प्रेरणास्त्रोत: भक्ति और संपत्ति
यह देख वहां अफरा-तफरी मच गई। कई लोग स्वर्ण मुद्राएं लेने के लिए गंगा में कूद गए।
भगदड़ में कई लोग घायल हो गए। राजा को समझ में नहीं आया कि आखिर गुरू नानक जी ने यह सब क्यों किया।
जेल में उपन्यास
जब वह जेल से बाहर आया तो उसने मजदूरी शुरू कर दी।
लेकिन मजदूरी करते हुए भी वह समय मिलने पर उपन्यास लिखता रहा। उसका वह उपन्यास 'दि फोर्टेस' के नाम से प्रकाशित हुआ।
महाराष्ट्र : न्यूनतम साझा कार्यक्रम मंत्र
इस संदर्भ में पाठकों को न्यूनतम साझा कार्यक्रम की उद्देशिका को नहीं भूलना चाहिए जिसमें कहा गया है
कि गठबंधन के सहयोगी दल संविधान में वर्णित धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का पालन करेंगे।
संबंधों में हड़बड़ाहट की वजह
गोटबाया 13 लाख वोटों से चुनाव जीते है। उनकी जीत से यह स्पष्ट है कि श्रीलंका के वोटर बदलाव को लेकर किस कदर आतुर थे।
यद्यपि सजित प्रेमदासा संतुलित व्यापार नीति और मैत्रीपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संबंधों को विकसित किए जाने के वादे के साथ चुनाव मैदान में उतरे थे।
आखिर कैसे रूकेंगी बलात्कार की घटनाएं!
! इन विचारों से तो यही पता चलता है कि लड़कियां चाहे जितनी भी पढ़-लिख जाएं, अपने पैरों पर खड़ी हो जाएं, लोग उनसे ही सवाल पूछेंगे।
लड़कियों को अक्सर नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले उन्हें सताने वालों से आखिर कोई सवाल क्यों नहीं पूछते?
अर्थव्यवस्था की धीमी होती रफ्तार
इस तरह के योजनाओं और लाभार्थियों की संख्या में वृद्धि करने की आवश्यकता है।
इसी तरह सरकार को आधारभूत संरचना पर भी खर्च में वृद्धि करनी होगी।
अमर प्रेम से कटी पतंग तक
सबसे पहले उसने दक्षिण भारतीयों को मराठी मानुष के दुश्मन के रूप में देखा फिर वामपंथियों, बिहारियों, मुसलमानों आदि का नंबर आया।
उदारवादियों का मानना है कि सत्ता में बने रहने के लिए सेना गिरगिट की तरह रंग बदल देगी किंतु यह इतना आसान नहीं है।
सावधान…हैकर्स से देश की सुरक्षा को खतरा
पिछले दशकभर की बात करें तो पूरे विश्व में सबसे ज्यादा डिजिटल होने का दावा हम करते आ रहे हैं।
तरक्की की तस्वीर भी अच्छे परिदृश्य के साथ दिख भी रही है।
“Interview with सच कहूँ” – अयोध्या मामला : वक्त मंदिर-मस्जिद से आगे सोचने का है: इकबाल अंसारी
मसले को उन्होंने हमेशा भाई-चारे से सुलझाने की वकालत की।
दरअसल, उनको मुल्क बहुत प्यारा था।
इसलिए उनके लिए मुल्क पहले था, मंदिर-मस्जिद बाद में।
बाल श्रम की गिरफ्त में सिसकता बचपन!
झुग्गी बस्तियों में रहते हैं या वंचित परिवारों से आते हैं,
उनकी शिक्षा तथा सुरक्षा के लिए शहरों में 'बाल शिक्षण-प्रशिक्षण केंद्र'
नाम से आवासीय विद्यालय की स्थापना की जा सकती है, जहां बच्चे रहकर ना सिर्फ पढ़ाई कर सकें,