कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ में आयोजित अपनी किसान रैली में लोगों से ये वादा किया है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद अगर कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई तो सबके लिए एक निश्चित आमदनी की गारंटी कर दी जाएगी। उनका मानना है कि इससे देश में न कोई भूखा रहेगा, न कोई गरीब रहेगा। राहुल ने न्यूनतम आमदनी गारंटी की बात ऐसे वक्त में की है जब लोकसभा चुनाव के मद्देनजर प्रमुख राजनीतिक दल चुनावी घोषणा-पत्र तैयार करने में लगे हुए हैं। हालांकि उन्होंने इसकी कोई रूपरेखा नहीं बताई है। हालांकि अर्थशास्त्रियों का मानना है कि सभी व्यक्तियों के लिये एक निश्चित आय का बोझ कोई बहुत विकसित अर्थव्यवस्था ही उठा सकती है, जबकि भारत एक विकासशील व विशाल आबादी वाला देश है। न्यूनतम आय गारंटी के पीछे मंशा तो अच्छी है, लेकिन अमलीजामा पहनाने के लिए बहुत-सी बाधाएं दूर करनी होंगी। सबसे पहली चुनौती क्रियान्वयन से जुड़ी है।
देश में चलाई गई ढेरों योजनाओं की बड़ी नाकामी हमेशा यही रही है कि उन्हें अच्छी मंशा से शुरू किया जाता है, लेकिन वे क्रियान्वयन की चुनौतियों की शिकार हो जाती हैं। यह आशंका है कि कहीं न्यूनतम आय गारंटी ( एमआईजी) योजना सब्सिडी पर आधारित वर्तमान कल्याणकारी योजनाओं की फेहरिस्त में तो नहीं जुड़ जाएगी। उस स्थिति में खजाने के लिए इसका बोझ उठाना संभव नहीं होगा। दूसरी चुनौती गरीबी रेखा (बीपीएल) को सही से परिभाषित करने की है।
जिन्हें सहायता की जरूरत है और जिन्हें नहीं है, उनके बीच फर्क करना मुश्किल भरा काम है। इंडिया ह्यूमन डेवलपमेंट सर्वे के मुताबिक वर्ष 2011-12 में आधिकारिक तौर पर आधे गरीबों के पास बीपीएल कार्ड नहीं था, जबकि गैर-गरीबों में से लगभग हर तीसरे के पास था। इसके अलावा एक प्रमुख चुनौती वित्तीय व्यवहार्यता यानी राजकोष की इसे वहन कर पाने की क्षमता की भी है। मध्य प्रदेश में पायलट प्रोजेक्ट के नतीजों पर गौर करें तो देशभर में बिना किसी शर्त के समाज के निचले तबके को बेसिक आय की सुविधा देने से गरीबी, भुखमरी, बीमारी और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से निपटने में निश्चित रूप से बेहद मदद मिलेगी। यदि भारत में न्यूनतम आय गारंटी को सफलतापूर्वक तरीके से जमीन पर उतारा जाए तो प्रत्येक नागरिक को शिक्षा, स्वास्थ्य और खाद्य-सुरक्षा जैसी मौलिक सुविधाओं के बाद एक सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार मिल सकेगा।
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