धरने पर बैठे तोशाम क्षेत्र के टमाटर उत्पादक किसानों ने दी चेतावनी
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बोले : मंडियों में लागत का चौथा हिस्सा भी नहीं मिलता
भिवानी (सच कहूँ/इन्द्रवेश दुहन)। कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को हिला दिया। इस दौरान आमजन को भले थोड़ी परेशानी हो रही है, लेकिन अन्नदाता बेहाल हो गया है। भिवानी में टमाटर उत्पादक किसान इतने मजबूर हो चुके हैं कि अब वो अपनी पकी-पकाई टमाटर की फसल पर ट्रैक्टर चला रहे हैं। इनके खेतों में टमाटर व शिमला मिर्च के ढेर कूड़े के ढ़ेर बन चुके हैं। मुंह छुपाने को जगह ना मिलने पर ये धरने पर बैठे हैं और मदद ना मिलने पर जान देने की कह रहे हैं। किसान नेताओं ने सरकार से इन्हें बचाने के लिए प्रति एकड़ 70 हजार रुपए मुआवजा देने की मांग की है।
जिले के तोशाम क्षेत्र में रमेश नामक किसान ने साल 2007 में सरकार द्वारा बागवानी की बढ़ावे देने से प्रेरित होकर परंपरागत खेती छोड़ सब्जी उगानी शुरू की। रमेश से प्रभावित होकर आसपास के गांवों के किसान भी सब्जी उगाने लगे। आज इनके हजारों एकड़ में टमाटर व शिमला मिर्च के ढेर लगे हैं। आज इन ढेरियों की हकीकत और असलियत सुनकर सरकार का दिल पसीजे या ना पसीजे पर आपका दिल भी पसीजेगा और रोंगटे भी खड़े हो जाएंगे।
भावांतर योजना को बताया छलावा, बंद हो ये योजना
राजस्थान के सटे तोशाम क्षेत्र के इन किसानों ने बालू रेत के तपते टिलों में हजारों टन टमाटर व शिमला मिर्च का उत्पादन किया। लेकिन लॉकडाउन के चलते कुछ मंडियां बंद हो गई तो कुछ में इनके टमाटर कौड़ियों के भाव बिक रहे हैं। कई बार तो कोई खरीदार ना मिलने पर वापस अपने खेत में लाकर डालना पड़ता है। टमाटर व शिमला मिर्च ना बिकने या कौड़ियों के भाव बिकने पर अनाथ अन्नदाता अब आंदोलन पर है। ये अपने खेतों में धरने पर बैठे हैं। देश के प्रगतिशिल किसान रमेश की बात करें तो इन्हें हर सरकार व विभाग से गोल्ड मैडल मिल चुके हैं।
- इन्हें किसानों के लिए बनने वाली पांच सदस्यीय कमेटी का सदस्य भी बनाया गया।
- इनसे प्रभावित होकर आसपास के गांवों के किसानों ने परंपरागत खेती करना बंद किया था।
- पर आज रमेश खुद धरने पर है।
रमेश का कहना है कि जो किसान मुझ से प्रभावित हुए थे, आज वे उन्हें मुंह दिखाने लायक नहीं हैं। रमेश ने बताया कि टमाटर के उत्पादन पर प्रति किलो चार रुपए और उसे तोड़ने, छटाई करने और मंडी तक पहुंचे में चार रुपये प्रति किलो मिलाकर 8 रुपये प्रति किलो खर्च आता है जबकि मंडियों में करीब दो रुपए किलो बिकता है और फिर वहीं टमाटर लोगों को दुकानों व रेहड़ियों पर 20 से 30 रुपये किलो मिलता है। साथ ही उन्होंने भावांतर योजना को किसानों के सत्यानाश की योजना बताते हुए इसे बंद करने की मांग की।
लॉकडाऊन में किसान पर बहुत बड़ी मार पड़ी है
वहीं रोशन व सुरेश नामक किसान ने भी बताया कि टमाटर ने उन्हें बर्बाद कर दिया है। राजकुमार ने यहां तक कहा कि उसने 53 एकड़ में टमाटर की बुआई की और बिक्री न होने पर बर्बाद हो गया। अब घर वाले घर में नहीं घुसने देते। किसानों का कहना है कि अगली फसल की बुआई बिजाई कैसे करें, कैसे खाने के लिए गेहूं व तूड़ी खरीदें, कैसे बच्चों के स्कूल की फीस दें। इन किसानों का कहना है कि सरकार ने उनकी मदद नहीं कि तो खुदकुशी के लिए मजबूर हो जाएंगे।
वहीं धरने पर पहुंचे किसान नेता कमल प्रधान ने कहा कि ये वो किसान हैं, जो सरकार की नीतियों से प्रभावित हुए थे। लेकिन लॉकडाऊन में इन पर बहुत बड़ी मार पड़ी है।
कमल प्रधान ने सरकार से मांग की है कि पीएम मोदी ने आत्मनिर्भर बनाने के लिए जो 20 लाख करोड़ रुपये का पैकज दिया है, उसमें किसानों को भी शामिल किया जाए और इन किसानों को भरपाई के तौर पर 70 हजार रुपये प्रति एकड़ मुआवजा दिया जाए। अन्नदाता की इस हालत पर भले सरकार का दिल नापिघले, पर जिस फसल को किसान हजारों रुपये खर्च कर, दिन रात मेहनत कर, अपने बच्चों की तरह पालता है, उस पर ट्रैक्टर चलाते किसान का दिल जरूर रोता है। अब देखना होगा कि जिस बागवानी योजना को बढ़ावा देने की सरकार बात करती है, उसी की मार झेल रहे इन किसानों के आंसु पोछने कोई आएगा या नहीं।
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