कोरोना आपदा में अच्छे मानसून की खबर
देश में इस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून सामान्य रहने का अनुमान है। यह खबर खेती-किसानी, कृषि मजदूर और उससे जुड़े व्यापारियों के लिए सुकून देने वाली है। यही खेती हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।
डब्ल्यूएचओ पर संदेह का कारण
डब्ल्यूएचओ निदेशक गेब्रेयसस जिन तौर-तरीकों से इस वैश्विक संगठन का संचालन किया है, उन्हें किसी भी रूप में उचित नहीं कहा जा सकता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य मसलों और अपने आपदा नियंत्रण अनुभवों के लिए विश्व स्तर पर पहचान रखने वाले ग्रेब्रेयसस उसी वक्त सतर्क क्यों नहीं हो गए थे जब 7 जनवरी को चीन ने कोरोना वायरस के फैलने की सूचना उन्हें दी थी।
बुजुर्गों की ‘मनोदशा’ को न होंने दें ‘लॉक’
लॉकडाउन में बुजुर्गों को कभी अकेला न रहने दें। अकेलापन उनके भीतर निराशा और हताशा का भाव पैदा करता है। जिसकी वजह से जीवन में नैराश्यता का भाव पैदा होता है। उम्र दराज लोगों से हमेशा बातचीत करते रहिए। उनके भीतर संवाद शून्यता का भाव पैदा न होने पाए।
महामारी: समेकित कार्यवाही की आवश्यकता
संपूर्ण लॉकडाउन विश्व का सबसे बडा मनोवैज्ञानिक परीक्षण है और इससे तनाव से जुड़ी अनेक समस्याएं पैदा होने की संभावना है। क्वारंटीन न केवल शारीरिक रूप से परेशानियां पैदा कर रहा है अपितु इसका मानसिक र्प्रभाव भी पड रहा है जो जीवन भर रह सकता है।
कोरोना में आशा की नई किरण- एमपीलैड लूट पर रोक
नियंत्रक महालेखा परीक्षक की विभिन्न रिपोर्टों में कहा गया है कि यह राशि जनकल्याण के लिए है किंतु इसका एक बड़ा हिस्सा लोगों की जेब में चला जाता है। सांसद और विधायक जिला मजिस्ट्रेट के साथ सांठगांठ कर यह सुनिश्चित करता है कि लागत को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाकर प्रत्येक योजना में ठेकेदारों से उसे कमीशन दिया जाए।
खास होगा लॉकडाउन का दूसरा चरण
देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए लॉक डाउन की अवधि को 3 मई तक के लिए बढ़ा दिया है, ऐसे में आशा जगती है कि आने वाले दिन देश के खास होंगे। लॉकडाउन-2 में पूरी तरह पता चल जाएगा कि हम कोरोना संक्रमण को रोकने में कहां तक सफल रहे हैं।
डब्लूएचओ बन गया कागजी शेर
सिर्फ दिखाने के लिए ही डब्लूएचओ का अस्तित्व है, वास्तव में उसके पास न तो संकटकाल से लड़ने और संकट काल से बाहर निकलने के लिए कोई कार्यक्रम हैं और न ही सशक्त नीतियां हैं। डब्लूएचओ के बड़े-बडे अधिकारी सिर्फ अपने भाषणों और समिनारों में ही रोगों से लड़ने और रोगों से जीवन बचाने की वीरता दिखाते हैं।
सीमा पर खून खराबा-भारत इसे कैसे रोके?
यह वास्तव में बहुत आहत करने वाली बात है कि जब संपूर्ण विश्व मानव के अस्तित्व के लिए मुकाबला कर रहा है तो हमारी सीमाओं पर पाकिस्तान द्वारा भ्रमित लोगों द्वारा ऐसी कार्यवाही की जा रही है।
डोनाल्ड ट्रंप के व्यवहार को समझे भारत
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के खिलाफ जिस तरह की भाषा का इस्तेमान किया है, वह विदेश नीति के स्थापित सिंद्वातों और मयार्दाओं का उल्लंघन तो है ही, साथ ही अमेरिकी कूटनीति के स्याह चेहरे को भी दुनिया के सामने प्रकट करता हैं।
शिक्षा कानून का एक दशक: आधी हकीकत आधा फसाना
आज भी बड़े पैमाने पर सरकारी स्कूल बुनियादी ढांचागत सुविधाओं, जरूरी संसाधन, शिक्षा के लिये माहौल और शिक्षकों की भारी कमी से जूझ रहे हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय से संबद्ध संसदीय समिति द्वारा फरवरी 2020 के आखिरी सप्ताह में संसद में पेश की गयी रिपोर्ट में सरकारी स्कूलों के आधारभूत ढांचे पर चिंता जाहिर की गई है।