सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थाई समिति ने पारिवारिक दायित्वों के निर्वहन के लिए दिए जाने वाले अवकाशों (चाइल्ड केयर) की तरह सरकारी कर्मचारियों को बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल के लिए भी अवकाश देने की सिफारिश की है। यह अह्म सिफारिश तब की गई है, जब सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण से जुड़े नियमों में बदलाव को लेकर एक नया विधेयक लाने की तैयारी में है। विडंबनाजनक है कि वर्तमान के बदलते तकनीकी दौर में बुजुर्ग हाशिए पर धकेल दिए गए हैं। संयुक्त परिवार प्रथा विलुप्त होती जा रही है। ऐसे में बुजुर्गों के हितों और अधिकारों की रक्षा के लिए कदम उठाए जाने की सख्त जरूरत है।
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गौरतलब है कि मौजूदा समय में देश में बुजुर्गों की आबादी करीब 12 करोड़ है। जो वर्ष 2050 तक 33 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। ऐसे में बुजुर्गों की देखभाल के लिए कार्मिकों के लिए अवकाश की सिफारिश बुजुर्गों के प्रति कर्तव्य पालन और सेवा के लिए एक अह्म बात है। यह उनके अधिकारों की रक्षा के लिए भी जरूरी है। विडंबना है कि अनुभव को अमूल्य पूंजी समझने वाला समाज ही बुजुर्गों के प्रति बुरा बर्ताव करने लगा है। बाजारवाद और उदारीकरण के उपभोक्तावादी समाज में बुजुर्ग खोटा सिक्का समझे जाने लगे हैं। आज वृद्धाश्रम में जूझते वृद्धों की पीड़ा किसी से छुपी नहीं है। वृद्धाश्रम जीवन के कड़वे समय को दर्शाता है।
वहीं,कितना तकलीफदेह होता है, बुढ़ापे की स्थिति में सड़कों पर किसी से भीख मांगते देखना, किसी लोकल ट्रेन में भारी भरकम बोझ उठाए फेरी लगाते देखना, अपमान का घूंट पीकर अपने जीवन को ढोना या फिर अपने आप को गिरवी रख कर वृद्धाश्रम की ऊंची दीवारों को नापना। ऐसे में जरूरत है बुजुर्गों की देखभाल करने,उनकी बातों को सहजता से सुनने और उनकी इच्छाओं को महत्व देने की। मुख्य रूप से वृद्धावस्था में स्वास्थ्य की देखभाल को लेकर विशेष व्यवस्था होनी चाहिए। बुजुर्गों में गैर संक्रामक रोगों एवं किसी न किसी प्रकार की विकलांगता की समस्या सबसे ज्यादा रहती है। इसलिए वृद्धों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाई जानी चाहिए एवं स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए।
क्योंकि हमारी स्वास्थ्य प्रणाली बुजुर्गों में बढ़ती गैर संक्रामक बीमारियां जैस अल्जाइमर, डिमेंसिया (इन रोगों में याददाश्त प्रभावित होती है) आदि से निपटने के लिए पर्याप्त साधन नहीं रखती। स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी भी इस प्रकार के रोगियों की देखभाल के लिए प्रशिक्षित नहीं हैं। ऐसे मामलों में स्वास्थ्य सेवाएं अपर्याप्त तो हैं ही, साथ ही अस्पताल में भर्ती होने का खर्च भी बहुत ज्यादा है। इंडिया ह्यूमन डेवलपमेंट सर्वे के मुताबिक पुराने एवं असंक्रामक रोगों से पीडित बुजुर्गों की संख्या दुगुनी हो गई। इनमें महिलाओं की संख्या अधिक है। ऐसे में बुजुर्गों के हितों के प्रति जापान सरकार के प्रयासों से सबक लिया जा सकता है।
जापान ने केयर होम का रास्ता निकाला है। जहां प्रतिदिन वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से अस्पतालों के डॉक्टर या नर्स बुजुर्गों से दिन में दो-तीन बार उनका हालचाल और दवाई लेने के बारे में पूछते रहते हैं। वहीं, आॅस्ट्रेलिया में भी दुनिया की बेहतरीन बुजुर्ग देखभाल प्रणाली है। वहां बुजुर्गों की देशभाल संबंधी जरूरतों का सबसे लोकप्रिय समाधान वहां बनाए जाने वाले ‘सेवानिवृत्ति गांव’ हैं। पूरे आॅस्ट्रेलिया में करीब 2 हजार से ज्यादा रिटायरमेंट विलेज हैं, जहां वर्तमान में करीबन दो लाख से ज्यादा बुजुर्ग निवास करते हैं। इन गांवों में एक से तीन शयनकक्ष वाले घरों के साथ इन बुजुर्गों को आत्मनिर्भर जीवन जीने की आजादी मिलती है। वहीं, संयुक्त राष्ट्र भारत को ‘बूढ़े होते देश’ के रूप में वर्गीकृत करता है, जिसमें कुल जनसंख्या का 8.6 प्रतिशत 60 या इससे ज्यादा उम्र के बुजुर्ग हैं।
इतना ही नहीं यह आबादी साल 2050 तक तीन गुना होने की उम्मीद है, जो तब कुल आबादी का 20 फीसदी हिस्सा होगा। वहीं देश में आज निजी क्षेत्र में बुजुर्गों के लिए कम से कम तीन लाख आवासों की आवश्यकता है। साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं में भी नवाचार की आवश्यकता है। ऐसे में सरकारों को चाहिए कि अभावों से जूझ रहे बुजुर्गों के उद्धार के लिए संसाधनों की सृजनात्मकता से उनकी जरूरतों को पूरा करने पर ध्यान दें। साथ ही समाज को बुजुर्गों के प्रति अपने रवैए को भी बदलना होगा। नरपतदान बारहठ, युवा लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार
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