पाकिस्तान में इमरान खान द्वारा प्रधानमंत्री पद की शपथ लिए जाने के बाद अब वहां दशकों से चला आ रहा वंशवादी शासन समाप्त हो गया है। इमरान देश के 22 वें निर्वाचित प्रधानमंत्री होगें। खेल के मैदान से राजनीति की पिच पर उतरने वाले इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ इन चुनावों में सबसे बडे़ दल के रूप में उभरकर आई है। हालांकी बहुमत के लिए जरूरी 137 के जुदाई आंकडेÞ तक इमरान की पार्टी नहीं पहुंच पाई थी, लेकिन दूसरे अनेक छोटे दलों व निर्दलियों के सहयोग से वह पाकिस्तान के पीएम पद तक तो जरूर पहुंच गए हैं, पर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर उनके सामने तमाम तरह की चुनौतियां होगी।
आर्थिक मोर्चे पर पाकिस्तान अब तक के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा हैं। उसका विदेशी मुद्रा भंडार घटकर नौ अरब डॉलर रह गया है। जिसे दो महिने के लिए भी प्रयाप्त नहीं बताया जा रहा है। आयात की तुलना में निर्यात की मात्रा कम है। बीच-बीच में ऐसी खबरें भी आ रही है कि इमरान सरकार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से 12 अरब डॉलर के बेलआउट पैकज लेने की योजना बना रही है, लेकिन अमेरिका ने इस पर आपत्ति प्रकट कर इमरान की राह मुश्किल कर दी है। अमेरिका को संदेह है कि पाकिस्तान इस रकम का अपयोग चीन का कर्ज चुकाने के लिए कर सकता हैै। प्रश्न यह पैदा होता है कि क्या बैलआउट पैकज के साहरे पाकिस्तान आर्थिक संकट से उभर पाएगा। जाहीर है ऐसा नहीं होगा। अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की वित्तीय मदद की अपनी सीमाएं होती हैं। पाकिस्तान को इस बात को समझना होगा कि कर्ज के सहारे कोई देश अपना विकास नहीं कर सका है। अर्थव्यवस्था की विकास दर को ऊंचा करना है तो उसे स्थाई निवेश के विकल्प तलाशने होगें। ऐसा तभी होगा जब इमरान पाकिस्तान में निवेश के लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करे। दहशतगर्दी और अस्थिरता के चलते आज पाकिस्तान में निवेश न के बराबर है।
प्रथम तो अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के बाध्यकारी रवैये के चलते इमरान शायद ही आईएमएफ से इतना बड़ा पैकेज लेने में कामयाब हो पाए। द्वितीय, आईएमएफ एक बारी इसके लिए राजी हो भी जाए तो पाक सरकार को उसकी तमाम तरह की शर्तों को मानना होेगा। पैसे बचाने के लिए सरकार को खर्च में कमी लानी होगी। हो सकता है इसके लिए सरकारी खर्च से चल रही योजनाओं को रोकना पड़े या उनके बजट में कमी करनी पडे़। सरकार को धन बचाने के लिए पाक अवाम को मिल रही सब्सिडी को खत्म करने या कम करने जैसे कदम भी उठाने पड़ सकते हैं। रक्षा खर्च में भी कटौती करनी होगी। अगर इमरान ऐसा करते हैं तो घरेलू स्तर पर उनके सामने कई समस्याएं उठ खड़ी होंगी। चुनाव अभियान के दौरान पाक अवाम के समाने लोकलुभावने वादे कर सत्ता में आने वाले इमरान एकदम से अपनी आवाम को नाराज नहीं करना चाहेंगे। संदेह नहीं की उनकी राजनीतिक पारी की शुरूआत मुश्किलों से ही होगी। वह दबाव में ही खेलते नजर आएंगे। ऐज निकालने के अलावा खुलकर खेलने का विकल्प उनके पास बहुत कम होगें।
सियासी दाव पेचों से अंजान इमरान अपने नये पाकिस्तान और विकास के एजेंडे पर आगे बढ़ना चाहतें हैं, तो उन्हें उस कटुता से ऊपर उठना होगा जिसकी चर्चा वह चुनाव प्रचार में करते रहे हैं। उन्हें इस बात को समझना होगा कि एक अकेले चीन के भरोसे वह पाकिस्तान की अर्थव्यस्था को स्थिर नहीं कर पाएंगे। अपने नये पाकिस्तान का निर्माण के लिए उन्हें अमेरिका और भारत दोनों को साथ लेकर चलना होगा । उन्हें चीन की ऋण डिप्लोमेसी को समझना होगा। उन्हें इस बात को भी समझना होगा कि सीपीईसी के तहत चीन पाकिस्तान में जो निवेश कर रहा है, वह एक तरह का कर्ज ही है।
च्ुानाव में जिस तरह से भ्रष्टाचार को आधार बनाकर इमरान की पार्टी सत्ता में आई है। अब उसी भ्रष्टाचार के आरोप इमरान पर भी लग रहे हैं। उन पर चुनाव अभियान के दौरान सरकारी हेलिकॉप्टर के दुरूपयोग किये जाने का आरोप है। इस मामले में इमरान से देश की भ्रष्टाचार निरोधक इकाई ने पूछताछ की है। सत्ता में आने से पहले भी उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। कैंसर अस्पताल के लिए जब उन्होंने देश के हाईप्रोफाइल लोगों से चंदा लिया था तब भी लोगों ने आरोप लगाया था कि इमरान ने जनता से अपने निजी फायदे के लिए पैसे लिए है। राजनीतिक पारी के आंरभ में ही उन पर इस तरह के आरोप लगने का मतलब है, उनकी आगे की राह सरल नहीं होगी।
आज से 22 साल पहले जिस वक्त इमरान पाकिस्तान की राजनीति में आए थे, उस वक्त किसी को अनुमान नहीं था कि इतने कम समय में वे पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम के पद तक पहुंच जाएगें। सच्चाई भी यही थी। राजनीतिक दुश्चक्रों व कुटनीतियों से अनजान इस युवा तेज गेंदबाज को एक राजनेता के रूप में पाकिस्तान के राजनीतिज्ञों ने कभी स्वीकार नहीं किया। लेकिन पाक युवाओं में क्रिकेट की दीवानगी तथा इमरान के आकर्षक व्यक्तित्व के चलते महिलाओं और युवाओं का एक बड़ा वर्ग हमेशा उनके के साथ खड़ा रहा।
पाकिस्तान की राजनीति में इमरान खान उस वक्त सुर्खियों में आए जब साल 2015 में अमेरिका स्थित एक सरकारी संगठन खोजी पत्रकारों के अतंरराष्ट्रीय महासंघ ने आर्थिक मामलों से जुड़े एक करोड़ से अधिक दस्तावेजों को सार्वजनिक कर तहलका मचा दिया था। लीक दस्तावेजों में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, उनके दोनों बेटे हुसैन शरीफ और हसन शरीफ तथा बेटी मरियम शरीफ पर विदेशों में पंजीेकृत फर्जी कंपनियों में अपनी संपŸिा छिपाने का आरोप था। इस मामले में शरीफ परिवार का नाम आने के बाद से ही इमरान खान और उनकी पार्टी ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर शरीफ को घेरना शुरू कर दिया था। शरीफ के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन खड़ा कर इमरान ने पाकिस्तान की राजनीति में अपनी हैसियत मजबूत की।
5 अक्टूबर 1952 को लाहौर में जन्मे इमरान को 1982 में पाकिस्तान किक्रेट टीम का नेतृत्व करने का अवसर मिला। साल 1992 में आस्टेज्लिया में हुए विश्व कप के फाइनल मैच में जब इमरान के धुरधरों ने इंग्लैंड को हरा कर पाकिस्तान को विश्व चैंपियन का खिताब दिलाया तो पाकिस्तान सहित दुनियाभर में इमरान के नाम की तूती बोलने लगी। अपनी मां की याद में शुरू किये गये कैंसर हस्पताल व ग्रामीण विद्यार्थियों के लिए विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद निम्न व गरीब तबकों में इमरान को पंसद किया जाने लगा। कालांतर में इमरान ने इसी लोकप्रियता को भूनाने का प्रयास किया।
ताजा चुनावों में इमरान को शानदार सफलता मिली है। रिवर्स स्विंग के माहीर इमरान अपने तमाम प्रतिद्वंदियों को पवैलियन भेजकर पीएम पद तक पहुंच चुके हैं। इस दफा पाकिस्तान की सत्ता पर इमरान का काबिज होना अप्रत्याशित नहीं था। शुरू से ही यह कहा जा रहा था कि सेना, आइएसआई व अन्य कट्टरपंथी संगठनों के सहयोग के चलते इमरान आसानी से यह चुनाव जीत लेगें। दरअसल इमरान का चुनाव मैनेजमेंट भी उनकी जीत में बराबर का भागीदार था। उन्होंने देश में भ्रष्टाचार खत्म करने, युवाओं को रोजगार देने, गरीबों को सस्ते घर उपलब्ध कराने और देश में पर्यटन को बढावा देने जैसे जनहितकारी वादे लोगों से किये। उन्होंने अपने चुनाव घोषणा-पत्र में कश्मीर मुद्दे को यूएनओं के प्रस्तावों के तहत सुलझाने व भारत के साथ संघर्ष खत्म करने के लिए सुरक्षा और सहयोग की नीति बनाने जैसी बातें कही। अमेरिकी छाया में चल रहे आतकंवाद विरोधी मुहिम से पाकिस्तान को मुक्त कर देश में अमन की बहाली का वादा और उनके नये पाकिस्तान के नारे पर लोगों ने विश्वास किया। इन सबका परिणाम यह हुआ कि आज इमरान सत्ता की चैखट पर खड़े दिखाई दे रहे हैं।
अब अहम प्रश्न यह है कि वे भारत के साथ किस तरह के संबंध रखते हैं ? क्या वे भी अपने पूर्ववर्त्ती शासकों की तरह भारत विरोध की नीति पर चलेगे या नये पाकिस्तान के निर्माण में भारत का सहयोग लेगे। चुनाव के बाद अपनी पहली प्रैस कॉफ्रेस में उन्होंने दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने की बात तो कही लेकिन कश्मीर के मुद्दे पर आते ही इमरान की जीभ लड़खड़ाने लगी। उन्होंने कश्मीर में मानवाधिकारों का उल्लंघन व सेना की उपस्थिति का भी विरोध किया। चीन के प्रति उनका झुकाव साफ नजर आ रहा था। देश में गरीबी और भ्रष्टाचार मिटाने के लिए उन्होंने चीनी मॉडल को अपनाए जाने की बात कहकर यह दिखा दिया है कि पाक-चीन संबंध इमरान के कार्यकाल में भी भारत को असहज करते रहेगें। हालांकी निर्वाचित संसद की पहली बैठक से ठीक एक दिन पहले 26 भारतीय मछुआरों को पाकिस्तान जेल से रिहा करने के पाकिस्तान के कदम से यह उम्मीद बंधती है कि इमरान सरकार भारत-पाक संबंधो को पुन: पटरी पर लाने के लिए संजीदगी से काम करेगी।
बहराल अभी किसी निष्कर्ष पर पहुंचना बैमानी होगा। क्योंकि इमरान पैशवर राजनीतिज्ञ नहीं हैं। राजनीति में आने से पहले वे एक खिलाड़ी थे। खेल को खेल की भावना से खेलना एक अच्छे खिलाड़ी का स्वभाव होता है । हो सकता है इमरान भारत-पाक संबंधों में भी इसी भावना का परिचय दे। अगर वह ऐसा करते हैं तो उन्हें पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास में युगप्रवर्तक राजनेता के रूप में जाना जाऐगा।
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