राजनीति और आर्थिक नीतियां इस तरह उलझ गई हैं कि सरकारें अपनी, कमियों या आवश्यक सुधारों को जनता के लिए तोहफे के तौर पर पेश कर रही हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 18 दिसंबर को बयान दिया था कि केंद्र सरकार जीएसटी के साथ जुड़ी वस्तुओं में छूट दे सकती है, जिससे आम आदमी को फायदा होगा, वस्तुएं सस्ती होंगी इस घोषणा से तीन दिन बाद जीएसटी कौंसिल की बैठक में 33 वस्तुओं पर से टैक्स घटा दिया गया। दरअसल यह कोई राहत या तोहफा नहीं बल्कि जीएसटी लागू करते समय इस्तेमाल की गई जल्दबाजी का परिणाम है। तीन राज्यों में भाजपा की हार के बाद सरकार ने डैमेज कंट्रोल के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए हैं।
सरकार में नीतियों संबंधी भागदौड़ वाला माहौल है व गलतियां सुधारने के लिए धड़ाधड़ निर्णय लिए जा रहे हैं। अब भी बड़ी परेशानी इस बात से है कि उक्त निर्णय लोक सभा चुनावों को मुख्य रख कर लिए जा रहे हैं। नयी उलझन यह पैदा हो रही है कि विपक्षी पार्टियों की सरकारों वाले राज्य इन निर्णयों को आफत भरे करार दे रहे हैं। टैक्स में कटौती के साथ राज्यों की आमदनी का ग्राफ और नीचे जाएगा। वास्तव में वित्त मंत्रालय का अपना अलग कोई अस्तित्व नहीं होता बल्कि चुनावों की तैयारी के लिए वित्तीय निर्णयों को बदला जाता है।
भाजपा ने जीएसटी का श्रेय लेते समय जल्दबाजी की व कुछ बिंदुओं पर बिना विचार किए ही कानून लागू कर दिया हालांकि कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियों की सरकार वाले राज्यों ने जीएसटी को लागू किया परंतु टैक्स में त्रुटियां होने के कारण आर्थिक ताना-बाना उलझ गया है। कपड़ा व्यापारियों ने देश भर में हड़ताल रखी। छोटे उद्योगों को इस टैक्स से भारी मार पड़ी व लाखों कर्मचारी बेरोजगार हो गए। कांग्रेस ने टैक्स को गब्बर सिंह टैक्स का नाम दे दिया।
कांग्रेस के गब्बर सिंह टैक्स को भाजपा ने ‘ग्रेंड स्टुपिड थॉट’ का नाम दिया परंतु सरकार कांग्रेस के पैटर्न की तरफ ही बढ़ रही है सरकार काफी वस्तुओं को 28 प्रतिशत स्लैब से 18 प्रतिशत पर ले आई है। इसी तरह 18 स्लैब की वस्तुओं को 12 फीसदी में लाया गया है। अब 28 प्रतिशत स्लैब ही खत्म करने की चर्चा चल रही है।
यदि इसी तरह तब्दीलियां होती रही तो शुरूआती दौर का जीएसटी ताजा जीएसटी दो अलग कानून ही नजर आएंगे। टैक्स संबंधी नीतियां तैयार करने में जुटे आर्थिक विशेषज्ञों की राय को राजनैतिक राय से अधिक अहमियत देने की जरूरत है। विकास के लिए वाजिब टैक्स जरूरी है परंतु आम लोगों को राहत चाहिए वित्तीय मामलों को राजनैतिक मंशा के साथ तोड़ने-मरोड़ने का परिणाम हमारे सामने है। विश्व को जाने-माने अर्थ शास्त्री देने वाले देश की सरकारों को आर्थिक विशेषज्ञों की राय व सेवाएं अवश्य लेनी चाहिए।
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