पूरे विश्व में कोरोना वायरस का प्रकोप जारी है। इस वायरस से अब तक पांच हजार से अधिक मौतें हो चुकीं हैं और एक लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हैं। वायरस फैलने की शुरूआत चीन से हुई थी। इस बात से इन्कार करना कठिन है मनुष्य ने प्राकृति की मर्यादा को भंग कर भयानक बीमारियों को खुद मोल लिया है। चीन का वुहान शहर सबसे पहले इस बीमारी की चपेट में आया जहां समुद्री जीव खाने के लिए बिकते हैं। यह मंडी ‘सी-फूड’ के नाम से प्रसिद्ध है। चीनी लोग चूहे, मेंढक, चमगादड़ तक खा रहे हैं दूसरी तरफ भारत की शाकाहारी संस्कृति मनुष्य को मजबूत व स्वस्थ सुरक्षा कवच देती है। जब मनुष्य प्राकृति से छेड़छाड़ की हदों को पार करेगा तब प्राकृति का प्रकोप बर्दाश्त करना पड़ता है।
प्राचीन ग्रंथ महाविज्ञान हैं जो मनुष्य का न केवल रूहानी नेतृत्व करते हैं बल्कि मनुष्य के स्वास्थ्य का रास्ता भी बताते हैं। शराब व मीट का प्रयोग करने से कितने लोगों की जान गई, इस बारे में आंकड़े देने की आवश्यकता नहीं। भारत से बाहर अब पाकिस्तान का एक प्रसिद्ध क्रिकेटर भी चीन को लेकर हैरानी प्रकट कर रहा है कि वह चमगादड़, मेंढक कैसे खा जाते हैं लेकिन हैरानी की बात है कि अभी भी हमारे देश का एक मंत्री पॉल्ट्री उद्योग को बचाने के लिए इस बात की दुहाई दे रहा है कि मांस-अंडे को खाने से कोरोना का कोई खतरा नहीं है। वह यह भी कहते हैं कि कोरोना की चर्चा से लोगों द्वारा मीट-अंडा खाना छोड़ने से इस उद्योग को 2000 करोड़ का घाटा उठाना पड़ रहा है लेकिन कोरोना के वायरस से बचाव के लिए सरकार ने कितना खर्च किया और व्यापार व काम ठप्प होने से कितनी आर्थिक तबाही हुई, इसके आंकड़े आने पर मीट-अंडे के कारोबार की कमाई शायद इन मंत्री महोदय को भूल जाएगी।
यही कुछ साल पहले बर्ड फ्लू फैलने के दौरान हुआ था। कभी सरकार ने लाखों रुपए के विज्ञापन देकर इस बात का प्रचार किया था कि एक विशेष डिग्री तापमान से पकाया गया मांस खतरनाक नहीं रहता। एक तरफ यूरोपीय लोग भारत की शाकाहारी संस्कृति को उत्तम बता रहे हैं दूसरी तरफ हमारे लोग ही मांसाहार के गुण गा रहे हैं। मेडिकल में मीट खाने के नुक्सान बताए गए हैं लेकिन यह तो विचारहीन युग का प्रमाण है जहां शराब की बोतल पर शराब को स्वास्थ्य के लिए खतरनाक बताकर भी सरकार की मंजूरी से सरेआम बेचा जा रहा है। दोगली नीति इस हद तक है कि शराब पीकर गाड़ी चलाने वाला अपराधी है लेकिन शराब पीना मना नहीं। शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे कार्यों को सफल बनाने के लिए शराब की कमाई का पैसा इस्तेमाल किया जा रहा है। धर्म, संस्कृति और मेडिकल साइंस प्रत्येक क्षेत्र शराब और मांस को मानव की बर्बादी बताया है। कोरोना के कहर के बाद तो सीख ली जानी चाहिए। अगर अब भी नहीं ली सीख तो फिर कब लेंगे।
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