पंजाब विधान सभा का तीन दिवसीय मानसून सत्र केवल हंगामे की भेंट चढ़कर समाप्त हो गया। सत्तापक्ष व विपक्षी दलों के बीच राजनीति हावी रही, लेकिन किसी ने भी जनता के मुद्दों पर एक शब्द नहीं कहे। हाल ही में घग्गर नदी में बनी दरार के कारण जिला संगरूर व पटियाला में हजारों एकड़ फसल बर्बाद हो गई है। घग्गर का स्थायी समाधान करने के लिए विपक्षी दलों ने एक भी शब्द नहीं बोला।
दो-तीन सालों के बाद घग्गर के पानी से भारी नुक्सान होता आ रहा है। मानसून निकलने के बाद घग्गर की बात भी आई-गई हो जाएगी। भारी बारिश के कारण बठिंडा तो एक टापू बन गया था, जहां छह-छह फुट तक पानी जमा हो गया। उस वक्त बठिंडा से लोक सभा सदस्य हरसिमरत और पंजाब सरकार में कांग्रेस के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल के बीच तीखी शब्दिक जंग भी हुई लेकिन विधान सभा में पहुंचकर अकाली दल को बठिंडा की बाढ़ भी भूल गई। नशों व आत्महत्याओं के मामले में भी सदन ने अकाली दल और आम आदमी पार्टी ने सदन में चुप्पी साधे रखी।
आए दिन पंजाब में नशे की ओवरडोज से युवा मर रहे हैं। अब तो लड़कियों की भी नशे से मौतें होने की खबरें आ रही हैं लेकिन इस मामले पर किसी भी पार्टी के विधायक के पास न तो बोलने का समय है और न ही कोई इच्छा शक्ति नजर आ रही है। पिछले दिनों बच्चों के नहरों में डूबने की घटनाएं घटी है। लगभग साल में 30-40 मौतें नहरों में नहाने गए बच्चों की होती हैं। इस पर सरकार लोगों को जागरूक करने के लिए अधिकारियों को कोई दिशा-निर्देश नहीं दे सकती है। विपक्षी दल यह मामला उठाकर सरकार से मांग कर सकते थे।
दरअसल विधान सभा जनता की भलाई के लिए कानून बनाने की सभा है जहां जनता के मुद्दों को अनदेखा किया जा रहा है। आम जनता की खून पसीने की कमाई से एकत्रित टैक्सों से करोड़ों रुपए का खर्च कर चलने वाली विधान सभा की कार्यवाही में लोकतंत्र का तमाशा बन गया है जहां चर्चा या बहस कम और हंगामा ज्यादा हो रहा है। विधायकों की जिम्मेदारी व जवाबदेही केवल पार्टी की रणनीति तक सिमट गई है। हलके के लोगों की बात कोई नहीं सुन रहा। वैसे कोई एकआध विधायक ही होता है जो सत्ता में होने के बावजूद हलके की खातिर अपनी ही सरकार के मंत्री के खिलाफ धरने की चेतावनी देता है लेकिन यह बातें दुर्लभ होती जा रही हैं।