सोच-समझकर लें स्कूल खोलने का फैसला
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन इन दिनों देश में चल रहा है। चूंकि इस लॉकडाउन में काफी रियायतें दी गई हैं इसलिए इसे अनलॉक-1 का नाम दिया गया है। बाजार, मॉल व धार्मिक स्थल खुलने के बाद स्कूल-कॉलेज खोलने की बात कही जाने लगी। लॉकडाउन का सी...
कोरोना संकट की घड़ी में विपक्षी दल कहां रहे?
लॉकडाउन लगे हुए लगभग पचहतर दिन हो गए। इस दौरान मानवता की सेवा में व्यक्ति, परिवार, समाज, संस्था सभी अपने-अपने स्तर पर लगे हुए हैं, पर इन संकट के क्षणों में विपक्षी दलों ने अपनी कोई प्रभावी एवं सकारात्मक भूमिका नहीं निभाई है।
यह तोड़ने का नहीं देश को जोड़ने का समय
दुर्भाग्य देखिए जिस संविधान पर देश चलता। उसी संविधान ने समता और जीवन जीने की स्वतंत्रता दे रखी, लेकिन रहनुमाई बेरुखी ने तो कइयों श्रमिकों की जान ले ली। कोई भूख से मरा तो कोई सिस्टम के नकारेपन की वजह से।
निराशा से गरिमापूर्ण जीवन की ओर
हमें प्रवासी श्रमिकों की वर्तमान निराशाजनक स्थिति को एक गरिमापूर्ण जीवन में बदलना होगा और समेकित विकास के रूप में उन्हें अवसर उपलब्ध कराने होंगे। अन्यथा श्रमिकों की दुर्दशा जारी रहेगी।
अर्थ व आहार के संकट से देश को किसान ने बचाया
पिछले तीन माह से चल रहे कोरोना संकट ने अब तय कर दिया है कि आर्थिक उदारीकरण अर्थात पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की पोल खुल गई है और देश आर्थिक व भोजन के संकट से मुक्त है तो उसमें केवल खेती-किसानी का सबसे बड़ा योगदान रहा है।
हांगकांग: स्वायत्तता पर संकट
इस कानून के लागू हो जाने के बाद उनके लोकतांत्रिक अधिकार समाप्त हो जाएंगे और सरकार को चीन के नेतृत्व पर सवाल उठाने, प्रदर्शन में शामिल होने और स्थानीय कानून के तहत अपने मौजूदा अधिकारों का उपयोग करने के लिए हांगकांग निवासियों पर मुकदमा चलाए जाने का अधिकार प्राप्त हो जाएगा।
इस बार मनेगा सही मायने में पर्यावरण दिवस
देश की जनता को तालाबंदी (लॉकडाउन) के कारण बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। वहीं तालाबंदी का समय पर्यावरण की दृष्टि से अब तक का सबसे उत्तम समय रहा है। इस दौरान शहरों के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में भी वायु प्रदूषण का स्तर स्वयमेव घटकर न्यूनतम स्...
अब नई जीवनशैली के साथ आगे बढ़ना होगा
हमें एक नई जीवनशैली के साथ आगे बढ़ना होगा। ऐसे में जब इस साल तक कोरोना वैक्सीन बाजार में आनी मुश्किल दिखाई दे रही है तो हमारी सतर्कता-समझदारी में ही हमारा बचाव संभव है। यदि सब ठीक-ठाक रहा तभी सामान्य स्थिति की उम्मीद की जा सकेगी।
मानसून से पहले टिड्डियों को भगाना होगा
टिड्डियों ने ऐसी तबाही फरवरी में गुजरात और राज्स्थान में मचाई हुई है, जरूरत इस बात की है, किसी भी हाल में इनका आतंक रोका जाए। क्योंकि कुछ दिनों में मानसून दस्तक देने वाला है। उसके बाद किसान अपने खेतों में धान की रोपाई करेंगे। अगर उस वक्त भी टिड्डियों का आतंक यूं ही जारी रहा था, तो धान की फसल चौपट हो सकती है।
भारत का विकृत दृष्टिकोण
पूर्ववर्ती योजना आयोग ने 2011 में इस मुद्दे पर चर्चा की थी तथा संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य संगठन बीच-बीच में इस पर चर्चा करते रहते हैं। आंतरिक विस्थापन का मुद्दा पहले इस तरह कभी नहीं उठा।यहां तक कि 1950 के दशक में भी नहीं उठा जब भाखड़ा और दामोदर घाटी परियोजनाओं के कारण बड़ी संख्या में लोगों का विस्थापन हुआ था।