Supreme Court: धर्मपत्नी को यातना दी तो भेज देंगे अंडमान जेल, कहीं से भी नहीं मिलेगी जमानत, सुप्रीम कोर्ट की पति को चेतावनी

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Supreme Court: धर्मपत्नी को यातना दी तो भेज देंगे अंडमान जेल, कहीं से भी नहीं मिलेगी जमानत, सुप्रीम कोर्ट की पति को चेतावनी

Supreme Court: नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक मामले में पति-पत्नी के बीच सुलह के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए। इस मामले में एक पत्नी ने अपने पति पर मारपीट का आरोप लगाते हुए अलग रहने का फैसला किया था। कोर्ट ने इस दंपति को एक साथ लाने के लिए परिवार के बड़े-बुजुर्ग की तरह भूमिका निभाई और उन्हें साथ रहने की सलाह दी। इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि सुप्रीम कोर्ट परिवारों को जोड़ने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है, साथ ही यह भी सुनिश्चित कर रहा है कि दंपति के बीच किसी भी प्रकार का दुर्व्यवहार न हो।

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मामले की शुरूआत और कोर्ट की भूमिका | Supreme Court

यह मामला 23 जनवरी 2025 का है, जब सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पति को आदेश दिया कि वह अपनी पत्नी को दिल्ली बुलाने के लिए 5000 रुपए किराया भेजे, जो यूपी के महराजगंज में रह रही थी। जस्टिस सूर्य कांत और एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने यह कदम इसलिए उठाया था, ताकि पत्नी को वापस अपने पति के पास बुलाया जा सके और उनके रिश्ते में सुधार किया जा सके। दोनों को 13 फरवरी को कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए कहा गया, और जैसे ही दोनों कोर्ट में आए, जजों ने 20 मिनट तक उनसे बातचीत की।

पत्नी के आरोप और पति का शपथ पत्र | Supreme Court

पत्नी ने कोर्ट में हिंदी में कहा कि उसके पति ने पहले उसके साथ बुरा व्यवहार किया है, और एक बार तो उसने उसे जलाने की भी कोशिश की थी। यह आरोप सुनने के बाद कोर्ट ने पति को शपथ पत्र देने का आदेश दिया, जिसमें उसने कहा कि वह अब अपनी पत्नी के साथ कोई बुरा व्यवहार नहीं करेगा और भविष्य में ऐसा नहीं करेगा। कोर्ट ने इस अवसर पर पत्नी से यह भी कहा कि उसे अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए, जो 14 और 6 साल के हैं।

पत्नी को बच्चों के भविष्य के बारे में सोचने की सलाह | Supreme Court

जजों ने पत्नी से कहा कि वह अपने बच्चों के लिए फैसला करें, क्योंकि उनके लिए एक साथ रहना बहुत महत्वपूर्ण है। यह संदेश देने की कोशिश की गई कि बच्चों को एक खुशहाल परिवार की आवश्यकता होती है, और ऐसे में माता-पिता का आपसी संबंध सकारात्मक होना चाहिए। जजों ने पति से भी यह कहा कि अगर वह अपनी शपथ पत्र के मुताबिक आचरण नहीं करता, तो उसे अंडमान की दूरदराज जेल में भेज दिया जाएगा। साथ ही, यह भी आदेश दिया जाएगा कि देश की कोई भी अदालत उसे जमानत न दे।

सुप्रीम कोर्ट का आगे का रास्ता

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 28 फरवरी को अगली सुनवाई तय की है और मामले की निगरानी के लिए कुछ निर्देश भी दिए हैं। कोर्ट ने दिल्ली के पटेल नगर थाने के एसएचओ को आदेश दिया है कि वह अगले 15 दिनों तक एक महिला कांस्टेबल को दंपति के घर भेजे, ताकि वह पत्नी से हर शाम उसके पति के बर्ताव के बारे में रिपोर्ट ले सके। इस रिपोर्ट को कोर्ट के समक्ष पेश किया जाएगा। इसके अलावा, दिल्ली स्टेट लीगल सर्विस आॅथोरिटी को भी निर्देश दिया गया है कि वह अपनी एक महिला वॉलंटियर को दंपति के घर भेजे, जो यह जांचे कि दोनों राजी-खुशी साथ रह रहे हैं या नहीं।

मामला यूपी से दिल्ली ट्रांसफर करने की बजाय सुलह का प्रयास

यह मामला पिछले साल दाखिल किया गया था, जब पत्नी ने दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में चल रहे घरेलू हिंसा के मुकदमे को अपने शहर, महराजगंज में ट्रांसफर करने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को महराजगंज ट्रांसफर करने के बजाय दोनों को एक साथ लाने और उनके बीच सुलह कराने का प्रयास किया। कोर्ट का मानना था कि अगर दोनों पक्ष एक-दूसरे से बात करें और रिश्ते में सुधार हो, तो मामला सुलझ सकता है।

पति को नसीहत: पत्नी को सम्मान देना दायित्व है

सुप्रीम कोर्ट ने इस अवसर पर पति को भी सख्त नसीहत दी। जजों ने कहा कि जब कोई पुरुष विवाह करता है, तो उसकी जिम्मेदारी बनती है कि वह अपनी पत्नी को सम्मान दे और उसके साथ सम्मानजनक व्यवहार करे। यह टिप्पणी पति को यह याद दिलाने के लिए की गई कि विवाह के रिश्ते में दोनों के बीच समान सम्मान और समझ होनी चाहिए।

कोर्ट का दृष्टिकोण: परिवार को जोड़ने की कोशिश | Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट का यह कदम इस बात को दशार्ता है कि वह न केवल कानूनी मामलों को सुलझाने के लिए है, बल्कि समाज में अच्छे रिश्तों की स्थापना के लिए भी काम करता है। कोर्ट का उद्देश्य यह था कि परिवार टूटने से बचें, विशेष रूप से बच्चों के हित में, और पति-पत्नी के बीच समझौते और सहमति के रास्ते से मामले का समाधान किया जाए। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय दिखाता है कि अदालतें न केवल कानूनी मामलों को सुलझाने का कार्य करती हैं, बल्कि परिवारों के भीतर सुलह और समझदारी बढ़ाने की दिशा में भी काम करती हैं। इस मामले में कोर्ट ने न केवल पति-पत्नी के रिश्ते को सुधारने का प्रयास किया, बल्कि बच्चों के भविष्य को भी प्राथमिकता दी। यह उदाहरण है कि कैसे कानून और न्याय व्यवस्था पारिवारिक मामलों में भी संतुलन बनाने की कोशिश कर सकती है, ताकि समाज में रिश्ते मजबूत हों और परिवारों में खुशहाली बनी रहे।