मैं दो दिन तक भारतीय दण्ड संहिता खंगालता रहा मुझे वह धाराएं नहीं मिली जो यह बताएं कि जेल में बंद किसी महान हस्ती के प्रति आस्था रखना अपराध है। और तो और भारतीय संविधान में एक भी ऐसा अनुच्छेद मुझे नहीं मिला जो बता रहा हो कि आस्था तय करना सरकार या पुलिस का कार्य है। जबकि चंद रोज पहले राष्ट्रीय राजमार्ग 10 पर सुनारिया गांव (रोेहतक) के पास पुलिस ने आठ लोगों को हिरासत में ले लिया कि वे लोग सुनारिया जेल की तरफ मुंह कर प्रार्थना कर हे थे व नमस्कार कर रहे थे। पुलिस ने अपनी कार्रवाई को सही ठहराने के लिए उस प्रार्थना को मीटिंग का रूप दिया जो कि पुलिस अकसर अपने गुनाहों पर पर्दा डालने के लिए करती रहती है।
यहां नए सवाल खड़े हो रहे हैं कि पहला कानून के पास क्या व्याख्या या शक्ति है जो किसी की आस्था में दखल करे, भले ही आस्था वालों का ईष्ट जेल में ही क्यों न हो। दूसरा अगर पुलिस मानती है कि सड़क किनारे खड़े होकर प्रार्थना नहीं की जा सकती या सड़क पूजा-पाठ का स्थान नहीं है तब हर साल जुलाई, अगस्त में हजारों लाखों कांवडिये भजनों के डीजे बजाते व नाचते हुए सड़कों पर जाते हैं। जिससे यूपी, हरियाणा, उत्तराखंड व दिल्ली में जाम लगते हैं व सड़क दुर्घटनाएं घटित हुई हैं।
तब क्या कांवडियों को भी जेल भेजा गया? पिछले दिनों गुरुग्राम में मुसलमानों को सड़क पर नमाज पढ़ने से रोका गया, उनमें कितने लोग हिरासत में लिए गए? इतना ही क्यों पूरा साल देश भर में दशहरा, दीवाली, मुहर्रम के अवसर पर पता नहीं कितने पूजा अनुष्ठान सड़के बंद कर किए जाते हैं तब क्यों प्रशासन उन सबको हिरासत में नहीं लेता? दण्ड संहिताएं, पुलिस, संविधान यह सब मानव ने बनाए हैं जिन्हें वह जब चाहता है क्षेत्र, भाषा, जाति, अमीर-गरीब के हिसाब से बदल लेता है।
लेकिन आस्था का भाव व मानव दोनों ही ईश्वर या कहें प्रकति की रचना हैं इन्हें कोई नहीं बदल सकता, यह सब इस सृष्टि के शुरू से है और इसके अंत तक रहेगी। कानून की यदि बात करें तब यह किसी भी कानून या संहिता मे नहीं लिखा हुआ है कि जेल को श्रद्धा से शीश झुकाना अपराध है। यह तो हर किसी का अपना विश्वास या तर्क है कि वह किस ख्याल को व क्यों पूज्य मानता है, पुलिस व प्रशासन का इसमें दखल निहायत ही अलोकतांत्रिक व दमनकारी है।
कोई बात तब तक अपराध नहीं है जब तक कि उसमें अपराध की भावना, तैयारी व आपराधिक कृत्य नहीं हो। मेरी पुलिस, प्रशासन व सरकार से यही सलाह है कि भारत व इसका समस्त भू-भाग लोकतांत्रिक शासन से संचालित है। इसे किसी के रहम का मोहताज न बनाइए अन्यथा इसमें आपका भी दम घुट जाएगा जो मानते हैं कि आज कानून उनके हाथ में है।
प्रकाश सिंह सरवारा
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