सरसा (सकब)। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि मालिक की याद में, उसके प्यार-मोहब्बत में जो खुशी मिलती है, वो कहीं से नहीं खरीदी जा सकती। इन्सान की भावना जब प्रबल हो जाती है, उस परमपिता परमात्मा के लिए अंत: करण तड़प उठता है, जब इन्सान अपने परमपिता परमात्मा के दर्श-दीदार हेतू व्याकुल हो जाता है, और उसका दर्श-दीदार होता है, तो ऐसा आभास होता है, ऐसा आनन्द आता है, जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती। एक नशा, एक नूर, एक लज्जत दिलो-दिमाग पे छा जाता है, कण-कण, जर्रे-जर्रे में परमपिता परमात्मा नजर आने लगते हैं, शरीर का रोम-रोम नशिया जाता है और इन्सान मालिक के दर्श-दीदार से निहाल हो जाता है। इन्सान को उस परमानन्द की प्राप्ति होती है, जो इस जहान में भी खत्म नहीं होता और अगले जहान में भी ज्यों का त्यों बना रहता है, लेकिन उसको पाने के लिए अपनी भावना का शुद्धिकरण करना होगा।
आप जी फरमाते हैं आप सुमिरन, भक्ति, इबादत करें, ताकि आपके अंदर जो बुरे, गलत विचार आते हैं, उन पर काबू हो जाए। चलो…, मन गलत विचार दे भी देता है, तो उस पर अमल न करो, उसके अनुसार न चलो, तो भी मालिक के कृपा-पात्र एक-न-एक दिन आप जरूर बन जाएंगे। जब बुरे विचारों को आप फोलो करने लगते हैं, मन की कही बातों पे अमल करने लगते हैं, तो आप दु:खी, परेशान रहते हैं, टेंशन में रहते हैं और अपने कर्मों का बोझ उठाते रहते हैं। इसलिए आप वचन सुनो, सुमिरन करो और अपने अंत:करण की सफाई करो। जब अंदर की सफाई हो जाएगी, जब आप अंदर से पाक-पवित्र हो जाएंगे, तो मालिक की कृपा-दृष्टि जरूर बरसेगी, उसकी दया-मेहर, रहमत से आपके जन्मो-जन्मो के पाप-कर्म धुल जाएंगे।
आप जी फरमाते हैं कि आप चलते, बैठते, लेटते, काम-धंधा करते हुए सुमिरन करो। मालिक के नाम को सलाम है। ये कभी न सोचो कि आप बहुत बड़े गुणवान बन गए हो, आपकी वाह-वाह हो रही है, शायद इसलिए मालिक, अल्लाह, राम आपको मोहब्बत करते हैं! नहीं, उसको आपकी मान-बढ़ाई से कोई लेना-देना नहीं। आप वचनों पर पक्के रहो, भावना मालिक के लिए बनाकर रखो। ये न हो कि आपकी भावना हर किसी के लिए गिरती, पड़ती हो, आप हर किसी के आशिक हो जाते हो। नहीं, आप उस परमपिता परमात्मा के आशिक बनो, तो वो खुशियां देता है, दोनों जहान का परमानन्द पिला देता है।
इसलिए जरूरी है सुमिरन के पक्के बनना। घंटा सुबह-शाम या आधा घंटा सुबह-शाम मालिक का नाम जपो, मालिक से मालिक को मांगो, बुरे कर्म ना करो। क्योंकि दो कश्ती पे सवार कोई वैसे ही नहीं बचता और एक कश्ती होती ही नहीं तो बचेगा कैसे? इसलिए परमपिता परमात्मा से आप आनन्द चाहते हैं, तमाम लज्जतें चाहते हैं और अपने अवगुण, पाप-गुनाह खत्म करना चाहते हैं, तो सुमिरन करो, सेवा करो और अपना प्यार-मोहब्बत मालिक के लिए दृढ़ करो, सिर्फ उसी से प्यार करो, बाकी फर्ज, कर्त्तव्य का निर्वाह करते रहो, यकीनन मालिक की कृपा-दृष्टि होगी। जो लोग सुनते हैं, मानते हैं, मालिक उन पर रहमो-कर्म जरूर बरसाते हैं।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।