नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। विश्व के रणनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चीन का अपने पड़ोसी देशों के विरुद्ध सामरिक रूप से आक्रामक होना उसकी सोची-समझी एवं सुनियोजित चाल है तथा इससे निपटने के लिए तात्कालिक एवं दीर्घकालिक योजना बनाना जरूरी है। चीन विश्लेषण एवं रणनीति केंद्र (सीसीएएस) तथा अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक कोन्राड एडेनॉएर स्टिफ्टंग (केएएस) द्वारा मंगलवार शाम को चीनी आक्रामकता की निरंतरता के बारे में आयोजित एक सम्मेलन में सीसीएएस के अध्यक्ष जयदेव रानाडे, विवेकानंद केंद्र के निदेशक अरविंद गुप्ता, केएएस के निदेशक एड्रियन हाक, जापानी सामरिक विश्लेषक हिरोयुकी अकीता, ताईवान के सुन यात सेन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर डॉ. यिंग यू लिन, चीन में भारत के राजदूत रहे गौतम बम्बावाले, लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी और लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह ने भाग लिया।
विवेकानंद केंद्र के निदेशक गुप्ता ने प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए कहा कि चीन ने 2008-2009 में अपनी विकास यात्रा को शांतिपूर्ण बता कर शुरूआत की लेकिन शी जिनपिंग के 2012 में सत्ता में आने के बाद आक्रामक और हक जमाने वाला बनने लगा। गलवान घाटी की घटना के बाद भारत चीन के संबंधों का विमर्श बदल गया। वैश्विक स्तर पर शक्ति संतुलन की प्रतिस्पर्धा में एक ओर अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देश हैं और दूसरी ओर रूस एवं चीन की अपरिमित साझीदारी है। इसके अलावा ईंधन, खाद्यान्न और उर्वरक के ऊंचे दाम तथा रूस पर पश्चिमी प्रतिबंध लागू हैं। ऐसे में चीन की भूमिका क्या होगी, यह विचारणीय प्रश्न है।
चीन ने सामरिक आक्रामकता दिखानी शुरू की
रानाडे ने भारत के दृष्टिकोण को साझा करते हुए कहा कि वर्ष 2008 के बाद से तिब्बत के भारतीय सीमा के समीपवर्ती क्षेत्रों में चीन ने व्यापक ढांचागत निर्माण शुरू किया। चीन के उभार के कारण न केवल हिन्द प्रशांत क्षेत्र में भारत, जापान और वियतनाम आदि के शक्ति संबंधों में बदलाव हुए बल्कि पश्चिम ने भी नाटो को सुदृढ़ करने और आस्ट्रेलिया ब्रिटेन अमेरिका का सुरक्षा संबंधी गठजोड़ आॅकस बनाने का काम किया।
उन्होंने कहा कि जिनपिंग के सत्ता में आने पर चीन ने सामरिक आक्रामकता दिखानी शुरू कर दी। देप्सांग, देम्चोक, चुशूल और डोकलाम से लेकर गलवान घाटी की घटनाओं तक देखा गया कि चीन का दुष्प्रचार तंत्र खूब सक्रिय रहा। उन्होंने कहा कि पूर्वी लद्दाख में सैन्य अभियान को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बाकायदा औपचारिक स्वीकृति हासिल है।
रानाडे ने बताया कि चीन ने तिब्बत में ल्हासा तक हाईस्पीड रेल मार्ग का निर्माण शुरू किया है। दो नये हाईवे बनाने और मौजूदा हाईवे का उन्नयन करने और शिगात्से से आगे रेल संपर्क बनाने का काम किया है। तिब्बत में कई नये हवाई अड्डे बनाये जा रहे हैं। सीमा रक्षा गांव और बड़े बड़े गोदाम भी बनाये हैं।
पड़ोसी देशों के साथ संबंध मजबूत करने की जरूरत
चीन मामलों के विशेषज्ञ पूर्व राजदूत गौतम बम्बावाले ने कहा कि वर्ष 2012-13 और उसके बाद देप्सांग, देम्चोक, चुशूल में भारत एवं चीन की सेनाओं के बीच टकराव आकस्मिक कहा जा सकता है, लेकिन पूर्वी लद्दाख में 2020 की घटना बाकायदा सोच समझ एक सुनियोजित तरीके से अंजाम दी गई है। चीन को भारत से हालांकि इस तरह के उग्र जवाब की आशा नहीं थी। उन्होंने कहा कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की बहुत स्पष्ट नीति है।
इसमें कोई उलटफेर नहीं कोई गुंजाइश नहीं है। इसलिए हमें इससे निपटने के लिए तात्कालिक और दीर्घकालिक योजना बनाना होगा। दीर्घकालिक योजना में आगामी 25 साल तक आठ से 10 प्रतिशत तक आर्थिक वृद्धि दर बनाए रखने और औद्योगिक एवं विनिर्माण क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाने की जरूरत है जबकि तात्कालिक योजना में क्वॉड और हिन्द प्रशांत क्षेत्र में गठबंधन मजबूत एवं कारगर बनाने तथा श्रीलंका, नेपाल, बंगलादेश, भूटान और मालदीव आदि पड़ोसी देशों के साथ संबंध मजबूत करने की जरूरत है।
चीन और रूस ने जापान को बड़ी सामरिक चुनौती पेश की
जापान के दृष्टिकोण से चीन की आक्रामकता के बारे में चर्चा करते हुए अकीता ने कहा कि यूक्रेन युद्ध के बाद से चीन और रूस ने जापान को बड़ी सामरिक चुनौती पेश की है। दोनों देशों की सेनाओं के संयुक्त गश्ती बेड़ों ने समुद्री और हवाई मार्ग से जापान को चारों ओर से घेरने का कई बार अभ्यास किया है।
लगता है कि यूक्रेन के बाद चीन ताईवान और सेनकाकू द्वीप पर सैन्य कार्रवाई करेगा। प्रोफेसर यिंग यू लिन ने चीन से उनके देश को बढ़ते हुए खतरे की जानकारी दी। लेफ्टिनेंट जनरल कुलकर्णी और लेफ्टिनेंट जनरल ने पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना के साथ वास्तविक स्थिति की समीक्षा की।
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