यदि आप लंबी व स्वस्थ आयु का आनंद लेना चाहते हैं, छुटपुट रोगों से बचना चाहते हैं और जीवन को सुखद बनाना चाहते हैं तो आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि यह सब आपके हाथ में ही है और संभव भी है। वास्तव में प्रत्येक जीव बायोइलैक्ट्रीकल प्राणी है। जिस धरती पर हम निवास कर रहे हैं, यह भी एक इलैक्ट्रिकल ग्रह है। एक मनुष्य का शरीर करीब 3720000000000 (37 खरब से भी अधिक) सैलों से बना हुआ है। ये सभी सैल विभिन्न तरंगे उत्सर्जित करते हैं, फिर ही हमारा नर्वस सिस्टम, मांसपेशियां, दिल, लीवर, इम्यून सिस्टम आदि सही तरह से काम करते हैं। कोई सैल जिस भी अंग का हिस्सा होता है, वह उसी अंग के अनुसार काम करता है।
ऐसा बढ़िया तालमेल बनाने के लिए सब सैल आपस में संपर्क करने के लिए एक तरह की इलैक्ट्रिकल लालसा के द्वारा संबंध बनाते हैं। जिस व्यक्ति के सैलों का आपसी संपर्क अच्छा होता है या जिसके सैल बढ़िया तरीके से अपना काम करते हैं, वह व्यक्ति ही लम्बी आयु का भागीदार बनता है। लेकिन जो व्यक्ति जमीन के संपर्क में ज्यादा रहता है, उसके सैल ही सक्रियता से काम करते हैं।
कोई कितनी भी बेहतर खुराक, व्यायाम और साफ वातावरण में जीवन जीये, फिर भी उसके सैल ज्यादा लंबे समय तक स्वस्थ नहीं रहते, यदि वह रोजाना धरती के सीधा संपर्क में नहीं आता है। धरती के सीधा संपर्क में आने को ‘ग्राऊंडिंग’ और ‘अर्थिंग’ कहते हैं। यानि कि आने-बहाने नंगे पैर चलना, धरती पर बिना कुछ बिछाए बैठना, लोटना, सोना, भोजन करना, किचन गार्डन में कुछ देर व्यतीत करना या खेती करना, मजदूरी करना इत्यादि धरती के सीधे संपर्क में आना भाव ग्राऊंडिंग का लाभ उठाना चाहिए। इसी तरह प्रत्येक 12 घंटे बाद हर व्यक्ति को कम-से-कम आधे घंटे के लिए धरती के सीधा संपर्क में जरूर आना चाहिए।
धरती की एनर्जी से वंचित होने के कारण हम जल्दी बीमार होते है-
यूं भी जमीन के संपर्क में और ज्यादा रहने वाला व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से ज्यादा ताकतवर होता है। ऐसे व्यक्ति को हर खुराक हजम होती है और हर तरह का वातावरण भी फिट बैठ जाता है। क्योंकि उसके सैल ज्यादा स्फूर्ति वाले होते हैं। इन सैलों को स्वस्थ रखने के लिए खुले वातावरण में अधिक से अधिक रहना, धूप में भी रोजाना निकलना, भू-जल पीना, धरती में उगने वाली वस्तुएं ज्यादा प्रयोग करना जरूरी होता है। पवित्रता, सफाई रखना भी जरूरी है ताकि संक्रमण न हो या कम-से-कम हो लेकिन इन सबसे आवश्यक धरती के साथ अधिक से अधिक जुड़ा रहना जरूरी होता है। क्योंकि प्रत्येक जीव जमीन की प्राकृतिक इलैकट्रिक एनर्जी से ही जीवित है।
जीवन भी एक तरह की इलैट्रिक एनर्जी है। जो लोग ज्यादा नंगे पैर चलते हैं, मिट्टी के साथ मिट्टी होते हैं या नीचे बैठकर खाना खाते व सोते हैं उन्हें संक्रमण भी कम होता है और यदि संक्रमण हो भी जाए तो बिना दवाएं या बहुत कम दवा से ही जल्दी ठीक हो जाते हैं। इसका उदाहरण भिखारी और झुग्गी-झौंपड़ी वाले हैं। उन्हें बहुत कम संक्रमण होता है। इसके विपरीत जो लोग बहुत कम पैदल चलते हैं, नंगे पांव कभी भी नहीं रहते, हर वक्त सूटिड-बूटिड रहते हैं, ज्यादा समय वाहनों में रहते हैं, कभी भी नीचे बैठकर खाना नहीं खाते हैं, उन्हें संक्रमण की संभावना ज्यादा रहती है। प्लास्टिक या रबड़ की चप्पलें, बूट, सैंडल इत्यादि पहनने वाले लोग भी धरती की एनर्जी से वंचित होने के कारण ज्यादा जल्दी रोगी बन जाते हैं और लम्बी उम्र वाले नहीं होते।
स्वस्थ रहते है, कच्चे घरों में रहने वाले लोग-
इसी तरह जिन घरों में पत्थर, संगमरमर, लकड़ी या पक्की र्इंटें, सीमेंट, बजरी इत्यादि की फर्श लगा होता है, वह भी ज्यादा स्वस्थ नहीं होते। दिखने में तो हमें यह फर्श बहुत सुंदर लगते हैं, लेकिन स्वास्थ्यवर्धक नहीं हैं। इसी कारण पक्के घरों में रहने वाले लोगों को सुबह आलस चढ़ा रहता है जबकि कच्चे घरों में रहने वाले और नीचे सोने वाले लोग बहुत जल्दी उठ जाते हैं। उनके बाल जल्दी सफेद नहीं होते, उनके दांत और जाढ़ बहुत कम खराब होते हैं, उनकी आंखों की नजर कम नहीं होती, वे ज्यादा समय जवान रहते हैं। उनकी पाचन शक्ति, नींद, भूख, प्यास आदि बढ़िया रहती है। क्योंकि उनके सैल धरती से ज्यादा एनर्जी लते रहते हैं। परिणाम स्वरूप उनके सैलों की लाइफ लंबी हो जाती है। सैल ज्यादा चुस्त-दरुस्त होने के कारण उनके हार्मोन और एंजाईमज बेहतर गुणवत्ता के बने रहते हैं। इसी प्रकार शहरों में रहने वालों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों के लोग ज्यादा स्वस्थ और ताकतवर होते हैं, जबकि गांवों वालों की अपेक्षा वनों में रहने वाले और ज्यादा स्वस्थ रहते हैं।
प्राकृति वस्तुओं का करे ज्यादा सेवन-
प्राकृति के अनुसार जीवन जीने से ही आयु लंबी होती है। जैसे कि चूल्हे की बजाय तंदूर की रोटी स्वास्थ्यवर्धक होती है। कड़ाही की बिजाए कुल्हड़ की सब्जी, प्रैशर कुकर के बजाय मिट्टी के बर्तन की दाल, पतीले की बजाय कढ़ौनी का दूध, किसी पीतल, स्टील इत्यादि धातू के बर्तन के बजाय मिट्टी की बठली में दही जमाना भी लाभप्रद हैं। इस तरह ही ग्राइंडर में बनाई चटनी की अपेक्षा कुंडे की चटनी भी और ज्यादा पौष्टिक और स्वादिष्ट होती है। आप भी यदि ज्यादा स्वस्थ रहना चाहते हैं, लम्बी उम्र तक जीना चाहते हैं तो प्रकृति के अनुसार सादा जीवन जीने की कोशिश करें, जिस सीजन में जो फल और सब्जी ज्यादा होती हैं उन्हें ही ज्यादा खाएं, परमात्मा द्वारा बनाई गई नेचुरल वस्तुओं का ही ज्यादा सेवन करें, व्यक्तियों की बनाई चीजें कम खाओ।
जैसे कि परमात्मा ने फल बनाए हैं जबकि मानव ने जूस जैम बना लिए। परमात्मा ने दूध, दही, लस्सी, मक्खन, घी बनाया है जबकि मानव ने मिठाईयां बना ली हैं। दूध, दही, लस्सी में भी मनुष्य ने ही चीनी, गुड़, शक्कर, शहद, नमक, मिर्च आदि डालना शुरू किया है। परमात्मा ने आंवला बनाया था मानव ने मुरब्बा बना लिया। इस प्रकार परमात्मा ने जमीन को कच्चा बनाया था, मनुष्य ने फर्श लगाने शुरू कर दिए। परमात्मा ने पहाड़ बनाए थे, वातावरण के संतुलन के लिए लेकिन मनुष्य ने पहाड़ तोड़कर पत्थर को अन्य कार्यों में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। वास्तव में बात बहुत लंबी हो जानी है। प्राकृतिक के तोहफों और मनुष्य की गलतियों की लिस्ट बहुत लंबी है।
प्रत्येक वर्ष हर व्यक्ति लगाए 100 वृक्ष-
आपको एक ही बात कहना चाहते हैं कि धरती को अधिक से अधिक हरा-भरा रखने की कोशिश करें। प्रत्येक वर्ष हर व्यक्ति को कम-से-कम 100 वृक्ष लगाने चाहिए। वृक्ष भी क्षेत्रीय लगाने चाहिए विदेशी नहीं। खुद आप भी परिवार सहित अधिक से अधिक जमीन के सीधा संपर्क में रहने की कोशिश करें। घर में सब्जियां, सलाद और फलदार वृक्ष जरूर लगाएं। भू-जल का सेवन करें। खुली हवा, धूप में रोजाना थोड़ी देर जरूर निकलें। पैदल अधिक से अधिक चलने की आदत डालें, मशीनों की बजाए हाथों से ज्यादा काम करें, परिवार में मिल-बैठकर खुशी-खुशी जीवन जीयें। हर पल आयु के अनुसार आनंद और सुखी जीवन जीने का प्रयास करें।
डॉ. बलराज बैंस,
डॉ. कर्मजीत कौर बैंस
बैंस हैल्थ सैंटर, मोगा
मो. 94630-38229
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