भारत धर्मनिरपेक्ष था, है और रहेगा
भारतीय समाज का समग्र स्वरूप न तो किसी वारिस पठान या अकबरुद्दीन ओवैसी या उसकी किसी जहरीली सोच को स्वीकार करता है न ही किसी गिरिराज सिंह, योगी, राजा सिंह, तोगड़िया, साक्षी अथवा प्रज्ञा जैसों की सोच को।
दर्शकों के टेस्ट के हिसाब से ही बदला है सिनेमा
पूरे देश में आगजनी, बसे-कारें जलाई जा रही हैं। पुलिसकर्मियों और राहगीरों पर पत्थरबाजी हो रही है।
अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को लगता है कि एक्ट उनके खिलाफ है।
बेरोजगारों से सरकार की कमाई शर्मनाक
बेरोजगारी सरकारों के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बन गई है। दो-चार पदों के लिए हजारों बेरोजगार फार्म भरते हैं और सरकारों के पास करोड़ों रुपए पहुंच जाते हैं।


























