तामिलनाडू के पांच बार मुख्यमंत्री रहे एम करूणानिधी 94 वर्ष की आयु में दुनिया से अलविदा हो गए। स्वर्गीय जय ललिता के साथ कट्टर विरोधी व राजनैतिक शत्रु होने के चलते मशहूर इस नेता में बहुत सी विशेषताएं थीं, जो उनको एक काबिल नेता के तौर पर साबित करती हैं। उनकी सबसे बड़ी खासियत तो यह रही कि वह 90 वर्ष की आयु तक भी राजनीति में चर्चित रहे। उनकी तरफ से पार्टी के लिए की गई मेहनत का ही परिणाम है कि 1967 के बाद राष्टÑीय पार्टियां तामिलनाडू में अपने पैर नहीं जमा सकीं। करूणानिधि की रणनीति के कारण ही तामिलनाडू की राजनीति का केन्द्रीय राजनीति में प्रभाव रहा।
खास बात यह है कि वह केन्द्र में कांग्रेस व भाजपा दोनों के साथ चलने में कामयाब हुए। हिन्दी भाषा के कट्टर विरोधी होने के बावजूद भाजपा नेताओं के साथ मिलकर चलना एक चुनौती थी, इसके बावजूद केन्द्र सरकार में साझीदार बने। आज के बहुत से राजनेताओं के लिए साहित्य व कला किसी अन्य दुनिया की बातें हैं। करूणानिधि सक्रिय राजनीति में होने के वाबजूूद साहित्य अध्ययन के साथ निरंतर जुड़Þे रहे व अपनी एक मैगजीन के लिए प्रतिदिन कुछ न कुछ लिखते रहे। वह मूल तौर पर फिल्म जगत में स्क्रिप्ट लेखक थे व फिल्मों से राजनीति में आए। लिखने का शौक उनको आयु के आखिरी पड़ाव तक भी रहा।
वह साहित्य रचना नहीं अपने सपने बुनते थे व राजनीति द्वारा उनको साकार करने का प्रयास करते रहते थे। वह फिल्मों से समाज की असलियत को उभारने व बदलाव लाने का संदेश देते थे। कला प्रति इसी लगन व उत्साह को उन्होंने राजनीति में उतारने का भी प्रयास किया, जिस कारण विपक्षी नेताओं के साथ टकराव वाले हालात भी बनते रहे।
इसी कारण ही उनको कला का विद्वान भी कहा जाता है। विचारों की विभिन्नता के बावजूद उन्होंने अपने सख्त रवैये में बदलाव किया व गठबंधन की राजनीति के लिए विपक्षी विचारों वाली पार्टियों के साथ जुड़े। बुढ़ापे ने उनकी राजनीति में समझदारी के प्रभाव और सुस्थिर कया। थोड़Þी सी आलोचनाआें के बावजूद करूणानिधि को तामिलनाडू की राजनीति का सुपर-स्टार व देश की राजनीति के लिए पे्ररणा का स्त्रोत माना जाएगा।
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