Imran Khan: पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को हुई सजा और गिरफ्तारी के दुष्परिणाम समझने के लिए सेना की भूमिका समझनी होगी। सेना और कोर्ट की जुगलबंदी को समझना होगा। पाकिस्तान के लोकतंत्र के भविष्य को देखना होगा। क्या इस घटना से पाकिस्तान में लोकतंत्र कमजोर होगा? पाकिस्तान में अराजकता बढ़ेगी? पाकिस्तान की आर्थिक समस्याएं और भी गहराएंगी? पाकिस्तान एक असफल देश के रूप में दुनिया के सामने खड़ा होगा? क्या सेना और वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व कीमती वस्तुओं को गबन करने और बेचने का हथकंडा बना कर इमरान खान की राजनीतिक छवि को जमींदोज करना चाहते हैं? Imran Khan
पहले तख्तापलट से सेना राजनीतिक नेतृत्व को कुचलती थी और फांसी पर चढ़ाती थी। लेकिन अब कोर्ट को माध्यम बना कर राजनीतिक नेतृत्व का सेना दमन करती है। न्यायिक फैसलों से लोकतंत्र को कुचलने के लिए सेना की नीति बहुत खतरनाक है। पाकिस्तान में असली सत्ता सेना के पास होती है, चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार भी सेना की गुलाम होती है, न्यायपालिका भी गुलाम होती है, सेना ही तय करती है, आंतरिक नीति, विदेश नीति और सुरक्षा नीति। चुनी हुई सरकार तो सिर्फ मोहरा होती है, हाथी के दांत के समान होती है। Pakisthan
इसीलिए दुनिया कभी पाकिस्तान के राजनीतिक नेतृत्व पर विश्वास ही नहीं करती है, उसकी स्वतंत्रता को स्वीकार ही नहीं करती है और यह मानती है कि जब तक सेना की इच्छा या सहमति नहीं हो तब तक पाकिस्तान के राजनीतिक नेतृत्व से किसी भी प्रकार की बातचीत या फिर सहमति और असहमति की कूटनीति बेकार है, समय की बर्बादी है। यह भी सही है कि राजनीतिक नेतृत्व सेना की इच्छा और सहमति के बिना न तो आंतरिक सुरक्षा नीति तय कर पाता है और न ही बाह्य सुरक्षा नीति तय कर सकता है। यही कारण है कि अमेरिका जैसा बलवान देश भी पाकिस्तान से अपनी सुविधाओं और हितों की रक्षा को लेकर सेना को ही विश्वास में लेता था। Artical
सेना की इच्छा की अवहेलना करने का दुष्परिणाम बहुत ही लोमहर्षक | Imran Khan
सेना की इच्छा की अवहेलना करने वाले लोकतांत्रिक शासकों की स्थिति और दुष्परिणाम बहुत ही लोमहर्षक होते हैं, खतरनाक होते हैं और बेमौत मरने जैसे होते है। जुल्फीकार अली भुट्टों ने सेना की अवहेलना की थी। अपने आप को सेना का भी बॉस समझने की कोशिश की थी। क्या दुष्परिणाम हुआ? दुष्परिणम बहुत ही भयानक हुआ, जहरीला हुआ और हिंसक हुआ। जुल्फीकार अली भुट्टो का तख्तापलट हो गया। जियाउल हक सीधे तौर पर तानाशाह बन गया। उसने चुने हुए प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो को पकड़ कर जेल में डाल दिया। फर्जी ढंग से मुकदमे चलाए गए, फर्जी ढंग से तथ्य गढेÞ गए। फिर न्यायपालिका गुलाम बन गई। जुल्फीकार अली भुट्टो को फांसी हो गई। भुट्टो को फांसी पर लटका दिया गया।
एक भविष्यवान नेता असमय मौत के मुंह में ढकेल दिया गया। नवाज शरीफ ने भी अपने आप को सेना का बॉस समझ लिया था। सेनाध्यक्ष परवेज मुशर्रफ को हटाने की कोशिश की थी। परवेज मुशर्रफ ने तख्ता पलट दिया और खुद शासक बन गया। नवाज शरीफ को जेल में डाल दिया गया। सऊदी अरब के हस्तक्षेप से नवाज शरीफ की जान बची थी, फांसी पर चढ़ने से बचे थे। लेकिन सऊदी अरब में निर्वासित जिंदगी जीने के लिए विवश हुए थे। बेनजीर भुट्टो को सरेआम गोलियां मार दी गईं। आरोप सेना पर ही लगा। एक बार फिर नवाज शरीफ पाकिस्तान की राजनीति में प्रविष्ट जरूर हुए पर सेना द्वारा प्रपंच में उनकी हैसियत और छवि डूब गई, सेना की इच्छा की पूर्ति न्यायपालिका की कसौटी पर हो गई। नवाज शरीफ को सजा हुई और वे राजनीति के अयोग्य घोषित कर दिए गए।
इमरान खान भी सेना की ही पैदाइश हैं। कभी सेना ने ही उन्हें अपना हथकंडा बनाया था। इस तरह पाकिस्तान की आंतरिक और बाह्य नीतियों पर भी सेना की ही इच्छा और कब्जा रहेगा। इसी कारण चुनावों में धांधली कर इमरान खान को जीताया गया और प्रधानमंत्री बनवाया गया। प्रारंभ में इमरान खान ने सेना की हर स्थितियां-परिस्थितियां अनुकूल बनाई। लेकिन सेना और इमरान खान के बीच में परिस्थिति प्रतिकूल होने के दो कारण प्रमुख रहे। एक बड़ा कारण पीएम नरेन्द्र मोदी हैं और दूसरा कारण सेना का आतंरिक प्रबंधन में हस्तक्षेप है। पीएम नरेन्द्र मोदी ने कश्मीर से धारा 370 हटा कर पाकिस्तान को बड़ा झटका दिया था और पाकिस्तान की पूरी हेकड़ी तोड़ डाली थी।
पाकिस्तान की सेना चाहती थी कि इमरान खान अमेरिका को मैनेज करे और पूरे विश्व को भारत के खिलाफ खड़ा कर दे। भारत से युद्ध की भी संभावना तलाशी जाए। लेकिन इमरान खान पूरी कोशिश करने के बाद भी न तो अमेरिका को अपनी ओर झुका सके और न ही शेष दुनिया को भारत विरोधी बना सके। पीएम मोदी के नेतृत्व के सामने दुनिया दुश्मनी मोल लेने के लिए तैयार नहीं हुई, इतना ही नहीं बल्कि मुस्लिम दुनिया यानी कि सऊदी अरब व इस्लामिक आर्गेनाइजेशन के सदस्य देशों ने भी पीएम मोदी की नाराजगी के डर से बहुत तीखी प्रतिक्रिया नहीं दी थी।
अफगानिस्तान को लेकर सेना और इमरान खान में मतभेद थे। सरकार के दिन-प्रतिदिन के काम में सेना का हस्तक्षेप खतरनाक ढंग से बढ़ा हुआ था। इस कारण इमरान खान सेना से नाराज थे। वे चाहते थे कि सेना के शीर्ष पद पर बैठने का फैसला हम करें। ऐसे भी इस प्रसंग में इमरान खान की सोच गैर जरूरी या गलत नहीं थी। चुनी हुई सरकार के अधीन ही सेना कार्य करती है। पाकिस्तान के लोकतांत्रिक संविधान में भी इस तरह का प्रावधान है। खासकर सेना अध्यक्ष और आईएसआई की कुर्सी पर बैठने वाले लोगों का भाग्य तय करने का अधिकार इमरान खान को था। इमरान खान ने इसके लिए प्रयास भी किए।
उन्होंने आईएसआई और सेनाध्यक्ष को बदलने की कोशिश की थी। सेना को यह कैसे सहन हो सकता था कि उनकी बिल्ली ही उन्हें म्याऊं-म्याऊं बोले और आंख तरेरे। सेना के इशारे पर इमरान खान के खिलाफ बगावत होती है, विद्रोह होता है, गठबंधन के समर्थक दल अलग होते हैं। इमरान खान ने भी सेना का सामना किया, सेना को औकात बताने की कोशिश की, कोर्ट के आदेश के प्रति भी सहानुभूति दिखाने से पीछे हट गए। राजनीतिक स्थिति खतरनाक होने के कारण सेना को अप्रत्यक्ष तौर पर हस्तक्षेप करना पड़ा। इस कारण सेना और इमरान खान की पार्टी के बीच हिंसक स्थितियां भी उत्पन्न हुर्इं। विजयी तो वही होता है, जिसके साथ सेना खड़ी होती है। सेना इमरान खान के खिलाफ खड़ी थी। इसलिए इमरान खान की प्रधानमंत्री की कुर्सी चली गई। Imran Khan
वर्तमान में जितने भी प्रधानमंत्री और राष्टÑपति के पद पर बैठे हुए राजनीतिज्ञ हैं, उन सबका हस्र न्यायपालिका की कसौटी पर ही हुआ है। आसिफ जरदारी आर्थिक गड़बड़ी की कसौटी पर न्यायपालिका के शिकार बने, नवाज शरीफ भी न्यायपालिका के फैसले के कारण राजनीति के क्षेत्र में अयोग्य घोषित किए गए और उन पर भी सजा की चोट पहुंची है। अब यह तय हो गया कि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जो भी बैठेगा उसका हस्र इसी प्रकार से होगा, सेना और कोर्ट की जुगलबंदी इसी तरह से जारी रहेगी। सेना अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए न्यायपालिका का इसी तरह से दुरुपयोग करती रहेगी। सेना को कई प्रकार के हथकंडे आगे भी मिलते रहेंगे। Imran Khan
यह सही है कि इमरान खान ने कुछ कीमती सामानों को निजी बता कर इस्तेमाल किया या फिर उसे निजी संपत्ति मान कर बेच दिया। इमरान खान की यह कार्रवाई जरूर नैतिकता और कानून की दृष्टि से सही नहीं है। इसलिए कि ये कीमती वस्तुएं इमरान खान को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे होने के कारण मिली थी। इसलिए उस पर पूरे पाकिस्तान का अधिकार बनता है। पर न्यायपालिका को लोकतंत्र के प्रति भी सोच विकसित करनी चाहिए थी, चिंता करनी चाहिए थी। सेना और कोर्ट की इस तरह की जुगलबंदी से पाकिस्तान एक सफल देश तो कभी नहीं बनेगा। Imran Khan
विष्णु गुप्त, वरिष्ठ स्तम्भकार एवं स्वतंत्र पत्रकार
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