सत्संग से लाभ
एक दिन संत ने कहा- राजन्, अब आप स्वर्ण रसायन का तरीका जान लीजिए। इस पर राजा बोले, गुरुवर, अब मुझे स्वर्ण रसायन की जरूरत नहीं है। आपने मेरे ह्रदय को ही अमृत रसायन बना डाला है।
दोस्ती का अंदाज
कोई भी अनजान व्यक्ति दूसरे अनजान को देखकर अपना नाम बताते हुए हाथ आगे बढ़ा देता था। इस प्रकार अपरिचित लोग भी एक दूसरे के दोस्त बन जाते थे। दोस्ती करने का यह रिवाज वहां काफी लोकप्रिय था।
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नई दिल्ली। | Chandrayaan-...
वीणा का सम्मान
श्री शेषण्णा बोले, 'महाराज, आपने मुझे जो सम्मान दिया वह इस वीणा के कारण दिया। इसी के कारण लोग भी मुझे सम्मान देते हैं। वीणा मुझसे श्रेष्ठ है, क्योंकि आज मैं जो भी हूं इसी के कारण हूं।