देश में बढ़ता नैतिक पतन
आज हमारा समाज जिस दौर से गुजर रहा है उसका चित्रण प्रत्येक दिन अखबारों एवं टीवी के समाचारों द्वारा दिखाया जा रहा है। लोग ईमानदारी और सदाचार का मार्ग छोड़कर छोटे-छोटे लालचों में फंसे दिखते हैं। लालच प्रमुखत: धन प्राप्ति का है परंतु साथ ही कामचोरी का भी ...
पुस्तकें : बदलावों के प्रामाणिक दस्तावेज
संसार का स्वरूप भले ही जनमानस की आंखों से उतरकर उसके अन्त:करण तक अपनी उपस्थिति का भान कराने में समर्थ हो, मगर इस स्वरूप का विश्लेषणात्मक एवं व्यापक विवेचन विचारों के माध्यम से ही संभव है। विचार सदैव स्मरण के आधार पर स्थायी बने रहे, ऐसा कदाचित संभव नह...
अब एक भारत, एक चुनाव की आवश्यकता
भारत में बदलाव की हवा बह रही है। क्या हमारा देश चुनावों में सुधार के लिए तैयार हो रहा है? क्या हमारा देश निरंतर चुनावों पर रोक लगाने की दिशा में बढ़ रहा है, जिसके चलते हमारी राजनीति और शासन व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है? क्या हमारा देश लोकसभा ...
मानवीय संबंधों की मिठास का अहसास कराती चिट्ठियां
चिट्ठी आई है वतन से चिट्ठी आई है.....और लिखे जो खत तुझे, वो तेरी याद में हजारों रंग के नाारे बन गए...... जैसे गीत हमें कागा पर लिखी उन चिट्ठियों की याद दिलाते हैं, जिनमें सूचनाएँ ही नहीं भावनाओं का इजहार है और गहरी मानवीय संवेदनाएँ हैं। खाकी वर्दी पह...
प्लास्टिक कचरे से मुक्ति कब तक
वर्तमान में प्लास्टिक कचरा बढ़ने से जिस प्रकार से प्राकृतिक हवाओं में प्रदूषण बढ़ रहा है, वह मानव जीवन के लिए तो अहितकर है ही, साथ ही हमारे स्वच्छ पर्यावरण के लिए भी विपरीत स्थितियां पैदा कर रहा है। हालांकि इसके लिए समय-समय पर सरकारी सहयोग लेकर गैर सरक...
गरीबों को ऋण नहीं बचत चाहिए
विकास विशेषज्ञ रॉबर्ट वोगल ने एक बार कहा था ‘‘ग्रामीण वित्त के आधे भूले भुलाए लोग।’’ और अब संपूर्ण विश्व में इस बात को स्वीकार किया जा रहा है कि व्यक्तिगत वित्त के सबसे बुनियादी साधन छोटे बैंक हैं। नाजुक समय पर सही वित्तीय साधनों का उपलब्ध होना इस बा...
फिर बचपन सुरक्षित है कहां?
देश की लोकतांत्रिक राजनीति गाहे-बगाहे किसानों, और अन्य लोगों की चर्चा कर लेती है। भले आखिरी में परिणाम वही हो, वहीं ढाक के तीन पात। ऐसे में पहला ज्वलंत सवाल यही है कि क्या राजनीति ने कभी देश के भावी भविष्य को याद करने की भूल की? उत्तर नहीं है किसी के...
तीन दशकों में ही दम तोड़ने लगी हैं एटीएम मशीनें
किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि बैंकिंग क्षेत्र में इस तेजी से बदलाव आएगा कि प्रतिष्ठा सूचक एटीएम कार्ड की जितनी सहज पहुंच आम आदमी तक हो जाएगी, उतनी ही जल्दी उसके अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह उभरने लगेगा। हमारे देश में लगभग ऐसा होने लगा है। यह प्रतिष्ठा सूच...
समानता के साथ विकास: भारत में यह आदर्श कठिन
फ्रांस के अर्थशास्त्री द्वारा हाल ही में समाचार पत्रों में प्रकाशित यह तथ्य ‘‘भारत में व्यापक विषमताएं हैं, यह ऐसा देश है जहां पर शीर्ष के एक प्रतिशत लोगों तथा कुल जनसंख्या के विकास के बीच अंतर बहुत अधिक है’’। यह तथ्य बताता है कि देश में आय में असमान...
संतुलित विकास ही मुश्किलों का समाधान
मुंबई में एक रेलवे स्टेशन के पुल पर भगदड़ से 27 मौतें होना दु:खद हादसा है। भले ही रेलवे व राज्य सरकार ने मृतकों के परिवारों के लिए आर्थिक सहायता की घोषणा कर दी है लेकिन हादसे ने जो गहरे घाव दिए हैं उसे अब समय ही भर सकता है। दरअसल हादसे का कारण संतुलित...