नोबल नहीं रहा साहित्य का नोबल पुरस्कार
यह साल निश्चित रुप से दुनिया के साहित्य प्रेमियों के लिए घोर निराशाजनक है। इस साल के नोबल पुरस्कारों की घोषणाएं हो गई हैं वहीं अब साफ हो गया है कि इस साल साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार नहीं दिया जाएगा। दरअसल इस साल का साहित्य का नोबल पुरस्कार यौन स्केण...
चुनाव प्रत्याशी: अनिवार्य घोषणाएं
मद्रास उच्च न्यायालय के एक न्यायधीश ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि विधायी निकायों में जन प्रतिनिधियों के लिए योग्यताएं निर्धारित करने की आवश्यकता है। उच्च न्यायालय की इस महतवपूर्ण सिफारिश की ओर लोगों का ध्यान उतना नहीं गया जितना जाना चाहिए क्...
असत्य पर सत्य की विजय का पर्व
हमारी भारतीय संस्कृति अनेकों त्योहारों, मेलों, उत्सवों व पर्वों से गुंथी हुई है। यहां मनाये जाने वाले प्रत्येक अनुष्ठान के पीछे प्रेम, एकता, भाईचारा व समरसता का संदेश छिपा है। इन्हीं पर्वों में से एक पर्व विजयादशमी यानी दशहरा है। अश्विन मास की शुक्ल ...
जेएनयू की राह पर एएमयू
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में आतंकवादी मनन वानी की नमाज-ए-जनाजा को परिसर में ही गोपनीय ढंग से जिस तरह पढ़ने की नाकाम कोशिश की गई, उससे लगता है, कहीं न कहीं इसे जवाहरलाल नेहरू विवि की राह पर धकेले जाने का षड्यंत्र तो नहीं चल रहा ? हालांकि विवि प्रशास...
गरीबी का संबोधन मिटे
गरीबी केवल भारत की ही नहीं, बल्कि दुनिया की एक बड़ी समस्या है, एक अभिशाप है। दुनियाभर में फैली गरीबी के निराकरण के लिए ही संयुक्त राष्ट्र में साल 1992 में हर साल 17 अक्टूबर को गरीबी उन्मूलन दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई। सभी देशों में गरीबी और ...
कर्जमुक्त कंपनियों का बढ़ता मुनाफा
हाल ही में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के निफ्टी सूचकांक में शामिल कंपनियों के प्रतिफल का विश्लेषण किया गया, जिससे पता चला कि वैसी कंपनियां जो आंतरिक स्रोत से पूंजी जुटा कर कारोबार कर रही हैं, के प्रदर्शन में निरंतर सुधार आ रहा है। यह निष्कर्ष 911 क...
मच्छरजनित बीमारियों से मुक्त हो देश
जयपुर में जीका का कहर हमारे लिए चेतावनी है। डेंगू, इन्सेफलाइटिस ,मलेरिया आदि से तो पहले से ही जूझ रहे हैं और अब ये नई बीमारियों का प्रकोप। अब अगर भारत को मच्छरों का देश कहें तो कोई गलत बात नहीं होगी। देश के हर कोने में मच्छरों का जमावड़ा है और इसके वि...
मूल निवासियों द्वारा बाहरी लोगों का विरोध
1947 से पूर्व भारत में अंग्रेजों को उखाड़ फेंकों के नारे सुनाई देते थे और उन नारों में राष्ट्रवाद की झलक होती थी। सभी लोग भारत को एकजुट और धर्मनिरपेक्ष बनाने का संकल्प लेते थे। किंतु वर्ष 2018 में मेरे भारत महान में अन्य राज्यों के बाहरी आम आदमियों को...
गरीबी की बदहाली पर मौन सरकार
1.26 अरब जनसंख्या की 25 फिसदी से ज्यादा अभी भी गरीबी रेखा से नीचे रहते है
भारत एक तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के बावजूद भी भारत की अधिकतम जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है। विश्व की लगभग 20 फीसदी जनसंख्या भारत में निवास करती है। गरीब...
अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि आपातकाल जैसे हालात
जनसंख्या विस्फोट से संसाधनों की अपर्याप्तता के कारण उत्पन्न हुई
जब भी देश में जनसंख्या नियंत्रण के मुद्दे पर वैचारिक विमर्श प्रारंभ होता है, तो कुछ लोगों की प्रतिक्रिया इस प्रकार होती है जैसे कि उनका हक छीना जा रहा हो। कुछ लोग इतने असहिष्णु हो जाते ...