीफ का जेल जाना, उनके चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाने जैसी तेजी से घटित हुई घटनाओं से यह साफ नजर आ रहा था कि सेना किस पार्टी को सत्ता की तरफ ले जा रही है।
इमरान सहित सेना को डर था कि कहीं शरीफ की पार्टी फिर से सत्ता पर काबिज न हो जाए
दरअसल इमरान खान सहित सेना को इस बात का डर था कि कहीं शरीफ की पार्टी फिर से सत्ता पर काबिज न हो जाए। यह बात सही भी साबित हुई शरीफ की पार्टी दूसरी बड़ी पार्टी बनी है। मुस्लिम लीग ने वोटो की गिनती में धांधली के आरोप भी लगाए हैं। दूसरी तरफ इमरान लगातार 22 वर्षाें से सत्ता के लिए जूझ रहे थे। इसलिए इमरान ने आतंकवादियों व तालिबानों सहित सभी का समर्थन हासिल किया। इमरान तालिबानों को पख्तून नेता करार देते रहे हैं जबकि नवाज शरीफ की पार्टी व पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी बाहरी तौर पर आतंकवाद का विरोध करते रहे हैं, भले ही वो भी अंदरखाते आतंकवाद आगे झुके हुए थे।
इमरान ने अच्छी राजनीतिक चालें चली हैं। उन्होंने भारत के साथ दोस्ती की बात वोटों से सिर्फ एक दिन पहले की थी तब तक कट्टरपंथियों व आतंकवादियों के समर्थन का लाभ इमरान को चुका था व आतंकवादी अब पीछे हटने लायक भी नहीं थे। नि:संदेह इमरान तेज तर्रार नेता साबित हुए हैं, लेकिन अब यह वक्त ही बताएगा कि उनके तालिबानों के साथ नरमदिली के पैंतरे सिर्फ सत्ता हासिल करने तक सीमित हैं या फिर इन संबंधों का असर सरकार (अगर वह सरकार बनाते हैं) के कार्याें में भी नजर आएगा। नि:संदेह पाकिस्तान के लिए नया राजनीतिक बदलाव एक भविष्य के नए चौराहे के समान है। भारत संबंधी इमरान का स्टैंड पुरानी सरकारों वाला ही है लेकिन अगर आतंकवादी व सेना इमरान पर भारी पड़ते हैं तो यह पाकिस्तान की जनता के लिए विध्वंसकारी व भारत के लिए चिंताजनक होगा।
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