प्रेरणास्त्रोत: हार और जीत
हमारे लिए यश-अपयश, जीवन-मरण, सुख-दुख, मित्र-शत्रु सभी एक समान होते हैं। हमें हार और जीत के फेर में पड़ना ही नहीं चाहिए।' जीव गोस्वामी को अपनी भूल का अहसास हो गया। उन्होंने तुरंत क्षमा मांग ली।
सही दिशा में बढ़ें
कोई भी काम आनन-फानन में शुरू करने के बजाय हमें पहले उसके हर पहलू पर गंभीरता से सोच लेना चाहिए। आपकी दिशा सही होगी, तभी मेहनत रंग लाएगी।
समाज का संकट
महर्षि बोले, ' जिस तरह जीर्ण-शीर्ण शरीर को एक वैद्य बचा सकता है उसी तरह विचारक और शिक्षाशास्त्री जीर्ण-शीर्ण मस्तिष्क को बचा सकते हैं। आज समाज को ऐसे ही लोगों की आवश्यकता है।
शिक्षा का लक्ष्य
यूक्लिड ने कहा- शिक्षा आत्मसमृद्धि का मार्ग है। उसे कभी भौतिक लाभ के तराजू में नहीं तौलना चाहिए और वह जहां से जिस मात्रा में मिले, उसे आत्मीयता से ग्रहण करना चाहिए।
प्रेरणास्त्रोत: विचार बदलो
किसी द्वारा अच्छा कहने पर प्रसन्न न होंगे और किसी के कष्ट देने पर दुखी भी न होंगे। बाहरी जगत का मोह त्यागकर आंतरिक जगत में विचरण करने वाला व्यक्ति ही एक सच्चा भक्त बन सकता है।
वीणा का सम्मान
श्री शेषण्णा बोले, 'महाराज, आपने मुझे जो सम्मान दिया वह इस वीणा के कारण दिया। इसी के कारण लोग भी मुझे सम्मान देते हैं। वीणा मुझसे श्रेष्ठ है, क्योंकि आज मैं जो भी हूं इसी के कारण हूं।
बुद्ध का क्रोधी शिष्य
कई शिष्य एक साथ कह उठे- हमारे धर्म में तो जांतपात का कोई भेद नहीं, फिर वह अस्पृश्य कैसे हो गया? तब बुद्घ ने स्पष्ट किया- आज यह क्रोधित होकर आया है। क्रोध से जीवन की एकता भंग होती है।
परेशान हो उठे थे सुभाष
सुभाष बाबू बोले- यह देश हमारा है और हम आदेश विदेशियों का मानते हैं? क्या हम अपने घरों में उन लोगों के चित्र भी नहीं लगा सकते जिन्होंने हमारे लिए अपने प्राणों की आहुति दी है। यह तो जुल्म है। आज मुझे आजादी का महत्व समझ में आ गया है। इस घटना के बाद सुभाष बाबू पर देशभक्ति का रंग और गहरा हो गया।